1991 में सोवियत संघ (USSR) के टूटने के बाद पहली बार रूस ने अपने परमाणु हथियारों को देश के बाहर तैनात किए जाने का निर्णय लिया है. रूस ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि वह अगले तीन सप्ताह के भीतर बेलारूस में अपने सामरिक परमाणु हथियारों को तैनात करने जा रहा है. हालांकि इस समझौते पर रूस और बेलारूस ने मई 2023 के अंतिम सप्ताह में ही हस्ताक्षर किए गए थे, अभी भी कई सवालों के जवाब जानने बाकी हैं. सबसे पहले, यह स्पष्ट नहीं है कि कुल कितने परमाणु हथियार तैनात किए जा रहे हैं. दूसरा, इन हथियारों के साथ किस तरह की डिलीवरी मैकेनिज्म को शामिल किया जा रहा है और तीसरा, ये परमाणु हथियार कितने शक्तिशाली हैं. हालांकि रूस ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि ये सामरिक परमाणु हथियार हैं और इसलिए इनकी शक्ति 50 किलोटन से कम ही होगी और वे हिरोशिमा और नागासाकी के समान शहरों का सफाया करने लायक बड़े नहीं होंगे, लेकिन इसके बावजूद आजकल की टेक्नोलॉजी को देखते हुए ये हथियार किसी भी दुश्मन के ह्रदय में डर पैदा करने के लिए पर्याप्त होंगे.
बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने घोषणा की है कि बेलारूस में विशेष भंडारण सुविधाएं तैयार की गयी हैं और परमाणु हथियार किसी भी समय बेलारूस पहुंच सकते हैं. परमाणु हथियार तैनात करने के इस रूसी कदम ने एक बार फिर शीत युद्ध की यादें ताजा कर दी हैं, जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने अपने गैर-जिम्मेदाराना क़दमों से पूरी दुनिया को भयंकर खतरे में धकेल दिया था. पूरी दुनिया रूस यूक्रेन युद्ध की विभीषिकाओं से गुज़र ही रही था कि पिछले साल सितंबर में, रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने यह कहकर इस मुद्दे को और हवा दे दी कि रूस को परमाणु हथियारों से अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है. आज जब बेलारूस में परमाणु हथियारों की तैनाती हो रही हैं, हम जानते हैं कि मेदवेदेव का बयान कोई झांसा नहीं था. एक समस्या ये भी है कि इस क्षेत्र में चार परमाणु सक्षम देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस सक्रिय हैं. ऐसे में रूस द्वारा बेलारूस में अपने परमाणु हथियारों की तैनाती का कदम एक नयी होड़ शुरू कर सकता है. यूरोप आज भी शीत युद्ध की भयानक यादें भूल नहीं पाया है जब इस महाद्वीप में ही 7300 से अधिक परमाणु हथियार तैनात थे.
हाल की घटनाओं का विश्लेषण करते हुए हमें इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि रूस का यह कदम क्रिया है या प्रतिक्रिया? बेलारूस में अपने परमाणु हथियार तैनात करने से पहले रूस ने स्पष्ट रूप से दो बातों का उल्लेख किया है. पहला यह कि वह अपने देश के बाहर परमाणु तैनात करने वाला पहला देश नहीं है और दूसरा यह कि ऐसा करके वह किसी परमाणु प्रसार संधि का उल्लंघन नहीं कर रहा है. रूसी अधिकारियों ने दावा किया कि रूस पिछले 32 वर्षों में पहली बार ऐसा कर रहा है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1950 से लगातार यूरोप के अपने विभिन्न ठिकानों पर परमाणु हथियार रखे हुए हैं. उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध की समाप्ति पर जब सारे देशों ने अपने परमाणु हथियार यूरोप से हटा लिए थे, अमेरिका ने संधि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद ऐसा नहीं किया. आज भी, अमेरिका ने यूरोप में छह प्रमुख नाटो ठिकानों पर परमाणु हथियारों का एक बड़ा ज़खीरा रख रखा है. ये ठिकाने हैं, बेल्जियम में क्लेन-ब्रोगेल, जर्मनी में बुकेल, इटली में अवियानो और गेडी, नीदरलैंड में वोल्केल और टर्की का इनसिर्लिक हवाई अड्डा.
आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका ने कभी भी इन ठिकानों पर मौजूद अपने परमाणु हथियारों का खुलासा नहीं किया पर यह अनुमान लगाया गया है कि इन छह स्थानों पर मौजूद परमाणु हथियारों की संख्या 100 से अधिक हो सकती है. ये हथियार WS-3 भूमिगत हथियार भंडारण तहखानों में संग्रहीत हैं और उनका पूरा नियंत्रण अमेरिकी हाथों में रहता है. रूस का कहना है कि वह बेलारूस में विशेष हथियार भंडारण सुविधाओं का निर्माण करके ठीक वैसा ही कर रहा है जो अमेरिका ने किया था, सारे हथियार पूरी तरह रूसी नियंत्रण में रहेंगे और इसलिए इस कदम से किसी भी परमाणु या मिसाइल प्रसार संधि का उल्लंघन नहीं होगा.
रूस ने ये भी कहा है की केवल सामरिक (टैक्टिकल) परमाणु हथियार ही बेलारूस में तैनात किये जा रहे हैं और 0.5 किलोटन से लेकर लगभग 50 किलोटन तक की विध्वंसक क्षमता के साथ इन हथियारों का प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होगा और ये केवल सैन्य उपयोग के लिए ही बने हैं. हालांकि रूस ने पिछले तीस वर्षों में इन छोटे सामरिक परमाणु हथियारों को बनाने और परिष्कृत करने पर बड़े पैमाने पर विशेषज्ञता प्राप्त की और उसके पास वर्तमान में 2000 से अधिक ये टेक्टिकल परमाणु हथियार हैं जो किसी भी अन्य देश से कहीं अधिक हैं. रूस ने इस साल मार्च के महीने में बेलारूस को परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम 10 विमान पहले ही दे दिए हैं और इतना ही नहीं, बल्कि रूस पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इस्कंदर सामरिक मिसाइलों को बेलारूस में तैनात किया है, जो अपनी 500 किमी सीमित सीमा के साथ, यूरोप में महत्वपूर्ण नाटो ठिकानों तक पहुंच सकती हैं. रूस का एक ही मकसद है – यूरोप को खासकर यूरोप में स्थित नाटो देशों को स्पष्ट सन्देश.
बेलारूस अपनी सीमा तीन महत्वपूर्ण नाटो देशों अर्थात् पोलैंड, लिथुआनिया और लातविया के साथ साझा करता है और अब अपने क्षेत्र में तैनात परमाणु हथियारों के साथ, इसके पास यूरोप में अधिकांश नाटो देशों पर हमला करने की क्षमता है. यूरोप बेचारा पिछले 100 वर्षों से रूस और अमेरिका के बीच घुन की तरह पिस रहा है और आज भी किसी प्रकार के तनाव के बढ़ने की स्थिति में इसे सबसे ज्यादा नुकसान होगा. वर्तमान में चल रहे यूक्रेन रूस संघर्ष में भी यह यूरोप ही है जिसने आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर सबसे अधिक खामियाजा भुगता है. शीत युद्ध के दिनों में भी उसे सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा और आने वाले समय में भी उसे कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा. यह पहले भी कई बार कहा जा चुका है कि अगर स्थितियां बिगड़ती हैं तो उस हालत में यूरोप को सबसे अधिक नुकसान होगा. इसलिए, खुद को बचाने के लिए, यूरोप और इसके नेताओं का ये फ़र्ज़ बनता है की वे अमेरिका के पिछलग्गू न बनते हुए स्थितियों को सामान्य करने के प्रयास करें अन्यथा सबसे अधिक नुकसान उन्हें ही होगा.