स्वीडन के स्टॉकहोम में बकरीद के दिन कुरान जलाने की घटना आपको याद होगी। सलवान मोमिक ने कुरान को जलाया था। वह इराकी शरणार्थी था। उसने पहले कुरान के पन्ने फाड़े फिर उसमें आग लगा दी। उसे कुरान जलाने की अनुमति वहां के कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने दी थी। सलवान मोमिक ने कहा था कि वह मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। उसने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए ऐसा किया। कट्टरता के खिलाफ उसने कुरान जलाई है। सलवान ने बताया था कि उसे आईएसआईएस आतंकियों की वजह से इराक छोड़ना पड़ा। कुरान जलाने की घटना के बाद से मुस्लिम देश स्वीडन से नाराज हैं। इस्लामिक देशों ने स्वीडन की काफी आलोचना की थी। ये भी कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुरान जलाने की अनुमति न दी जाए। इसके बावजूद स्वीडन में कुरान जलाने की फिर अनुमति दी गई। इतना ही नहीं, बाइबिल जलाने की अनुमति भी स्वीडन ने दी थी।
बकरीद के बाद सलवान मोमिक ने फिर से कुरान जलाने की अनुमति मांगी थी। इस बार उसने इराक दूतावास के बाहर कुरान जलाने की बात कही थी। स्वीडन में उसे अनुमति दे दी गई। हालांकि इस बार उसने कुरान नहीं जलाई। स्वीडन में ये नए मामले नहीं थे। अप्रैल 2022 में भी कुरान जलाई गई थी। इसके बाद स्वीडन के कई शहरों में हिंसा भड़की थी, जिसमें कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे। इसके बावजूद स्वीडन में कुरान जलाने की अनुमति दी गई और इस साल बकरीद के दिन सलवान मोमिक (37) ने कुरान के पन्ने फाड़े और उसमें आग लगा दी।
सलवान को जब दोबारा कुरान जलाने की अनुमति दी गई तो इराक में प्रदर्शन हुआ। इराकियों ने स्वीडन के दूतावास में तोड़फोड़ की और आग लगा दी। स्वीडन के राजदूत को भी निष्कासित कर दिया। दूसरे मुस्लिम देशों ने भी स्वीडन की आलोचना की। लेकिन, यहां सवाल यह भी है कि इतने विरोध के बावजूद स्वीडन में इसकी इजाजत क्यों दी जाती है? इसके पीछे बड़ी वजह है।