विश्व के अनेक देश जहां एक तरफ तरक्की के रिकार्ड तोड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बहुत बड़ी आबादी ऐसी भी है जिसे एक जून का खाना भी भरपेट नहीं मिल रहा है। भुखमरी की कगार पर पहुंची ये आबादी किस तरह जान बचाए हुए है, यह समझ पाना बहुत मुश्किल बात है। यूएन ने खाद्य सुरक्षा को लेकर प्रस्तुत की ताजा रिपोर्ट में जो आंकड़े दिए गए हैं वे हैरान करने वाले हैं और एक बहुत भयानक तस्वीर पेश करते हैं।
यू.एन. की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2023’ बताती है कि दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है जो एक वक्त के खाने तक के लिए तरस रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि विश्व में आज 73.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें भुखमरी की कगार पर पहुंचा कहा जा सकता हैं। इसके मायने ये कि वे दाने दाने को तरस रहे हैं।
In a world of plenty, no one should go hungry or suffer the cruelty of malnutrition.
A world free from hunger is within reach, but we must act together, urgently & with solidarity.
— António Guterres (@antonioguterres) July 13, 2023
आगे यह रिपोर्ट बताती है कि 2019 के बाद से एक बहुत बड़ी आबादी भूख से दो दो हाथ करने को विवश है। उस साल दुनिया में 61.8 करोड़ ऐसे थे जो भूख की मार झेल रहे थे। लेकिन आज ये संख्या कहीं ज्यादा हो चुकी है। बीते तीन साल में उक्त संख्या में 12.2 करोड़ की बढ़ोतरी हो गए हैं। यानी अब एक वक्त के खाने के लिए तरसने वालों की संख्या 73.5 करोड़ हो चुकी है।
आखिर यह स्थिति आई कैसे? रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य वजहें तीन हैं—एक, कोविड-19, दो, पर्यावरण में बदलाव और तीन, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध। एक और हैरानी की बात जो इस रिपोर्ट से सामने आई है। वह यह कि आने वाले 7 साल में यानी 2030 तक विश्व के 60 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार होंगे, अगर सब ऐसे ही चलता रहा तो। 2022 की बात करें तो तब 90 करोड़ लोग ठीक से पेट भरने से वंचित रहे थे।
यानी हर तीन में एक इंसान भूखे पेट सोया। यानी विश्व की को मजबूर हुआ। आसान शब्दों में कहें तो दुनिया के 240 करोड़ लोगों या 29.6% आबादी ऐसी रही जिसे एक वक्त का खाना मिल गया तो दूसरे वक्त का कोई ठिकाना नहीं था। यानी दो जून की रोटी की बजाय एक ही जून की रोटी नसीब हो पाई। और बात सिर्फ पेट भरने की नहीं है, जो खाना मिला वह कितना पोष्टिक था? इसके आंकड़े देखें तो 2021 में 310 करोड़ लोगों को पौष्टिक खाना नहीं मिला था, यानी कुल आबादी का 42 प्रतिशत हिस्सा बिना पौष्टिक खाना खाए ही सोया।
‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशियन इन द वर्ल्ड’ की इस रिपोर्ट में लिखा है कि साल 2022 में 4.5 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हुए। ये आंकड़ा 5 साल के बच्चों का है। इसके साथ ही 14.8 करोड़ बच्चे ऐसे देखे गए जिनका विकास बाधित हो चुका था। बेहद कमजोर बच्चे किसी तरह सांस लेते पाए गए। बच्चों का वजन भी उम्र के हिसाब से सही नहीं पाया गया।
रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनियाभर में मंहगाई बढ़ी है। अनेक देशों में लोगों की खरीदने की ताकत कम हुई है। यहां तक कि रोजाना जरूरत की चीजें भी लोगों की पहुंच से बाहर हो गई है। उल्लेखनीय है कि भुखमरी के सबसे ज्यादा मामले में कांगो, इथोपिया जैसे अफ्रीकी देशों तथा अफगानिस्तान में देखने में आए हैं। रिपोर्ट बताती है कि युद्ध की वजह से ऐसे हालात बहुत लंबे वक्त तक बने रह सकते हैं।
इसी तरह कोरोना महामारी की वजह से जो लॉकडाउन लगे उसकी वजह से खाद्य आपूर्ति की श्रृंखला प्रभावित हुई थी। इस दौरान कुपोषण कोरोना का खतरा बढ़ाने की भी वजह बन सकता था। ऐसे बच्चों की मौतों का खतरा सबसे बढ़कर था। क्योंकि कुपोषण की वजह से बीमारी से लड़ने की क्षमता बहुत कम हो जाती है।
इसके साथ ही पर्यावरण बदलाव के कारण जहां कई देशों में बाढ़ आई तो कई देशों में एक बूंद पानी प बरसने से भयंकर सूखे की स्थिति बनी। गर्म हवाओं की वजह से फसलें जल गईं। जलवायु परिवर्तन से खेती का सबसे ज्यादा नुकसान देखने में आया है।