चीन दशकों से उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न कर रहा है. दुनिया जानती है कि चीन ने मुसलमानों पर जितना जुल्म किया, उतना किसी देश ने नहीं किया. ‘ड्रैगन’ के नुकीले दांतों से बचने के लिए कुछ लोग अच्छे भविष्य की आस में जैसे तैसे ‘डंकी’ मार कर भागे थे, वो थाईलैंड में पकड़े गए थे. थाईलैंड सरकार ने 11 साल तक डिटेंशन सेंटर में नारकीय परिष्थितियों में रह रहे दर्जनों उइगरों को चुपके से उनके देश चीन भेजा तो कई मानवाधिकार संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं ने थाई सरकार के आदेश पर हैरानी जताते हुए डिपोर्ट हुए लोगों की जान को खतरा बताया है.
चीन में उत्पीड़न से बचने की कोशिश में थाईलैंड की सीमा पार करने के बाद 11 साल पहले 48 लोगों को थाईलैंड के अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया था. उसी समय से उन्हें हिरासत में रखा गया था. गुरुवार को थाई विपक्षी विधायक कन्नावी सुएबसांग ने कुछ रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा, हमें लगता है कि एक ग्रुप को गुरुवार सुबह चीन डिपोर्ट कर दिया गया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर डिपोर्ट ही करना था तो पहले ही कर देते, लंबे समय तक अमानवीय परिष्थितियों में क्यों रखा?
6 वैन में कौन लोग थे?
एक रिपोर्ट के मुताबिक सुएबसांग ने अपने फेसबुक पेज पर तस्वीरें पोस्ट कीं, जिनमें परदे से छिपी खिड़कियों वाली 6 गाड़ियां बैंकॉक के उस सेंटर से निकल रही थीं, जहां उइगर समूह को रखा गया था. वहीं ‘जस्टिस फॉर ऑल’ के ‘सेव उइगर’ कैंपेन से जुड़े एक्टिविस्ट अर्सलान हिदायत ने बताया कि वो हिरासत में रखे गए लोगों में से एक के साथ नियमित संपर्क में थे, लेकिन सोमवार सुबह से उनकी कोई खबर नहीं है, मैं उनसे कांटैक्ट नहीं कर पा रहा हूं, कई तरीके अपनाए लेकिन बात नहीं हो सकी.
शिनजियांग में उइगरों का नरसंहार: अमेरिका
शिनजियांग के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में उइगर और अन्य मुख्य रूप से मुस्लिम जातीय अल्पसंख्यकों पर चीन के दमन को अमेरिका और यूरोप के देश ‘नरसंहार’ बताते हैं. इस चरणबद्ध उत्पीड़न में उइगर मुसलमानों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जाता है. उनकी निगरानी की जाती है. उनसे जबरन मेहनत वाले काम कराए जाते हैं, हालांकि ऐसे सभी आरोपों को चीन दसियों साल से नकारता आया है.
40 लोग चीन लौटाए
रिपोर्ट के मुताबिक अवैध रूप से सीमा पार कर थाईलैंड पहुंचे 40 चीनी नागरिकों को गुरुवार को डिपोर्ट करके चीन भेजा गया गया. सभी से देश की सुरक्षा को खतरा बताया गया था, हालांकि किन लोगों को डिपोर्ट किया गया उन निर्वासित लोगों की पहचान को गोपनीय रखा गया. थाईलैंड के गृह मंत्रालय ने एक लिखित सवाल के जवाब मेंकहा, ‘इस बार निर्वासित किए गए चीनी लोगों को आपराधिक संगठनों ने लालच दिया था, वे अवैध रूप से उन्हें चीन की पहुंच से बहुत दूर देश भेज देंगे, लेकिन वो यहां थाइलैंड में ही पकड़े गए.’
चीन ने की पुष्टि
थाईलैंड से उइगर लोगों के निर्वासन पर एक सवाल के जवाब में, चीन के विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय के बयान में दी गई जानकारी का हवाला दिया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, ‘यह निर्वासन चीन और थाईलैंड दोनों के कानूनों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानून और सम्मेलनों के आधार पर किया गया था.’
हालांकि पत्रकारों द्वारा इस सिलसिले में सवाल पूछे जाने पर थाईलैंड के प्रधान मंत्री पैटोंगटार्न शिनावात्रा ने चुप्पी साध ली. उन्होंने गोल मोल जवाब देते हुए कहा, ‘किसी भी देश में इस तरह कार्रवाई को कानून के दायरे और अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का पालन करते हुए पूरा करना चाहिए.’
वहीं सार्वजनिक सेवा प्रसारक थाई पीबीएस वर्ल्ड के अनुसार, थाईलैंड के राष्ट्रीय पुलिस आयुक्त कित्रत फानफेट ने भी सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
इससे जुड़े प्रमुख पहलू:
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मानवाधिकारों का उल्लंघन: थाईलैंड द्वारा उइगरों को चीन भेजने का मामला वैश्विक मानवाधिकार संगठनों द्वारा निंदा की जा रही है। विशेष रूप से, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चेतावनी दी है कि इन व्यक्तियों की जान खतरे में है, क्योंकि चीन में उनका सामना अत्याचारों से हो सकता है, जैसे शारीरिक यातनाएँ, किडनैपिंग और लंबी जेल की सजा।
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चीन का उत्पीड़न: चीन का शिनजियांग क्षेत्र वर्षों से उइगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए उत्पीड़न का केंद्र बना हुआ है। उनका अमानवीय व्यवहार, जैसे जनसंख्या नियंत्रण, गुलामी जैसा काम, और मानसिक तथा शारीरिक प्रताड़ना, इसे एक वैश्विक संकट बना दिया है। हालांकि, चीन ने हमेशा इन आरोपों से इंकार किया है।
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थाईलैंड की भूमिका: थाईलैंड ने यह कदम उठाकर न केवल उइगरों के लिए संकट को बढ़ाया, बल्कि इसने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुँचाया। थाईलैंड के इस कृत्य पर दुनिया भर से आलोचनाएँ आ रही हैं, और इसे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन माना जा रहा है।
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संभावित परिणाम: थाईलैंड द्वारा चीन को उइगरों को भेजने के बाद उनकी सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं। कई संगठन यह मानते हैं कि इन व्यक्तियों को वापस भेजने से उनके लिए खतरा बढ़ गया है, और चीन में उनकी भविष्यवाणी असुरक्षित है।
‘गहरी चिंता’
थाईलैंड 1951 शरणार्थी सम्मेलन का सदस्य नहीं है और शरण की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है. थाइलैंड का शरणार्थियों को सीमाओं से पीछे धकेलने और असंतुष्टों को निर्वासित करने का लंबा इतिहास रहा है. इससे पहले 2015 में, थाईलैंड ने 100 उइगरों को चीन भेजा था, उस समय भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश फैला था. यूएन के विशेषज्ञों ने पिछले साल कहा था कि ऐसे लोगों का भाग्य और भविष्य दोनों अज्ञात खतरे में है.
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहा है कि डिपोर्ट हुए सभी लोगों की जान को खतरा है. ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) के एशिया डायरेक्टर एलेन पियर्सन ने कहा, ‘थाईलैंड द्वारा उइगर बंदियों को चीन भेजना घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत थाईलैंड के दायित्वों का खुला उल्लंघन है.’ दुनिया जानती है कि ऐसे लोगों से चीन में कितना बुरा बरताव होता है. उइगरों को शारीरिक प्रताड़ना, किडनैपिंह और जेल में लंबे समय तक अमानवीय जीवन जीना पड़ता है.
वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि हिरासत में लिए गए कई लोग कई सालों की अमानवीय कैद की वजह से गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसे में चीन में उनकी जबरन वापसी क्रूरता है.