बांग्लादेश अपनी इतिहास की किताबों को फिर से लिख रहा है. खासतौर से 1971 के मुक्ति संग्राम के बारे में फिर से लिखा जा रहा है. इतिहास की नई पाठ्यपुस्तकों में बताया जाएगा कि 1971 में 6 मार्च को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा बंगबंधु मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी. नई पाठ्यपुस्तकों से मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है. 2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पाठ्यपुस्तकों में कहा जाएगा कि 26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी.
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर ए.के.एम. रियाजुल हसन ने द डेली स्टार को बताया, “2025 के शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पाठ्यपुस्तकों में लिखा होगा कि ’26 मार्च, 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की.” जियाउर रहमान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के संस्थापक और वर्तमान बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया के पति थे. जबकि हकीकत में हाल ही में पद से हटाई गईं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता मुजीब ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था. यह पहला मौका नहीं है जब बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में इस तरह के बदलाव हुए हैं.
विवादित रही मुजीब और जियाउर की विरासत
एक रिपोर्ट के अनुसार मुजीब और जियाउर की विरासत हमेशा से ही राजनीतिक रूप से विवादित रही है. साथ ही यह सवाल भी विवादित रहा है कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा किसने की थी. मुजीब के नेतृत्व में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व करने वाली पार्टी अवामी लीग का दावा है कि यह घोषणा ‘बंगबंधु’ ने की थी, जबकि बीएनपी अपने संस्थापक जियाउर को इसका श्रेय देती है. इसका मतलब यह है कि ढाका में सत्ता के आधार पर आधिकारिक इतिहास में बदलाव होता रहा है. 1978 में, बांग्लादेश के राष्ट्रपति के रूप में जियाउर के शासनकाल के दौरान, पहली बार इतिहास में बदलाव किया गया और जियाउर को स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला व्यक्ति घोषित किया गया.
कई बार लिखा जा चुका है इतिहास
तब से, देश के इतिहास को कई बार फिर से लिखा गया है. जिसमें साल 2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद का इतिहास भी शामिल है. 2010 में, 1978 में प्रकाशित ‘बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध: दस्तावेज’ के तीसरे खंड, जिसमें जियाउर को स्वतंत्रता के उद्घोषक के रूप में प्रस्तुत किया गया था, को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया था. पिछले साल अगस्त में एक आंदोलन के बाद हसीना को हटा दिया गया था. उसके बाद बनी अंतरिम सरकार में बीएनपी और अन्य अवामी विरोधी दलों का खासा प्रभाव है. जिसके तहत मुजीब और उनकी विरासत को निशाना बनाया जा रहा है. 5 अगस्त की एक तस्वीर काफी वायरल हुई थी. उस दिन ढाका में प्रदर्शनकारियों ने मुजीब की एक प्रतिमा के साथ बदसलूकी की थी. उसी दिन शेख हसीना दिल्ली भाग गईं, प्रदर्शनकारियों ने मुजीब के आवास (जिसे 2001 में हसीना ने स्मारक में बदल दिया था) को भी आग लगा दी और तोड़फोड़ की. स्मारक उसी जगह पर है जहां 1975 के तख्तापलट में मुजीब और उनके परिवार के ज्यादातर लोगों को मार दिया गया था.
कौन सा दावा तथ्यात्मक रूप से सही
विभिन्न समकालीन स्रोतों के सरसरी अवलोकन से यह दावा कि मुजीब ने नहीं, बल्कि जियाउर ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी, तथ्यात्मक आधार पर बहुत ठीक नहीं लगता है. जियाउर ने 27 मार्च, 1971 को ‘बंगबंधु’ की ओर से घोषणा की थी. जबकि मुजीब ने निश्चित रूप से एक दिन पहले, पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने से ठीक पहले पहली घोषणा जारी की थी. अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) की 26 मार्च, 1971 को व्हाइट हाउस को दी गई अब अवर्गीकृत रिपोर्ट में कहा गया था: “आज के दिन पाकिस्तान गृहयुद्ध की ओर धकेल दिया गया था, जब शेख मुजीबुर रहमान ने दो भागों वाले देश के पूर्वी हिस्से को ‘संप्रभु स्वतंत्र पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश’ घोषित किया था.”
इसे लेकर अमेरिका का क्या है मानना
26 मार्च, 1971 को वाशिंगटन स्पेशल एक्शन ग्रुप मीटिंग के मिनट्स में, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने की थी, मुजीब की घोषणा का भी उल्लेख है. किसिंजर को यह बताते हुए कि पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह याह्या खान और मुजीब के बीच वार्ता क्यों टूट गई, तत्कालीन केंद्रीय खुफिया निदेशक (डीसीआई) रिचर्ड हेल्म्स ने कहा: “एक गुप्त रेडियो प्रसारण में मुजीबुर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की है.” 27 मार्च, 1971 को दुनिया भर के अधिकांश अखबारों ने भी मुजीब की आजादी की घोषणा की खबर दी. एसोसिएटेड प्रेस के नई दिल्ली संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, “… पूर्वी पाकिस्तान के राष्ट्रवादी नेता शेख मुजीबुर रहमान को उनके क्षेत्र को आजाद घोषित करने के कुछ ही घंटों बाद गिरफ्तार कर लिया गया…”.
जियाउर रहमान की घोषणा
सैयद बदरूल अहसन की ‘बंगबंधु’ की जीवनी के अनुसार, मुजीब ने अपना संदेश टेलीग्राम के जरिए भेजा था. उन्होंने संभवतः 26 मार्च, 1971 को रात 12.30 बजे के आसपास यह संदेश भेजा था. अहसान ने लिखा, “जब छावनी से बाहर जाने वाले रास्ते से गोलियों की पहली आवाजें सुनाई दीं, तो उनकी बड़ी बेटी हसीना को याद है, मुजीब ने वायरलेस के जरिए बांग्लादेश की आजादी की घोषणा करते हुए एक संदेश भेजा…”
हालांकि, इस घोषणा की व्यापक रूप से रिपोर्टिंग की गई थी, जिसे उसी दिन बाद में चटगांव के कलुरघाट में स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र (फ्री बंगाल रेडियो स्टेशन) से प्रसारित किया गया था. मुजीब की घोषणा का पत्र 26 मार्च, 1971 की दोपहर को अवामी लीग के सदस्य एमए हन्नान ने बांग्ला में पढ़ा था. उस समय पाकिस्तानी सेना में मेजर जियाउर रहमान ने 27 मार्च 1971 को एक और घोषणा की. उसे भी व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया था. हालांकि समाचार पत्रों ने जियाउर को ‘जिया खान’ के रूप में गलत पहचान दी.
मुजीब बनाम जियाउर
बांग्लादेश की आजादी की घोषणा किसने की, इस विवाद के केंद्र में रहे मुजीब और जियाउर आखिर बांग्लादेश में क्या चाहते थे. मुजीब ने 1973 के चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की. हालांकि ज्यादातर लोगों के अनुसार, यह प्रक्रिया धांधली और हेराफेरी से घिरी हुई थी. मुजीब ने इस्लामी पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया. उनके बारे में उनका दावा था कि उन्होंने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था. मुजीब ने बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. 1975 में स्वतंत्र बांग्लादेश में कई तख्तापलटों में से पहले के दौरान परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. इस घटना ने जियाउर रहमान के उदय का मार्ग प्रशस्त किया, जो बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख से राष्ट्रपति बन गए.
मुक्ति संग्राम में योगदान पर विवाद
जियाउर की भी 1981 में एक और तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी गई, लेकिन सत्ता में रहते हुए उन्होंने इस्लामी तत्वों पर शिकंजा नहीं कसा. सबसे खास बात यह है कि 1978 में बांग्लादेश के संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ को हटा दिया. यह आज तक मुजीब और जियाउर के राजनीतिक उत्तराधिकारियों हसीना और खालिदा के बीच मुख्य विवाद बना हुआ है. हसीना सरकार ने इस्लामवादी तत्वों पर विशेष रूप से शिकंजा कसा है, जबकि खालिदा के शासन में उन्हें बढ़ावा मिला है और उच्च पदों पर जगह दी गई है. वर्तमान सरकार द्वारा बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में मुजीब के योगदान की अपेक्षा जियाउर के योगदान को उजागर करने का निर्णय, उस विरासत को दर्शाता है जिससे वे जुड़ना चाहते हैं तथा बांग्लादेश के उस नजरिये को दर्शाता है जिसका वे समर्थन करते हैं.
नए बदलावों का प्रभाव:
- यदि नई पाठ्यपुस्तकों से “बंगबंधु” मुजीब की उपाधि हटा दी जाती है और जियाउर को स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला बताया जाता है, तो यह बांग्लादेश की नई सरकार द्वारा अवामी लीग की विरासत को कमजोर करने की राजनीतिक कोशिश होगी।
- इससे बांग्लादेश की युवा पीढ़ी के बीच इतिहास की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जाएगी, जो भविष्य की राजनीति को प्रभावित कर सकती है।
- इस बदलाव से भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि भारत ने 1971 के युद्ध में मुजीब के नेतृत्व को मान्यता दी थी और उसी के अनुरूप संबंधों का निर्माण किया था।
भारत के लिए इसका महत्व
- राजनीतिक अस्थिरता का संकेत – यह बदलाव दर्शाता है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या भी बदली जाती है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
- भारत-बांग्लादेश संबंधों पर प्रभाव – अवामी लीग के कमजोर होने और बीएनपी के प्रभावी होने से भारत के लिए संभावित कूटनीतिक चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि बीएनपी का झुकाव पाकिस्तान और चीन की ओर अधिक रहा है।
- धार्मिक कट्टरपंथ के बढ़ने की आशंका – मुजीब की धर्मनिरपेक्ष विरासत को कमजोर करने का प्रयास कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दे सकता है, जिससे बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति प्रभावित हो सकती है।