बृहस्पतिवार, 10 अगस्त के दिन संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की। इस कारण सत्ता पक्ष ने नाराजगी जताते हुए अधीर रंजन के खिलाफ निलंबन का प्रस्ताव पेश किया और अधीर रंजन सदन से निलंबित हो गए हैं।
उन्होंने प्रधानमंत्री की तुलना पहले धृतराष्ट्र से की और कहा कि ‘जैसे धृतराष्ट्र अंधे थे वैसे ही आज हमारा राजा अँधा हो गया।’
इसके बाद अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘नीरव मोदी’ कह दिया। अधीर ने कहा कि नीरव मोदी विदेश में घूमते रहते हैं उनकी फोटो दिखती रहती है, हमें लगा नीरव मोदी विदेश चला गया और उसके बाद नीरव मोदी ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी में दिख रहे हैं।
लोकसभा से अपने निलंबन पर प्रतिक्रिया देते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ‘नीरव’ का मतलब चुप रहना है और उनका इरादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपमान करना नहीं था। चौधरी ने कहा, “मैंने पीएम मोदी का अपमान नहीं किया है। मोदी जी हर बात पर बोलते हैं लेकिन मणिपुर मुद्दे पर वह ‘नीरव’ बैठे हैं, जिसका मतलब है चुप बैठना।
फिर प्रश्न उठता है कि अगर नीरव का अर्थ चुप बैठना है तो इसे नीरव मोदी से कैसे जोड़ा जा सकता है?
देखा जाए अधीर रंजन चौधरी के इस व्यवहार से आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे वर्षों से ही ऐसा करते हुए आ रहे हैं। चाहे फिर वे सदन में हों या सदन से बाहर।
सदन में बिना तथ्यों के अपनी बात रखना, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों पर असंसदीय टिप्पणियां करना और फिर अलग अलग तर्कों द्वारा मुद्दे से बच निकलने की प्रयास जैसे जब उन्होंने राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कहकर सम्बोधित किया था तो विवाद होने के बाद यह कह दिया था कि हिंदी कमजोर होने की वजह से उन्होंने राष्ट्रपत्नी कह दिया।
फिर इसी वर्ष राष्ट्रपति अभिभाषण पर अपने वक्तव्य में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बार-बार आदिवासी कहकर संबोधित करने लगे और उनकी राष्ट्रपति पद पर नियुक्ति की तुलना ‘दान’ से कर दी। कुल मिलाकर उन्होंने राष्ट्रपति की जाति का इतनी बार उल्लेख किया कि मानो वे राष्ट्रपति के आदिवासी होने को लेकर शर्मिन्दिगी व्यक्त कर रहे हों।
इसी भाषण में वे भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ की बात करते हैं और जब सत्ता पक्ष प्रमाण मांगता है तो वे मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हैं। यहाँ भी वे सेना के स्पष्टीकरण का जिक्र नहीं करते हैं। अर्थात सिर्फ उतनी ही बात रखो जिससे काम चल जाए।
कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि वे संसद या संसद से बाहर अपनी बात पर ध्यानाकर्षण के लिए हंगामे का वातावरण बनाते हैं। संसद में एक भाषण में वे प्रधानमंत्री को भोगी कह चुके हैं और जब हंगामा हुआ तो फिर वही बच निकलने का प्रयास, कहा कि हम सभी भोगी हैं।
प्रश्न यही है कि अधीर रंजन चौधरी किस उद्देश्य से ऐसा करते हैं? वह लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं तो क्या ऐसा माना जाए कि ये विपक्ष की नीति के तहत किया जाता है?
विपक्ष के नेता अपने भाषणों से छाप छोड़ने में असफल रह रहे हैं ऐसे में उनके पास व्यक्तिगत टीका टिप्पणी या सदन में हंगामा कर दिखास-छपास का विकल्प ही रह जाता है। शायद इससे उनके कैंप में शाबाशी जरूर मिल जाती होगी।