केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में भारतीय कानून से जुड़े तीन नए बिल पेश किए. इनके तहत 1860 के भारतीय दंड संहिता को बदला जाएगा और उसका नाम भारतीय न्याय संहिता होगा. वहीं दूसरा बिल क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1898 का कानून है, इसको बदलकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नाम से नया बिल लाया गया है. तीसरा कानून इंडियन एविडेंस एक्ट जो कि 1872 का कानून है, उसमें भी बदलाव किया गया है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम से तीसरा बिल संसद में लाया गया है.
इसे संसद की स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया ताकी और बारीकी से अध्ययन कर कमियों को दूर किया जा सके. अब सवाल ये उठता है कि आखिरकार सरकार द्वारा इस बिल को लाने के पीछे की मंशा क्या है और बदलाव के पीछे की सोच क्या है? ये जानने की कोशिश करते हैं कि 4 सालों से अनवरत जिस बिल को लाने का प्रयास केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कर रहे थे उससे क्या बदलेगा.
बिल को लाने की मंशा
आईपीसी, सीआरपीसी अमेंडमेंट बिल को लाने के पीछे की मंशाओं में से एक है देश से गुलामी की निशानी मिटाना. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की सोच है कि अंग्रेजी राज में बनाए गए कानूनों के पीछे भारतीयों की भलाई या हित नहीं बल्कि भारतीयों से अंग्रेजी हुकूमत को प्रोटेक्ट करना था. भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश और आयरिश औपनिवेशिक सोच और कायदे कानून को भारतीय गुलामों पर थोपने की एक व्यवस्था भर थी.
लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आईपीसी, सीआरपीसी में बदलाव से अब पीड़ितों को न्याय और दोषियों को दंड देने के आधार पर अब नया कानून बनाया गया है. जिसमें अब पाश्चात्य की जगह भारतीय आत्मा होगी. उन्होंने कहा कि अब नए बदलाव के साथ “दंड की जगह न्याय को आधार बनाया गया है.”
केंद्र सरकार का मत है कि बदलते भारत के लिए एक अपना नया कानून व्यवस्था वाला न्याय संहिता होना चाहिए, जिसमें दंड की जगह देशवासियों को न्याय मिल सके और जिसमें तमाम आधुनिक साक्ष्यों को समाहित किया जा सके जो अबतक नहीं है. सरकार को इस बात का भरोसा है कि नए कानून के प्रावधान में समरी ट्रायल बहुत जरूरी पड़ाव है, जिससे करीब 33 फीसदी केस कोर्ट के बाहर ही सेटलमेंट से खत्म हो जाएंगे.
नए कानून का प्रारूप कैसा है
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 533 धाराएं होंगी ये सीआरपीसी की 478 धाराओं के स्थान पर ये होंगी. 160 धाराओं में बदलाव हुआ है. 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 पुरानी धाराएं निरस्त कर दी गई हैं. वहीं भारतीय न्याय संहिता में आईपीसी की 511 धाराओं के स्थान पर अब कुल 356 धाराएं होंगी. 175 धाराओं में बदलाव हुआ है. 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त कर दी गई हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में पुराने कानून की 167 धाराओं के स्थान पर 170 धाराएं होंगी. 23 धारा में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं हटा दी गई हैं.
नए कानून से ब्रिटिश सोच बाहर
नए कानून से कॉलोनियल शब्दों को हटाया गया है. इसमें से पार्लियामेंट ऑफ द यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, लंदन गजट, जूरी, बैरिस्टर, लाहौर, कॉमनवेल्थ, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, हर मजेस्टिक गवर्नमेंट, पजेशन ऑफ द ब्रिटिश क्रॉउन, कोर्ट ऑफ जस्टिस इन इंग्लैंड जैसे अंग्रेजो से जुड़े शब्दो को हटाया गया है. राजद्रोह कानून को पूरी तरह निरस्त कर दिया गया है.
नए कानूनों में गुलामी की निशानियों को समाप्त किया गया है। pic.twitter.com/x6KqxTjsp1
— Amit Shah (@AmitShah) August 11, 2023
भगोड़ों पर कसेगी लगाम
नए कानून के मुताबिक प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर की अनुपस्थिति में भी अब भारत में उस पर मुकदमा चलाया जा सकेगा. मुकदमा जजमेंट तक चलाया जाएगा. उदाहरण के तौर पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम पर भारत में मुकदमा अब तक नहीं चल पाता है, लेकिन नए कानून आने के बाद उस पर भारत में मुकदमा चलेगा और उस पर जजमेंट भी आ सकेगा.
केंद्र सरकार का मानना है कि पुरानी कानूनी व्यवस्था के कारण ही आज दाऊद इब्राहिम, विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे अपराधि दूसरे देशों में चैन की सांस ले रहे हैं और सबकुछ पता होते हुए भी इनका प्रत्यर्पण कराने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
नई न्याय संहिता के प्रावधानों के मुताबिक अब दूसरे देशों में जाकर रह रहे भगोड़े अपराधियों के खिलाफ देश के न्यायालयों में मुकदमा चलाया जा सकेगा और सजा मुकर्रर भी की जा सकेगी. एक बार भारत में सजायाफ्ता हो जाने के बाद दाऊद, विजय माल्या जैसे अपराधियों का प्रत्यर्पण भी आसान हो जाएगा, क्योंकि कई देश ट्रायल चलाए और सजा दिलाए बगैर सिर्फ आरोप के आधार पर प्रत्यर्पण करने की मंजूरी नहीं दे पाते.
डिजिटाइजेशन और टेक्नोलॉजी पर जोर
नए कानून में टेक्नोलॉजी से न्याय की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रयास किया गया है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें, इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग्स, कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटॉप के मैसेज, वेबसाइट लोकेशन सर्च, डिजिटल डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को सम्मिलित किया गया है. अब न्याय की प्रक्रिया के दौरान इन सब चीजों का इस्तेमाल सबूत के तौर पर किया जा सकता है.
डिजिटल रिकॉर्ड्स को वैधता देने से लेकर FIR और जजमेंट तक के डिजिटलीकरण से क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पेपरलेस होगा और सर्च व जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य होने से निर्दोष को न्याय मिल सकेगा। pic.twitter.com/87NBHdpn3y
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एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्ज सीट और जजमेंट सभी को डिजिटाइज किया जाएगा. सम्मन और वारंट जारी करना उनकी सर्विस, शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच पड़ताल और मुकदमे में साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, हाई कोर्ट में मुकदमे और सभी अपीलीय कार्यवाहियां सभी पुलिस थानों और न्यायालय द्वारा एक रजिस्टर के द्वारा ईमेल एड्रेस,फोन नंबर और अन्य विवरण रखा जाएगा. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे गए समन को विधिवत भेजा गया समन माना जाएगा.
पुलिस के द्वारा सर्च और जब्ती की कार्यवाही करने के लिए भी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा. पुलिस द्वारा सर्च करने की पूरी प्रक्रिया या किसी संपत्ति का अधिग्रहण करने की भी वीडियोग्राफी की जाएगी. ऐसी रिकॉर्डिंग को बिना किसी विलंब के संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा, ताकि इस में छेड़छाड़ का कोई आरोप न लगे.
यौन हिंसा मामले में बढ़ेगा पीड़िता का अधिकार
यौन हिंसा के मामले में पीड़िता का बयान एक महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा रिकॉर्ड किया जाएगा. यौन उत्पीड़न की पीड़िता का बयान उसके घर पर एक महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज किया जाना जरूरी होगा. ऐसे बयान रिकॉर्ड करते समय पीड़िता के अभिभावक या माता-पिता उपस्थित रह सकते हैं.
अब तक कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं की पीड़िता को डरा धमका कर अपने हिसाब से बयान दिलवाया जाता है. 7 साल या उससे अधिक के जेल के मामले में अभियोजन को सरकार अगर वापस लेना चाहती है, तो भी वहां पीड़ित पक्ष को सुनवाई का अवसर मिलेगा. पुराने कानून में अपराधी और पुलिस कई बार मिलीभगत करके बिना पीड़िता के वकील को सुने, मामले को बंद कर देते थे. नए कानून के आने के बाद अब पीड़िता का अधिकार बढ़ जाएगा.
समरी ट्रायल को बढ़ावा
नए कानून के तहत छोटे-मोटे मामलों में समरी ट्रायल द्वारा तेजी लाई जाएगी. कम गंभीर मामलों चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना या रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करना, आपराधिक धमकी जैसे मामलों के लिए समरी ट्रायल को अनिवार्य किया गया है. इन मामलों में सजा 3 वर्ष तक है. मजिस्ट्रेट लिखित रूप से दर्ज कारणों के अंतर्गत ऐसे मामलों में समरी ट्रायल कर सकता है. इसके बावजूद अगर किसी मामले में जांच की आवश्यकता है तो आरोप पत्र दायर करने के बाद जांच को अगले 90 दिनों में पूरा करना होगा.
आरोप पत्र दायर करने में 90 दिन से अधिक का कोई भी विस्तार केवल न्यायालय की अनुमति से ही दिया जाएगा. किसी भी मामले के वारंट के मामले में एक नया प्रावधान किया गया है, इसके तहत न्यायालय द्वारा आरोप तय करने के लिए आरोप पर पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन की समय सीमा तय की गई है. इससे 32 फीसदी मुकदमों में कमी आएगी. इतना ही नहीं आरोपी व्यक्ति आरोप तय करने के नोटिस की तारीख से 60 दिन की अवधि के भीतर रिहाई के लिए भी अपील कर सकता है.
सिविल सर्वेंट के खिलाफ मुकदमा
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अगर कोई मामला है तो उसे चलाने के लिए सहमति या असहमति पर सक्षम अधिकारियों को 120 दिनों के अंदर निर्णय लेना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो यह मान लिया जाएगा की अनुमति प्रदान हो गई है और सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा शुरू कर दिया जाएगा. नए कानून में जमानत और बॉन्ड शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है. नए कानून में यह तय किया गया है कि सिविल सर्वेंट, एक्सपर्ट और पुलिस पदाधिकारियों के स्थान पर पद ग्रहण करने वाले अधिकारी ही उनके कार्यकाल से जुड़े मामले में गवाही दे पाएंगे.
प्रशासनिक कर्मचारियों के खिलाफ लगे आरोप पर सरकार को 120 दिन के अंदर चार्जशीट या ट्रायल के लिए अनुमति या असहमति देनी होगी। pic.twitter.com/Y4Gdzfo4NL
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उदाहरण के तौर पर अगर 2010 में कोई क्राइम हुआ है और उस वक्त उस जिले के एसपी 10 साल बाद यानी 2020 में सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. वह रिटायर हो जाते हैं या फिर उनका ट्रांसफर कहीं और हो गया होता है. ऐसे मामलों में अधिकारी अगर नहीं आते हैं तो कोर्ट में मामला लंबित रहता है. नए कानून के आने के बाद अब घटना के वक्त अधिकारी के द्वारा फाइल पर लगाए गए नोट को ही सबूत माना जाएगा. उनकी जगह पर जो अधिकारी पोस्टेड है, वह नोट उसे कोर्ट में पेश करना पड़ेगा इससे मामलों की सुनवाई में तेजी आएगी.
अंडर ट्रायल कैदियों को राहत मिलेगी
पहली बार के अपराधी को अब राहत प्रदान की जाएगी. कोई व्यक्ति जो पहली बार का अपराधी है. वह अपनी पूर्ण सजा की एक तिहाई सजा अगर काट लेता है तो उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा. यह काम जेल अधीक्षक का होगा और वह कोर्ट को इस मामले से समय पूरा होते ही अवगत कराएगा. हालांकि विचाराधीन कैदी को आजीवन कारावास और मौत की सजा में रिहाई उपलब्ध नहीं होगी.
घोषित अपराधियों की संपत्ति होगी कुर्क
नए कानून के मुताबिक 10 साल या उससे अधिक की सजा या आजीवन कारावास और मृत्यु दंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी घोषित किया जा सकता है. घोषित अपराधियों के मामले में भारत और भारत से बाहर की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए नए कानून में एक नया प्रावधान किया गया है. नए कानून के मुताबिक किसी अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति को कुर्क करने और जब्द करने के संबंध में कानून में नई धारा को जोड़ी गई हैं.
आतंकवाद की नई परिभाषा
संसद में पेश किए गए भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है. इसे दंडनीय अपराध बनाया गया है. साथ ही संगठित अपराध से संबंधित एक नई धारा भी जोड़ी गई है. अभी तक आईपीसी में इस तरह की धारा नहीं थी. संगठित अपराध के नए प्रावधानों में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियों या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य को जोड़ा गया है.
गैंगरेप पर 20 साल की जेल
महिलाओं से जुड़े मामले में नए कानून को और सख्त बनाया गया है. शादी, रोजगार, प्रमोशन के झूठे वादे और अपनी गलत पहचान बता कर यौन संबंध बनाने को एक नए अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है. अब गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान होगा. 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के मामले में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है.
मॉब लिंचिंग अपराध की श्रेणी में
देश में मॉब लिंचिंग को लेकर कोई आईपीसी की धारा नहीं थी. अब इसे जोड़ा गया है. नस्ल, जाति समुदाय आदि के आधार पर की गई हत्या से संबंधित अपराध का एक नया प्रावधान सम्मिलित किया गया है. जिसके लिए कम से कम 7 साल की सजा या आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है. स्नैचिंग का भी एक नया प्रावधान बनाया गया है. इस दौरान पीड़ित अगर गंभीर चोट के कारण लगभग निष्क्रिय शारीरिक स्थिति में जाता है या स्थाई रूप से विकलांग होता तो अपराधी को कठोर दंड दिया जाएगा.
लापरवाही पर भी कठोर कार्रवाई
नए कानून में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है, जिसमें किसी की जल्दबाजी या लापरवाही से अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है और वह अपराधी, अपराध स्थल से भाग जाता है और पुलिस या मजिस्ट्रेट के सामने खुद को प्रस्तुत नहीं करता और घटना का खुलासा करने में असफल होता है. तो उसे जो सजा दी जाएगी उसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है साथ ही उस पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान है.
सजा माफी पर भी बदलेगा कानून
मृत्यु की सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदला जा सकता है, लेकिन उसे पूरी तरह माफी नहीं दी जाएगी. अब तक राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी को भी माफी दे सकते थे. जिसे आजीवन कारावास की सजा मिली है, उसे कम से कम 7 वर्ष की अवधि जेल में काटनी ही होगी.