भारत की नारियों का वो स्वरूप और पवित्रता की वो पराकाष्ठा ही ये जो संसार में हर सर को भारत की नारियों के सम्मान में झुका गया था . वो सर आज भी झुका है भले ही अपना ईमान और कलम एक ही परिवार में बेच चुके चाटुकार इतिहासकार कुछ भी लिख लें और कुछ भी कह लें पर क्रूरतम इस्लामिक आतंक से लड़ कर तन और धन के भूखे भेडियों से अंत समय में अपनी जान दे कर अपनी रक्षा करते हुए जो जौहर भारत की नारियों ने दिखाया था.
भारत की नारियों के पवित्रता व शौर्य का वो इतिहास सृष्टि के अनंत काल तक अमर हो चुका है जो अमिट भी रहेगा. जौहर की गाथाओं से भरे पृष्ठ भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं. ऐसे अवसर एक नहीं, कई बार आये हैं, जब हिन्दू ललनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए ‘जय हर-जय हर’ कहते हुए हजारों की संख्या में सामूहिक अग्नि प्रवेश किया था. यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया. जौहर की गाथाओं में सर्वाधिक चर्चित प्रसंग चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने 26 अगस्त, 1303 को 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था तथा मलेक्ष खिलजी की परछाईं तक तो अपने शरीर पर नहीं पड़ने दिया था.
माँ पद्मिनी(पद्मावती) सिंहलद्वीप के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री तथा चित्तौड़ ने राजा महारावल रतन सिंह की रानी थी. एक बार चित्तौड़ के चित्रकार चेतन राघव ने सिंहलद्वीप से लौटकर राजा रतनसिंह को माँ पद्मिनी एक सुंदर चित्र बनाकर दिया. इससे प्रेरित होकर राजा रतनसिंह सिंहलद्वीप गया और वहां स्वयंवर में विजयी होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाकर ले आया. इस प्रकार माँ पद्मिनी चित्तौड़ की रानी बन गयी. वो रानी जिनके चरित्र और शौर्य के आस पास भी सोचने की क्षमता ना रखने वाले तथाकथित फिल्मकारों ने उनके जीवन पर मनगढ़ंत कहानियां गढ़कर फिल्म बनाने का कुत्सित प्रयास किया था.
इस कुत्सित प्रयास के विरोध में पूरा देश सड़कों पर आ गया था, जिसके कारण फिल्मकार को फिल्म में वास्तविक इतिहास दिखाना पड़ा था. माँ पद्मिनी की सुंदरता की ख्याति अलाउद्दीन खिलजी ने भी सुनी थी. वह उन्हें किसी भी तरह अपने हरम में डालना चाहता था. उसने इसके लिए चित्तौड़ के राजा के पास धमकी भरा संदेश भेजा, पर राव रतनसिंह ने उसे ठुकरा दिया.
अब वह धोखे पर उतर आया. कहा जाता उसने रतनसिंह को कहा कि वह तो बस पद्मिनी को केवल एक बार देखना चाहता है, उन्हें बहन मानता है. रतनसिंह ने खून-खराबा टालने के लिए यह बात मान ली। एक दर्पण में रानी पद्मिनी का चेहरा अलाउद्दीन को दिखाया गया. वापसी पर रतनसिंह उसे छोड़ने द्वार पर आये. इसी समय उसके सैनिकों ने धोखे से रतनसिंह को बंदी बनाया और अपने शिविर में ले गये.
अब यह शर्त रखी गयी कि यदि पद्मिनी अलाउद्दीन के पास आ जाए, तो रतनसिंह को छोड़ दिया जाएगा. यह समाचार पाते ही चित्तौड़ में हाहाकार मच गया; पर पद्मिनी ने हिम्मत नहीं हारी. उसने कांटे से ही कांटा निकालने की योजना बनाई. अलाउद्दीन के पास समाचार भेजा गया कि पद्मिनी रानी हैं. अतः वह अकेले नहीं आएंगी. उनके साथ पालकियों में 800 सखियां और सेविकाएं भी आएंगी.
अलाउद्दीन और उसके साथी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए. उन्हें पद्मिनी के साथ 800 हिन्दू युवतियां अपने आप ही मिल रही थीं. पर उधर पालकियों में पद्मिनी और उसकी सखियों के बदले महाबली गोरा तथा बादल के नेतृत्व में सशस्त्र हिन्दू वीर बैठाये गये. हर पालकी को चार कहारों ने उठा रखा था. वे भी सैनिक ही थे. पहली पालकी के मुगल शिविर में पहुंचते ही रतनसिंह को उसमें बैठाकर वापस भेज दिया गया और फिर सब योद्धा अपने शस्त्र निकालकर शत्रुओं पर टूट पड़े.
कुछ ही देर में शत्रु शिविर में हजारों सैनिकों की लाशें बिछ गयीं. इससे बौखलाकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला बोल दिया. इस युद्ध में राव रतनसिंह ने अनगिनत मुगलों को मार गिराया तथा अंत में बलिदान दे दिया. जब रानी पद्मिनी ने देखा कि राजा रतन सिंह ने बलिदान दे दिया तथा अब हिन्दुओं के जीतने की आशा नहीं है, तो उसने जौहर का निर्णय किया. रानी पद्मिनी ने संकल्प लिया कि वह जीते जी तो क्या मरने के बाद मलेक्ष खिलजी की परछाईं तक को अपने शरीर पर नहीं पड़ने देंगी.
रानी और किले में उपस्थित सभी नारियों ने सम्पूर्ण शृंगार किया. हजारों बड़ी चिताएं सजाई गयीं. ‘जय हर-जय हर’ का उद्घोष करते हुए सर्वप्रथम वीरांगना महारानी पद्मिनी ने चिता में छलांग लगाई और फिर क्रमशः सभी हिन्दू वीरांगनाएं यहां तक बच्चियां भी अग्नि प्रवेश कर गयीं. माँ पद्मिनी के अनेकानेक भारतीय वीरांगनाओं ने धर्मरक्षा के लिए हँसते हँसते अपना बलिदान दे दिया था.
इसके बाद चित्तौड़ के सभी पुरुषों ने साका प्रदर्शन करने का निश्चय किया, जिसमें प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र तथा पगड़ी पहनकर तब तक लड़े जब तक वो सभी ख़त्म नहीं हो गये. इसके बाद खिलजी तथा उसकी सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उसको राख तथा जली हुई हड्डियों का ढेर ही दिखाई दिया. इससे खिलजी दांत भींचकर रह गया.
पवित्रता की उस चरम पराकाष्ठा , त्याग की उस सर्वोच्च प्रतिमूर्ति महारानी पद्मावती को आज उनके बलिदान अर्थात जौहर दिवस पर बारम्बार नमन , वन्दन और अभिनन्दन है साथ ही ऐसी देवीस्वरूपा महारानियों की गौरवगाथा को सदा सही रूपों में जन मानस के आगे लाने के लिए अपने पुराने संकल्प को भी दोहराता है.