संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा के यहां सीबीआई की छापेमारी हुई है. सीबीआई, महुआ के कोलकाता समेत कई ठिकानों पर छापेमारी कर रही है. लोकसभा ने पिछले साल दिसंबर में ‘अनैतिक आचरण’ के लिए मोइत्रा को निष्कासित कर दिया था. पूर्व सांसद ने अपने निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और वह आम चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से टीएमसी उम्मीदवार के रूप में फिर से मैदान में होंगी.
भ्रष्टाचार रोधी संस्था लोकपाल के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए सीबीआई ने पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ बृहस्पतिवार को एफआईआर दर्ज की थी.
लोकपाल ने मोइत्रा के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे द्वारा लगाए गए आरोपों पर सीबीआई की प्रारंभिक जांच के निष्कर्ष मिलने के बाद एजेंसी को निर्देश जारी किए हैं. लोकपाल ने सीबीआई को इस मामले में मोइत्रा के खिलाफ शिकायतों के सभी पहलुओं की जांच करने के बाद छह महीने में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.
दुबे ने आरोप लगाया था कि मोइत्रा ने उद्योगपति गौतम अडाणी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत अन्य पर निशाना साधने के लिए कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से नकदी और उपहार के बदले में लोकसभा में सवाल पूछे. हालांकि, मोइत्रा ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
लोकपाल ने अपने आदेश में क्या कहा
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद पूरी जानकारी का सावधानी से मूल्यांकन करने के बाद कोई संदेह नहीं रह जाता है कि महुआ के खिलाफ लगाए गए आरोप, जिनमें से अधिकांश में ठोस सबूत हैं, उनके पद को देखते हुए बेहद गंभीर प्रकृति के हैं. इस वजह से हमारी राय में सच को स्थापित करने के लिए गहन जांच जरूरी है. प्रासंगिक समय पर आरपीएस (प्रतिवादी लोक सेवक) की स्थिति को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि एक लोक सेवक अपने पद पर रहने के दौरान कर्तव्यों के निर्वहन में ईमानदारी बरतें.
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि एक जन प्रतिनिधि के कंधों पर जिम्मेदारी और बोझ अधिक होता है. यह हमारा कर्तव्य है और अधिनियम का आदेश है कि उन भ्रष्टाचार और भ्रष्ट प्रथाओं को जड़ से खत्म करने के लिए सभी प्रयास किए जाएं जो अनुचित लाभ, अवैध लाभ या लाभ और बदले में लाभ जैसे पहलुओं को अपने दायरे में लाते हैं. भ्रष्टाचार एक ऐसी बीमारी है जो इस लोकतांत्रिक देश की विधायी, प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है.
क्या है Cash for Query मामला?
महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के आरोप लगे थे. जांच के बाद एथिक्स कमेटी ने अपनी रिपोर्ट स्पीकर को सौंपी थी. इस पूरे मामले की शुरुआत भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के आरोपों से हुई. निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर संसद में सवाल पूछने के लिए रियल स्टेट कारोबारी हीरानंदानी से रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. निशिकांत दुबे ने ये आरोप महुआ के पूर्व दोस्त जय अनंत देहाद्रई की शिकायत के आधार पर लगाए.
लोकसभा अध्यक्ष ने किया था कमेटी का गठन
निशिकांत की शिकायत पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कमेटी का गठन किया. निशिकांत दुबे ने बिरला को लिखे लेटर में गंभीर ‘विशेषाधिकार के उल्लंघन’ और ‘सदन की अवमानना’ का मामला बताया था. कमेटी ने महुआ मोइत्रा, निशिकांत दुबे समेत कई लोगों के बयान दर्ज किए थे. विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली समिति ने 9 नवंबर को एक बैठक में ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ के आरोप पर महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार की थी. कमेटी के 6 सदस्यों ने रिपोर्ट के पक्ष में मतदान किया था और दिसंबर 2023 में उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई.