सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनाव के दौरान सार्वजनिक सभा आयोजित करने के संदर्भ में बड़ा आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है यदि कोई आवेदक सार्वजनिक सभा आयोजित करने की मांग करता है तो संबंधित अधिकारी को उस पर 3 दिनों के भीतर निर्णय लेना चाहिए. कोर्ट ने ये भी निर्देशित किया है कि यह आदेश केवल इसी मामले पर नहीं बल्कि पूरे देश में एकसाथ लागू होगा. कोई भी व्यक्ति अगर प्रशासन से शांतिपूर्ण यात्रा निकालने या सार्वजनिक सभा करने की मांग करता है तो उस पर 3 दिनों के अंदर फैसला करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश विशेष तौर पर चुनाव के दौरान होने वाली जन सभाओं और यात्राओं के लिए दिया है. कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन और अधिकारियों को इस संबंध में आवेदकों की अर्जी पर संज्ञान लेने को कहा है.
अरुणा रॉय और निखिल डे की याचिका पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश अरुणा रॉय और निखिल डे की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है. अरुणा रॉय और निखिल डे ने ये याचिका लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले सीआरपीसी की धारा 144 (सभाओं पर रोक) के तहत किए जाने वाले आदेश को लागू करने के खिलाफ लगाई थी.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस याचिका की सुनवाई की. दोनों याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण थे. उन्होंने कहा कि कुछ बहुत शानदार हो रहा है लेकिन जब तक कि शांति भंग न हो, ऐसे आदेश पारित नहीं किये जा सकते.
शांति भंग होने का आधार होना जरूरी
जिसके बाद जस्टिस गवई ने पूछा कि ऐसा आदेश कोई कैसे पारित किया जा सकता है? जिसके जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि शांति भंग होने की आशंका का कोई आधार भी होना चाहिए. हमने लोकतंत्रिक यात्रा की अनुमति के लिए आवेदन किया है. कोई अनुमति नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि 48 घंटे के अंदर उन्हें फैसला तो करना ही चाहिए.
प्रशांत भूषण की इस दलील के बाद बेंच ने ये आदेश दिया कि हम निर्देश देते हैं कि यदि ऐसा कोई आवेदन (सार्वजनिक सभा आयोजित करने आदि की मांग) सक्षम प्राधिकारी को किया जाता है, तो उस पर तीन दिनों के भीतर निर्णय लिया जाएगा. और यह पूरे देश में लागू होगा.