उत्तराखंड के बहुचर्चित बनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट के समक्ष रेलवे और राज्य सरकार ने अपनी जमीन खाली कराने संबंधी दावे प्रस्तुत किए। कोर्ट ने सरकार से कहा कि प्रभावित लोगों के पुनर्वास के बारे में एक माह में बताएं। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल मुयान और जस्टिस दीपांकर दत्ता की अदालत में मामले की सुनवाई हुई।
यह मामला केंद्र सरकार द्वारा 2023 में पारित अंतरिम आदेश में संशोधन के लिए दायर किया गया था, क्योंकि विवाद में भूमि के एक हिस्से में रेलवे ट्रैक और हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता बताई गई है। आज सुप्रीम अदालत ने केंद्र सरकार की दलीलों को दर्ज कर लिया है।
रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रेलवे स्टेशन के विस्तार के लिए और ट्रैक पर गौलानदी से पानी से कटाव हो रहा है। इस वजह से से रेल विभाग कोअतिक्रमित भूमि की तत्काल आवश्यकता है। रेलवे के स्वामित्व वाली लगभग 30.04 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण होने का दावा किया गया है। कथित तौर पर इस स्थल पर करीब 50,000 लोग 4,365 घरों में रह रहे हैं। सुनवाई के दौरान भूमि के एक हिस्से की तत्काल आवश्यकता को प्रदर्शित करने के लिए कुछ वीडियो और तस्वीरें संदर्भित की गईं, जहां अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के अलावा निष्क्रिय रेलवे लाइन को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि सैकड़ों परिवार वर्षों से रह रहे हैं, हम निर्दयी नहीं हो सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा उन परिवारों की पहचान की जाए जिनके प्रभावित होने की संभावना है। सरकार द्वारा पुनर्वास की योजना प्रस्तुत की जाए। केंद्र और राज्य स्तर पर नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है। हम राज्य के मुख्य सचिवों को रेलवे अधिकारियों और केंद्रीय मंत्रालय के साथ बैठक बुलाने का निर्देश देते हैं और पुनर्वास योजना लाई जाए जो उचित, न्यायसंगत और सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया है, उसकी पहचान की जाए। इसी तरह जिन परिवारों के प्रभावित होने की संभावना है, उनकी तुरंत पहचान की जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मामला 11 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि हम सभी की बात सुनेंगे और सुझाव मांगेंगे।
कोर्ट में मुख्य बातें:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा सबसे बड़ी बात यह है कि जो वहां रह रहे वो भी इंसान हैं, और वे दशकों से रह रहे हैं…अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं। अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है और राज्य को भी कुछ करने की ज़रूरत है.
- कोर्ट ने कहा कि रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें। इससे पहले रेलवे की तरफ से कोर्ट में कहा गया था कि वो वंदे भारत और अन्य ट्रेन वहां चलाना चाहती है, इसको लेकर प्लेटफॉर्म को बड़ा करने की जरूरत है। इसके अलावा ट्रैक पर पानी भर जाता है।
- कोर्ट ने उतराखंड सरकार से भी कहा कि कानूनी रूप से हकदार लोगों का पुनर्वास कर सकती है। दरअसल पिछले साल जनवरी में हल्द्वानी में नियोजित बेदखली अभियान से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने पर रोक लगा दी थी.
- सुप्रीम कोर्ट ने उतराखंड के चीफ सेकेट्री, केंद्र के अफसर और रेलवे अफसर मीटिंग कर, ये योजना बनाए कि आखिर लोगों का पुनर्वास किस तरह से होगा, कोर्ट ने आगामी चार हफ्तों के भीतर इस योजना पर काम करने के निर्देश देते हुए कहा कि हम पांचवे हफ्ते में सुनवाई करेंगे।
- प्रभावित लोगो की तरफ से अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, उत्तराखंड सरकार की तरफ से अभिषेक अत्रे, रेलवे की तरफ से ऐश्वर्य भाटी, कार्तिक जयशंकर, पीबी सुरेश ने पैरवी की।