90 के दशक में अजमेर में हुए सेक्स और ब्लैकमेलिंग कांड पर बनीं ‘अजमेर 92’ इस साल जुलाई में रिलीज होने वाली है। यह घोषणा रिलायंस एंटरटेनमेंट ने की है। उन्होंने फिल्म का पोस्टर जारी कर बताया कि अजमेर 92 इस साल 14 जुलाई को आएगी।
पोस्टर में देख सकते हैं कि इस पर 28 परिवारों के लापता होने की बात, हत्याओं का जिक्र, 250 कॉलेज गर्ल्स की न्यूड फोटो बँटने की खबरें हाईलाइट है। इस फिल्म में करण वर्मा, सुमित सिंह, सायजी शिंदे और मनोज जोशी नजर आएँगे। फिल्म का निर्देशन पुष्पेंद्र सिंह ने किया है। वहीं इसके प्रोड्यूसर उमेश कुमार हैं।
‘AJMER 92’ TO RELEASE ON 14 JULY… A #RelianceEntertainment presentation, #Ajmer92 will release in *cinemas* on 14 July 2023… Stars #KaranVerma, #SumitSingh, #SayajiShinde and #ManojJoshi… Directed by #PushpendraSingh… Produced by #UmeshKumarTiwari. pic.twitter.com/ddKnAedh6D
— taran adarsh (@taran_adarsh) May 26, 2023
सीरीज की शूटिंग दो साल पहले शुरू हुई थी। उस समय हिंदू संगठनों ने चेतावनी दी थी कि अगर इस फिल्म में तथ्यों से छेड़छाड़ हुई तो वो लोग आंदोलन करेंगे।
बता दें कि अजमेर का ब्लैकमेलिंग कांड का खुलासा अप्रैल 1992 में हुआ था। इसे दुनिया के सामने लाने वाले पत्रकार संतोष कुमार थे। इस रेप और ब्लैकमेलिंग कांड की शिकार अधिकतर स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ थीं। लोग कहते हैं कि इनमें से अधिकतर ने तो आत्महत्या कर ली।
जब ये केस सामने आया था, तब अजमेर कई दिनों तक बन्द रहा था। लोग सड़क पर उतर गए थे और प्रदर्शन चालू हो गए थे। जानी हुई बात है कि आरोपितों में से अधिकतर समुदाय विशेष से थे और पीड़िताओं में सामान्यतः हिन्दू ही थीं।
इस केस में 18 को आरोपित बनाया गया था। इनमें एक फारूक चिश्ती भी था जो कभी कॉन्ग्रेस का नेता हुआ करता था। इस मामले में 200 से भी अधिक पीड़िताएँ थीं लेकिन कुछ ने ही बयान दिया था। अफसोस, इनमें से शायद ही कोई अपने बयान पर कायम रही हों।
कहते हैं उस वक़्त अजमेर में 350 से भी अधिक पत्र-पत्रिका थी और इस सेक्स स्कैंडल के पीड़ितों का साथ देने के बजाए स्थानीय स्तर के कई मीडियाकर्मी उल्टा उनके परिवारों को ब्लैकमेल किया करते थे। आरोपितों को छोड़िए, इस पूरे मामले में समाज का कोई भी ऐसा प्रोफेशन शायद ही रहा हो, जिसने एकमत से इन पीड़िताओं के लिए आवाज़ उठाई हो।
आरोप यह भी है कि जिस लैब में फोटो निकाले गए, जिस टेक्नीशियन ने उसे प्रोसेस किया, जिन पत्रकारों को इसके बारे में पता था- उन सबने मिल कर अलग-अलग ब्लैकमेलिंग का धँधा चमकाया। पीड़ित लड़कियों और उनके परिवारों से सबने रकम ऐंठे। ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे? कभी 29 पीड़ित महिलाओं ने बयान दिया था, आज गिन कर इनकी संख्या 2 है। सिस्टम ने हर तरफ से इन्हें तबाह किया।