आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया श्रीकृष्ण मठ का दौरा, गीता के महत्व पर दिया संदेश
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कर्नाटक के उडुपी में स्थित श्रीकृष्ण मठ का दौरा किया। इस अवसर पर उन्होंने पूज्य श्री सुगुनेंद्र तीर्थ स्वामी से सौहार्दपूर्ण मुलाकात की और सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाया।
मुख्य बातें:
- अनुभव मंडपम का उद्घाटन:
- मोहन भागवत ने श्रीकृष्ण मठ में अनुभव थिएटर ‘अनुभव मंडपम’ का उद्घाटन किया।
- इस थिएटर के माध्यम से भगवत गीता का संदेश और शिक्षा लोगों तक पहुँचाने की प्रक्रिया को साकार किया जाएगा।
- गीता के महत्व पर दिया संदेश:
- मोहन भागवत ने कहा, “गीता जीवन में आगे बढ़ने का पथ प्रदर्शक है। यह बुढ़ापे में पढ़ने का ग्रंथ नहीं है, बल्कि इसे बचपन से ही पढ़कर जीवन में उसके संस्कार ग्रहण करने चाहिए।”
- उन्होंने जीवन में गीता को हर चरण में एक मार्गदर्शक ग्रंथ बताया और इसके ज्ञान को बचपन से ही जीवन का हिस्सा बनाने की वकालत की।
- संस्कृतियों और संवादों का महत्व:
- मोहन भागवत की इस यात्रा के दौरान सांस्कृतिक संवाद और भारतीय जीवन पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के संकेत भी दिए गए।
गीता का संदेश और आधुनिक जीवन:
मोहन भागवत का यह बयान गीता के व्यावहारिक पहलुओं की ओर संकेत करता है। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि जीवन में आचार्य और सिद्धांतों के पालन के लिए भी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उनके अनुसार, गीता के विचार बचपन से ही आत्मसात करने से व्यक्ति जीवन के हर चुनौतीपूर्ण पड़ाव को पार कर सकता है।
बचपन से मिले गीता का संस्कार
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सनातन काल से चलता हुआ चिंतन पूर्णता तक पहुंचा है, उस चिंतन का सारांश गीता है- ‘सर्वो उपनिषद’। वह इतना सम्पूर्ण है कि उससे पहले हुआ सारा चिंतन और उसके बाद हुआ सारा चिंतन गीता में समा गया। अपने भारत में और विश्व में गीता के बाद जो जो चिंतन धाराएं आईं उसका भी अध्ययन करते हैं तो ध्यान में आता है कि ये सब गीता में पहले से ही है। ये ग्रन्थ जीवन में आगे बढ़ने का पथ प्रदर्शक हैं, ये बुढ़ापे में पढ़ने का ग्रन्थ नहीं हैं। रोज के जीवन में बचपन से ही इसके संस्कार मिलने चाहिए। इसी के सतत मनन-चिंतन से जीवन में यशस्वी और सार्थक बनकर आदमी जी सकता है।
जनसंख्या नियंत्रण पर दिया बयान
बता दें कि इससे पहले नागपुर में मोहन भागवत का एक बयान काफी चर्चा में था। जब उन्होंने जनसंख्या वृद्धि में गिरावट पर चिंता जताते हुए कहा था कि भारत की कुल प्रजनन दर (टीआरएफ) मौजूदा 2.1 के बजाए कम से कम तीन होनी चाहिए। टीआरएफ का मतलब एक महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की औसत संख्या से है। उन्होंने कहा था कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, यदि किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है। उन्होंने कहा था कि जनसंख्या में कमी गंभीर चिंता का विषय है।