फर्जी पासपोर्ट घोटाले ने प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था की गहरी जड़ों को उजागर किया है। इस संगठित रैकेट का प्रभाव कई स्तरों पर फैला हुआ है, जिसमें पुलिस, सरकारी कर्मचारी, एजेंट और सब-एजेंट शामिल हैं।
घोटाले की प्रमुख बातें:
- अवैध पासपोर्ट की लागत:
- बांग्लादेशी घुसपैठियों को एक फर्जी पासपोर्ट तैयार करवाने के लिए ₹2.5 से ₹3 लाख तक खर्च करने पड़ते हैं।
- इस रकम का बड़ा हिस्सा रैकेट के मुख्य सरगना, जैसे मनोज गुप्ता और समरेश विश्वास, के पास जाता है।
- भ्रष्टाचार का स्तर:
- पासपोर्ट सेवा केंद्र कर्मचारी: अस्थायी कर्मचारी तारकनाथ सेन प्रति पासपोर्ट ₹5,000-₹6,000 लेते थे।
- पोस्ट ऑफिस कर्मचारी: दीपक मंडल को हर पासपोर्ट के बदले ₹3,000 मिलते थे।
- आधार कार्ड कर्मचारी: फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने में मदद के लिए ₹7,000-₹10,000 दिए जाते थे।
- पूर्व पुलिसकर्मी: वेरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी करने के लिए अब्दुल हई को ₹25,000 दिए जाते थे।
- रैकेट के अन्य सदस्य:
- मुख्तार आलम जैसे एजेंट, जो बांग्लादेशी नागरिकों को रैकेट तक पहुंचाते थे, को ₹2,500-₹4,000 प्रति व्यक्ति दिया जाता था।
- मनोज गुप्ता की ट्रैवल एजेंसी का कर्मचारी दीपंकर दास ₹25,000 मासिक वेतन के साथ फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने में शामिल था।
- वीज़ा एजेंटों को ₹7,000-₹10,000 प्रति वीज़ा मिलता था।
- पैसे का बंटवारा:
- फर्जी पासपोर्ट के लिए ली गई कुल रकम का बड़ा हिस्सा सरगना के पास जाता है, जबकि अन्य कर्मचारियों और एजेंटों को छोटी राशि दी जाती है।
घोटाले के प्रभाव:
- यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
- फर्जी पासपोर्ट का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों, अवैध प्रवास और मानव तस्करी के लिए किया जा सकता है।
- प्रशासनिक तंत्र की विफलता और भ्रष्टाचार की परतें उजागर करती हैं कि निचले से लेकर शीर्ष स्तर तक संगठित अपराध कैसे पनप रहा है।
आगे का रास्ता:
- सख्त निगरानी और सुधार: पासपोर्ट सेवा केंद्रों, आधार केंद्रों और वेरिफिकेशन प्रक्रिया में तकनीकी निगरानी और पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- कड़ी सजा: इस घोटाले में शामिल सभी लोगों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए, जिससे अन्य लोगों को सबक मिले।
- जांच और कार्रवाई: रैकेट के सरगना और अन्य सहयोगियों के खिलाफ व्यापक और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, डिजिटल ट्रैकिंग और अन्य तकनीकी उपायों से फर्जीवाड़ा रोकने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
यह घोटाला दर्शाता है कि संगठित अपराध और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए प्रशासनिक सुधार और सख्त कानूनों की तत्काल आवश्यकता है।