राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत का बनारस दौरा और उनके वक्तव्य एक बार फिर देशभर में चर्चा का विषय बन गए हैं। इस दौरे के दौरान उन्होंने संघ की विचारधारा, मुस्लिम समुदाय की भागीदारी, और अखंड भारत जैसे मुद्दों पर विस्तार से बात की।
शाखा में मुसलमानों का स्वागत — लेकिन शर्तों के साथ
बनारस के लाजपत नगर में एक कार्यक्रम के दौरान जब एक स्वयंसेवक ने पूछा कि क्या वह अपने मुस्लिम पड़ोसियों को संघ की शाखा में आमंत्रित कर सकता है, तो मोहन भागवत ने जवाब में कहा:
“भारत माता की जय बोलने वाले और भगवा झंडा की इज्जत करने वाले हर व्यक्ति के लिए संघ की शाखा के दरवाज़े खुले हैं। पूजा पद्धति से कोई भेदभाव नहीं है।”
📌 लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि:
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जो लोग खुद को औरंगज़ेब का वंशज मानते हैं, वे संघ की विचारधारा में फिट नहीं बैठते।
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इस बयान का संदर्भ उन विचारों से है जो भारत की ऐतिहासिक अस्मिता से टकराते हैं।
संघ में हम किसी की जाति नही पूछते
– डॉ मोहन भागवत जी pic.twitter.com/AbxM3POuyS
— राष्ट्रदेव (@rashtradev) April 6, 2025
संघ की विचारधारा में पूजा पद्धति नहीं, संस्कृति अहम
भागवत ने कहा कि:
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भारत में धर्म, संप्रदाय, जाति, पूजा-पद्धति अलग हो सकती है लेकिन संस्कृति एक है।
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संघ का यह दृष्टिकोण लंबे समय से “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” पर आधारित है, न कि केवल धार्मिक पहचान पर।
उन्होंने कहा कि:
“संघ का कार्य केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है, पर उसकी मूल विचारधारा भारतीय संस्कृति पर आधारित है।”
औरंगज़ेब का उल्लेख: प्रतीकात्मक संदेश
भागवत का “औरंगज़ेब के वंशज” वाला बयान प्रतीकात्मक है, जिसका तात्पर्य उन विचारों और प्रवृत्तियों से है:
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जो भारत की संस्कृति, इतिहास और विरासत को नकारते हैं।
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जो आक्रांताओं की मानसिकता को अपनाते हैं।
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जो भारत के विभाजन को स्वीकार्य मानते हैं।
यह बयान ‘संघ की आलोचना करने वालों’ और ‘इस्लामी कट्टरता के प्रतीकों’ की ओर भी एक अप्रत्यक्ष संदेश माना जा रहा है।
अखंड भारत की वकालत और पाकिस्तान पर टिप्पणी
RSS प्रमुख ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना उसकी मौजूदा हालत का हवाला देते हुए कहा:
“जो लोग अखंड भारत को अव्यवहारिक कहते हैं, उन्हें आज के सिंध प्रांत की स्थिति देखनी चाहिए।”
उनका इशारा था:
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विभाजन के बाद बने मुल्कों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर।
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उन्होंने कहा कि आज पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देश असफल राष्ट्रों के उदाहरण बनते जा रहे हैं।
📌 इसलिए, उन्होंने कहा कि:
“अखंड भारत न केवल भावनात्मक रूप से आवश्यक है, बल्कि व्यावहारिक भी है।”
राजनीतिक और सामाजिक असर
समावेशिता बनाम पहचानवाद
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भागवत का बयान संघ की समावेशी राष्ट्रीयता को सामने लाने की कोशिश है — लेकिन सांस्कृतिक सहमति की शर्तों के साथ।
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यानी अगर कोई मुस्लिम स्वयं को भारतीय संस्कृति से जुड़ा मानता है, भारत माता की जय को स्वीकार करता है, तो संघ उसे स्वीकार कर सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया की संभावना
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विपक्षी दल इसे मुस्लिम विरोधी बयान कह सकते हैं।
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वहीं समर्थक इसे भारतीयता की रक्षा की बात कहकर समर्थन देंगे।
महत्वपूर्ण निहितार्थ:
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मुस्लिम समाज की संघ में संभावित भागीदारी:
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यह एक संवेदनशील लेकिन सकारात्मक संकेत है कि यदि कोई मुस्लिम भारतीय राष्ट्रवाद को अपनाता है, तो संघ उसे जगह दे सकता है।
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हालांकि, “औरंगज़ेब के वंशज” जैसे बयान ध्रुवीकरण को जन्म भी दे सकते हैं।
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संघ की स्थायी विचारधारा की पुनर्पुष्टि:
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राष्ट्र पहले – यह संघ का मूल मंत्र है, चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म से हो।
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अखंड भारत पर दोबारा जोर:
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यह बयान भविष्य में राजनीतिक विमर्श और कूटनीतिक चर्चाओं में अहम बन सकता है, खासकर भारत-पाक संबंधों के संदर्भ में।
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