पांच साल के लंबे इंतजार के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर शुरू होने जा रही है. 30 जून 2025 से यह पवित्र यात्रा शुरू होगी, जो उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के रास्ते चीन के तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तक जाएगी. यात्रा को लेकर सोमवार को दिल्ली में एक अहम बैठक हुई, जिसमें यात्रा की सभी तैयारियों की समीक्षा की गई.
क्यों रुकी थी यात्रा?
कैलाश मानसरोवर यात्रा हर साल आयोजित की जाती है, लेकिन 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. उसके बाद भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुए तनाव और सीमा विवाद के चलते यात्रा दोबारा शुरू नहीं हो सकी, लेकिन अब भारत सरकार के प्रयासों से, इस साल यात्रा संभव हो पाई है.
भारत-चीन रिश्तों में नरमी का संकेत
कैलाश और मानसरोवर झील चीन के तिब्बत क्षेत्र में आते हैं. ऐसे में इस यात्रा को फिर से शुरू करने के लिए भारत और चीन के बीच आपसी सहमति जरूरी होती है. यात्रा की अनुमति मिलना इस बात का संकेत है कि दोनों देशों के बीच कुछ हद तक संवाद और सहयोग बना हुआ है, खासकर धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में.
यात्रा का मार्ग और योजना
यात्रा दिल्ली से 30 जून को शुरू होगी. इसमें कुल 250 यात्री शामिल होंगे, जिन्हें 5 दलों में बांटा गया है. हर दल में 50 लोग शामिल रहेंगे. यात्रा की पूरी अवधि 22 दिन की होगी. यात्रा का रूट इस प्रकार है:
- दिल्ली से टनकपुर (चंपावत) 1 रात
- धारचूला (पिथौरागढ़) 1 रात
- गुंजी 2 रातेंनाभीढांग 2 रातें इसके बाद यात्री लिपुलेख दर्रे (17,000 फीट) से तकलाकोट (चीन) में प्रवेश करेंगे.
कैलाश और मानसरोवर के दर्शन के बाद वापसी में:
- बुंडी (पिथौरागढ़) 1 रात
- चौकोरी 1 रात
- अल्मोड़ा 1 रात इसके बाद यात्री दिल्ली वापस लौटेंगे.
स्वास्थ्य जांच और तैयारी
यात्रियों की स्वास्थ्य जांच पहले दिल्ली और फिर गुंजी में की जाएगी, ताकि ऊंचाई और कठिन मौसम में यात्रा के लिए वे पूरी तरह से तैयार हों. इस यात्रा का संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) करेगा.
धार्मिक महत्व
कैलाश पर्वत को हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. कहा जाता है कि यहां की परिक्रमा और मानसरोवर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि हर साल हजारों श्रद्धालु इस यात्रा की इच्छा रखते हैं.
कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से शुरू होना भारत-चीन के बीच सीमित लेकिन सकारात्मक सहयोग फिर से शुरू हो रहा है. इस यात्रा को केवल एक धार्मिक यात्रा ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर संवाद का एक संकेत भी माना जा सकता है.