सुप्रीम कोर्ट ने NEET-PG काउंसलिंग प्रक्रिया में व्याप्त सीट ब्लॉकिंग की कुप्रथा पर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए इसे “गंभीर प्रणालीगत खामी” करार दिया है और इस पर रोक लगाने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि यह प्रथा न सिर्फ योग्यता आधारित चयन प्रक्रिया को कमजोर करती है, बल्कि पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल खड़े करती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें:
सीट ब्लॉकिंग क्या है?
- यह वह प्रक्रिया है जिसमें उम्मीदवार काउंसलिंग के शुरुआती राउंड में किसी सीट को अस्थायी रूप से स्वीकार कर लेते हैं।
- बाद में जब उन्हें अधिक पसंदीदा विकल्प मिलता है, तो वे पहली सीट को छोड़ देते हैं।
- इससे सीटें पहले राउंड में अवरुद्ध हो जाती हैं और उच्च रैंक वाले योग्य उम्मीदवार उन्हें नहीं पा पाते।
इससे होने वाले नुकसान:
- योग्यता के आधार पर चयन की मूल भावना को चोट पहुंचती है।
- उच्च रैंकिंग वाले छात्र कम पसंदीदा विकल्प चुनने को मजबूर हो जाते हैं।
- निम्न रैंकिंग वाले उम्मीदवार खाली पड़ी बेहतर सीटों का लाभ उठा लेते हैं।
- काउंसलिंग प्रक्रिया संयोग और रणनीति आधारित बन जाती है, योग्यता आधारित नहीं।
- राज्य स्तर की काउंसलिंग में देरी, अंतिम समय पर सीट जोड़ना या हटाना, और कोटा में समन्वय की कमी से स्थिति और बिगड़ती है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के प्रमुख बिंदु:
- सीट स्वीकृति की स्पष्ट नीति हो: कोई भी उम्मीदवार एक ही समय पर एक सीट ही स्वीकार करे, ब्लॉकिंग की संभावना खत्म हो।
- रियल टाइम सीट अपडेटिंग: सीटों की उपलब्धता की रियल टाइम जानकारी सभी को समान रूप से उपलब्ध कराई जाए।
- डेटा पारदर्शिता बढ़े: काउंसलिंग एजेंसियों को उम्मीदवारों की पसंद, स्वीकृति और त्याग का डेटा सार्वजनिक करना चाहिए।
- राज्य और केंद्र स्तर पर समन्वय: कोटे और सीटों के आवंटन को लेकर सभी स्तरों पर पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला NEET-PG जैसे प्रतिस्पर्धी और संवेदनशील प्रवेश प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इससे न केवल योग्य छात्रों को उनका हक मिल सकेगा, बल्कि चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था में भरोसा भी बढ़ेगा।