उत्तर प्रदेश के लिए 5 जून 2025 एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण दिन रहा, जब अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में राम दरबार की भव्य प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यह आयोजन अभिजीत मुहूर्त में वैदिक विधियों के अनुसार सम्पन्न हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं मौजूद रहे। यह राम मंदिर के गर्भगृह के प्रथम तल पर स्थापित एक अत्यंत पावन और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है, जहां भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और श्रीहनुमान जी की संगमरमर से निर्मित दिव्य मूर्तियों की स्थापना की गई। इन मूर्तियों को जयपुर के मूर्तिकारों द्वारा मकराना के सफेद संगमरमर से गढ़ा गया है, जो भारतीय मंदिर स्थापत्य की श्रेष्ठ परंपरा का प्रतीक हैं।
इस आयोजन का एक विशेष क्षण वह था जब राम मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी ने पूजा से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक विशेष पगड़ी पहनाई। यह कोई साधारण पगड़ी नहीं थी, बल्कि मराठा साम्राज्य, विशेषकर छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा पहनी जाने वाली विशिष्ट शैली की ‘हिंदवी साम्राज्य पगड़ी’ थी। यह पगड़ी न केवल एक सांस्कृतिक प्रतीक है बल्कि एक ऐतिहासिक उत्तरदायित्व और नेतृत्व के सम्मान का भी प्रतीक है। यह संकेत देता है कि योगी आदित्यनाथ को एक धार्मिक नेता के साथ-साथ एक सांस्कृतिक रक्षक के रूप में भी देखा जा रहा है, जो भारत की प्राचीन सनातन परंपराओं और राष्ट्रवाद के मूल्यों का संरक्षण कर रहे हैं।
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में एक और उल्लेखनीय योगदान सूरत के उद्योगपति मुकेश पटेल का रहा, जिन्होंने मंदिर को हीरे, सोने और चांदी के आभूषण भेंट किए। इन अलंकारों से राम दरबार की मूर्तियों का अलंकरण किया गया, जिससे मंदिर की दिव्यता और भी अधिक बढ़ गई। इस कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने हनुमानगढ़ी जाकर दर्शन और पूजन भी किया।
गौरतलब है कि आज का दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए व्यक्तिगत रूप से भी विशेष था क्योंकि यह उनका जन्मदिन भी था। साथ ही, राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास का भी जन्मोत्सव आज ही के दिन मनाया गया, जिसे लेकर अयोध्या में विशेष आयोजन किए गए। इस आयोजन ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि अयोध्या अब केवल एक धार्मिक नगरी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बनती जा रही है।
यह आयोजन न केवल राम मंदिर आंदोलन के एक और पड़ाव की पूर्ति है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म के पुनर्जागरण की दिशा में एक दृढ़ कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।