महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई को लेकर एक अहम फैसला लिया है। नए सरकारी आदेश के अनुसार, अब कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया तो जाएगा, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है। सरकार ने “अनिवार्य” शब्द को आदेश से हटा लिया है, जिससे छात्रों और अभिभावकों को तीसरी भाषा के चयन में अधिक लचीलापन मिला है। हालांकि हिंदी अब भी सर्वसाधारण तीसरी भाषा के रूप में स्कूलों में पढ़ाई जाएगी, लेकिन छात्रों को इसके स्थान पर अन्य भारतीय भाषाओं को चुनने का विकल्प भी उपलब्ध रहेगा।
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि राज्य के सभी माध्यमों — चाहे वे मराठी माध्यम हों या अंग्रेजी माध्यम — में मराठी भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाएगी। साथ ही अंग्रेजी और मराठी के बाद तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का स्थान बरकरार रहेगा, परंतु छात्रों के पास इसे न पढ़ने का विकल्प भी रहेगा।
नए आदेश के अनुसार, यदि किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र हिंदी के बजाय कोई अन्य भारतीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में सीखना चाहते हैं, तो उस भाषा को पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षक की नियुक्ति की जाएगी। यदि शिक्षक उपलब्ध नहीं हो पाता, तो उस भाषा की ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। इसका मतलब यह है कि अब छात्र हिंदी की जगह कन्नड़, तमिल, तेलुगू, गुजराती, बंगाली जैसी अन्य भारतीय भाषाओं को भी तीसरी भाषा के रूप में पढ़ सकते हैं, बशर्ते एक कक्षा में ऐसे इच्छुक छात्रों की संख्या 20 या उससे अधिक हो।
इस त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत छात्रों की भाषाई पसंद को महत्व दिया गया है और उन पर किसी एक भाषा को अनिवार्य रूप से थोपने की बजाय चयन की स्वतंत्रता दी गई है। सरकार के इस फैसले को भाषाई विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम माना जा रहा है। साथ ही यह आदेश यह भी सुनिश्चित करता है कि स्थानीय भाषा मराठी की अनिवार्यता बरकरार रहे, जिससे राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को मजबूती मिले।
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