तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) द्वारा मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए 18 गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाने का फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है।
TTD के फैसले के प्रमुख बिंदु:
- मंदिर की पवित्रता बनाए रखने का तर्क:
- TTD अध्यक्ष बीआर नायडू ने कहा कि तिरुपति मंदिर हिंदू आस्था का प्रमुख केंद्र है, और मंदिर प्रशासन में केवल हिंदू कर्मचारियों का होना अनिवार्य है।
- यह निर्णय नवंबर 2024 में हुई TTD की बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुरूप लिया गया।
- कर्मचारियों को दिए गए विकल्प:
- इन 18 कर्मचारियों को या तो किसी अन्य सरकारी विभाग में स्थानांतरण (Transfer) या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) लेने का विकल्प दिया गया है।
- मंदिर और संबंधित विभागों में अब उनका कोई स्थान नहीं रहेगा।
- कौन-कौन से कर्मचारी हटाए गए?
- इनमें शिक्षक, अधिकारी, नर्स, इलेक्ट्रीशियन, रेडियोग्राफर समेत विभिन्न पदों पर कार्यरत लोग शामिल हैं।
- ये कर्मचारी TTD द्वारा संचालित स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, और अन्य विभागों में कार्यरत थे।
- राजनीतिक विवाद:
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले की आलोचना की, यह कहते हुए कि इससे गलत संदेश जाएगा।
- आंध्र प्रदेश के धर्मस्व मंत्री अनम रामनारायण रेड्डी ने स्पष्ट किया कि हटाए गए कर्मचारी ईसाई या मुस्लिम हैं, जो हिंदू परंपराओं का पालन नहीं करते।
पृष्ठभूमि और संभावित प्रभाव:
- पिछले विवाद:
- अतीत में भी तिरुपति मंदिर में गैर-हिंदू कर्मचारियों की मौजूदगी को लेकर विवाद हुआ था।
- कई हिंदू संगठनों ने मांग की थी कि केवल हिंदू धर्मावलंबियों को ही मंदिर प्रशासन में शामिल किया जाए।
- भविष्य पर प्रभाव:
- यह फैसला अन्य बड़े मंदिरों (जैसे सबरीमाला, पुरी जगन्नाथ) में भी इसी तरह के कदम उठाने के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
- आंध्र प्रदेश में ईसाई धर्मांतरण के बढ़ते मामलों को लेकर भी यह निर्णय एक सख्त संदेश माना जा सकता है।
क्या कहता है कानून?
- भारत के कई मंदिरों में प्राचीन परंपराओं के अनुसार प्रशासन में केवल हिंदू कर्मचारियों को ही रखने की नीति है।
- सुप्रीम कोर्ट पहले भी धार्मिक संस्थानों को अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार प्रबंधन का अधिकार देने की बात कह चुका है।
TTD का यह फैसला आस्था और प्रशासनिक शुद्धता बनाम धार्मिक समावेशिता की बहस को फिर से जीवंत कर सकता है। हिंदू संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है, जबकि विपक्ष और कुछ अन्य संगठनों ने इसे भेदभावपूर्ण बताया है।