केंद्र और असम सरकार द्वारा अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर अपनाई गई “पुश बैक” (Push Back) नीति के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है, जिससे यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका का मामला:
किसने याचिका दायर की?
- ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (ABMSU) नामक संगठन ने याचिका दायर की।
- याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दाखिल की गई।
याचिका में क्या आरोप लगाए गए?
- असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी 2024 के आदेश का गलत इस्तेमाल किया।
- बिना उचित प्रक्रिया के लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है और निर्वासित किया जा रहा है।
- फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का फैसला आए बिना ही कुछ लोगों को “घुसपैठिया” मानकर बांग्लादेश भेजा गया।
- एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक को भी कथित तौर पर बांग्लादेश “वापस भेज दिया गया” — यह एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से बताया गया।
याचिका में क्या मांगा गया था?
- जब तक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) किसी को विदेशी घोषित न करे, तब तक:
- उसे हिरासत में न लिया जाए।
- उसे निर्वासित (डिपोर्ट) न किया जाए।
- विदेश मंत्रालय की नागरिकता पुष्टि के बिना किसी भी व्यक्ति को सीमा पार न भेजा जाए।
- असम सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि:
- सभी संदिग्ध व्यक्तियों को उचित सुनवाई और अपील का मौका दिया जाए।
- कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई हो।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा:
“आप पहले गौहाटी हाईकोर्ट क्यों नहीं जा रहे हैं?”
- कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह एक राज्य-स्तरीय प्रशासनिक मामला है और इसके लिए सबसे उपयुक्त मंच गौहाटी हाईकोर्ट है।
- इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई और याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी गई।
पृष्ठभूमि और संवेदनशीलता:
- असम लंबे समय से अवैध प्रवास, घुसपैठ, और नागरिकता विवादों से जूझ रहा है।
- राज्य में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) की प्रक्रिया भी विवादों में रही है।
- केंद्र सरकार ने कई बार बांग्लादेशी घुसपैठियों के डिपोर्टेशन पर ज़ोर दिया है।
- लेकिन बिना कानूनी प्रक्रिया के निर्वासन (Deportation) पर मानवाधिकार और कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं।
मामले के मायने:
- यह घटना नागरिकता से जुड़े मामलों में कानूनी प्रक्रिया और मानवाधिकारों की अहमियत को रेखांकित करती है।
- यह दिखाती है कि अवैध प्रवास से निपटना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक या निवासी को न्यायिक प्रक्रिया का अवसर मिले।
- अब मामला गौहाटी हाईकोर्ट में जाएगा, जहाँ शायद इस पर स्थानीय तथ्यों के साथ अधिक गहराई से विचार होगा।