ऐसा लगता है कि बिहार सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें पार कर दी हैं। बता दें कि राज्य सरकार ने 26 जुलाई को राज्य के अल्पसंख्यक आयोग, महादलित आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग और महिला आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों का मनोनयन किया है। अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष समेत कुल 9 लोगों को शामिल किया गया है। सबसे विशेष बात यह है कि 9 में से 8 मुस्लिम समुदाय से हैं। एक सदस्य जैन समाज से है। आयोग से संबंधित मामलों के जानकार बताते हैं कि अल्पसंख्यक आयोग में सभी अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य है, लेकिन बिहार सरकार ने नियमावली और पंरपरा को दरकिनार करते हुए अल्पसंख्यक आयोग में मुसलमानों को ही सम्मिलित किया है।
बता दें कि बिहार के अल्पसंख्यक समाज में सिख, ईसाई और बौद्ध भी शामिल हैं। ईसाइयों की आधिकारिक जनसंख्या 20 लाख से अधिक बताई जाती है। सिखों का सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारा पटना साहिब यहीं स्थित है। गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का जन्म यहीं हुआ था। 1984 के पहले यहां सिख समाज की प्रत्येक जिले में अच्छी आबादी थी। 1984 के दंगों ने उन्हें बिहार से बाहर भागने को मजबूर कर दिया। हालांकि अभी भी यहां सिखों की बड़ी आबादी रहती है। इसी प्रकार बौद्ध मतावलंबियों के लिए बिहार सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि महात्मा बुद्ध को यहीं ज्ञान मिला था। कालचक्र पूजा में प्रतिवर्ष लाखों बौद्ध यहां आते हैं। बिहार सरकार ने इन सब तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया है। ऐसा लगता है कि बिहार सरकार की नजर में सिर्फ और सिर्फ मुसलमान ही अल्पसंख्यक हैं।
नवगठित अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं पूर्व विधायक रियाजुल हक उर्फ राजू और पूर्व मंत्री नौशाद आलम को उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है। मुजफ्फरपुर हुसैन राही, महताब आलम उर्फ काबुल अहमद, इफ्तेकार खान उर्फ मुन्ना त्यागी, डाॅ. इकबाल समी, अफरोज खातून और मुर्तजा अली कैसर को सदस्य बनाया गया है। इस आयोग में गैर-मुस्लिम बिरादरी से सिर्फ मुकेश जैन को सदस्य मनोनीत किया गया है।
बिहार सरकार के इस निर्णय की पूरे प्रदेश में निंदा हो रही है। तख्त पटना साहिब कमेटी के महासचिव इंद्रजीत सिंह, बिहार सिख गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष सूरज सिंह नलवा, कार्यकर्ता सुदीप सिंह, गायघाट गुरुद्वारा, मुंगेर गुरुद्वारा समेत बिहार के विभिन्न संगठनों ने अल्पसंख्यक आयोग में सिख समाज को प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने पर आक्रोश व्यक्त किया है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजन क्लेमेंट साह ने बिहार सरकार द्वारा राज्य अल्पसंख्यक आयोग के गठन में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की उपेक्षा पर गहरा खेद व्यक्त किया है। उनके अनुसार बिहार सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग की कमान एक समुदाय विशेष के हाथों सौंपकर अपनी तुष्टिकरण की मानसिकता का परिचय दिया है। बिहार में ईसाई, सिख और बौद्ध शांतिप्रिय और बिहार के विकास के लिए कृतसंकल्प समुदाय है। शायद इसी का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व विधायक नीतीश मिश्रा ने भी कहा है कि अल्पसंख्यक आयोग समाज के अल्पसंख्यक समाज के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्व के आयोग में सभी संप्रदाय को उचित प्रतिनिधित्व मिलता रहा है, परंतु नए गठित आयोग में इन समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से इनके हित निश्चित ही प्रभावित होंगे। क्या बिहार सरकार सिख, ईसाई और बौद्ध को अल्पसंख्यक नहीं मानती है?