आपने एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक राजनीतिक क्षण का उल्लेख किया है, जो भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना का प्रमाण है। नीति आयोग की इस बैठक में दिखा यह दृश्य न केवल एक राजनीतिक परिपक्वता का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अलग-अलग विचारधाराओं वाले नेता भी देशहित में एकजुट हो सकते हैं।
इस ऐतिहासिक क्षण की 5 बड़ी बातें:
‘भारत पहले’ बनाम ‘राजनीति पहले’
नीति आयोग की बैठक में राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के मतभेदों को किनारे रखकर नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि जब बात विकसित भारत की हो, तो सभी एक मंच पर आ सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और विपक्षी नेताओं की आत्मीयता
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन — केंद्र की हिंदी नीति और शिक्षा सुधारों पर अक्सर आलोचक रहे हैं, लेकिन यहां वे मुस्कराते हुए प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करते नजर आए।
- झारखंड के हेमंत सोरेन — जो अक्सर आदिवासी अधिकार और राज्य की उपेक्षा का मुद्दा उठाते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री से आत्मीय गले मिलते देखा गया।
- तेलंगाना के रेवंत रेड्डी — केंद्र से वित्तीय नाराजगी के बावजूद, हाथ मिलाते और गर्मजोशी से बातचीत करते दिखे।
- पंजाब के भगवंत मान — जिन्होंने कई बार केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाया, वे भी प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करते दिखे, और पीएम ने उन्हें कंधे पर हाथ रखकर प्रोत्साहित किया।
न केवल राजनीतिक सौहार्द, बल्कि सहकारिता का संकेत
यह बैठक केवल एक प्रोटोकॉल इवेंट नहीं थी। इसमें दिखा संवाद, मेल-मिलाप और गर्मजोशी देश को यह संदेश दे रही है कि:
“भारत जब एक साथ सोचता है, तब ही वह विकसित भारत बन सकता है।”
‘विकसित भारत’ लक्ष्य: राजनीति से ऊपर उठकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “2047 तक विकसित भारत” की जो कल्पना है, वह तब ही साकार हो सकती है जब:
- राज्य और केंद्र के बीच सहयोग हो
- नीतियों के क्रियान्वयन में सामूहिक जिम्मेदारी हो
- और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर विचार हो
भारतीय लोकतंत्र की असली शक्ति
इन तस्वीरों ने हमें याद दिलाया कि:
“लोकतंत्र में मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं होने चाहिए।”
यह दृश्य भारत की संघीय व्यवस्था, संविधान के मूल भाव, और एकता में विविधता के सिद्धांत को सशक्त करता है।
ये तस्वीरें क्या कहती हैं?
“हम अलग-अलग विचारधाराओं से आए हैं, लेकिन जब बात भारत की हो — तो हम सब एक हैं।”