भाजपा ने विधायक हेमंत खंडेलवाल को मध्य प्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है, लेकिन यह नियुक्ति जितनी चौंकाने वाली रही, उतनी ही बड़ी चुनौतियों से भी घिरी हुई है। उनके सामने मिशन 2028 की तैयारियों के साथ-साथ पार्टी में बढ़ती अनुशासनहीनता को रोकना, संगठन को एकजुट रखना और सत्ता-संगठन के बीच संतुलन बनाए रखना जैसी कई बड़ी जिम्मेदारियां होंगी। आरएसएस और मुख्यमंत्री मोहन यादव का समर्थन उनके साथ है, लेकिन उनकी अपेक्षाएं भी उतनी ही बड़ी हैं। निगम-मंडल-बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियां, कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं, पुराने और कांग्रेस से आए नए नेताओं के बीच समन्वय बनाना, यह सब उनकी रणनीतिक क्षमता की परीक्षा होगी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गई नियुक्तियों को रद्द किए जाने के बाद अब नई नियुक्तियों का दायित्व खंडेलवाल के कंधों पर है, जिससे उनकी कार्यशैली सामने आएगी।
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संगठन के भीतर किसी भी प्रकार का टकराव कांग्रेस के लिए अवसर बन सकता है, खासकर तब जब कांग्रेस राहुल गांधी की रणनीति के तहत अभी से संगठन को मजबूत कर रही है। आदिवासी वर्ग, कर्मचारी वर्ग, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की उम्मीदें भी संगठन से जुड़ी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खंडेलवाल के पास तीन वर्षों का समय है, जो यदि सही रणनीति के साथ उपयोग किया गया तो पार्टी 2028 के विधानसभा और 2029 के लोकसभा चुनाव में पिछली सफलता को दोहरा सकती है। उन्हें पुराने भाजपाइयों को साधने, कांग्रेस से आए नेताओं को जिम्मेदारी देकर जोड़े रखने, और संगठन को हर वर्ग व अंचल तक प्रभावी तरीके से पहुँचाने की चुनौती के साथ अवसर भी मिलेगा, ताकि वे राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने प्रदेश भाजपा की मजबूत छवि प्रस्तुत कर सकें।
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