फिल्मों पर सेंसरशिप और एक्ट्रेस तक पहुंची जेल
25 जून 1975 से लागू हुए 21 महीने के आपातकाल ने न केवल भारत की राजनीति और मीडिया को झकझोर दिया, बल्कि इसका गहरा असर कला और सिनेमा की दुनिया पर भी पड़ा। कई फिल्मों को सेंसरशिप का सामना करना पड़ा, कुछ पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो कुछ फिल्मों के प्रिंट ही नष्ट कर दिए गए। इस दौर में एक अभिनेत्री को जेल की हवा भी खानी पड़ी। आइए जानते हैं किन-किन फिल्मों और कलाकारों पर इमरजेंसी की गाज गिरी:
‘किस्सा कुर्सी का’ – फिल्म निर्माता अमृत नाहटा की यह राजनीतिक व्यंग्य फिल्म संजय गांधी और तत्कालीन सत्ता पर तीखा कटाक्ष करती थी। फिल्म के नेगेटिव और प्रिंट तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री वी.सी. शुक्ला ने जब्त करवा दिए और उन्हें नष्ट कर दिया गया। इसमें शबाना आजमी, राज बब्बर, उत्पल दत्त जैसे कलाकार शामिल थे। बाद में इसका रीमेक 1978 में रिलीज किया गया, लेकिन वह भी सेंसरशिप से नहीं बच सका।
‘आंधी’ – गुलजार द्वारा निर्देशित यह फिल्म इंदिरा गांधी के जीवन से प्रेरित मानी गई। सुचित्रा सेन द्वारा निभाई गई आरती देवी के किरदार को इंदिरा से जोड़कर देखा गया। इस कारण यह फिल्म आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित कर दी गई थी। आपातकाल समाप्त होने के बाद यह दोबारा रिलीज हुई।
‘क्रांति की तरंगे’ – आनंद पटवर्धन की यह डॉक्यूमेंट्री जेपी आंदोलन और आपातकाल की पृष्ठभूमि पर आधारित थी। इसे भूमिगत तरीकों से प्रसारित किया गया क्योंकि सरकारी मीडिया नियंत्रण में था। यह डॉक्यूमेंट्री सरकार की नीतियों की आलोचना करती थी।
‘नसबंदी’ – आई.एस. जौहर की यह फिल्म आपातकाल के दौरान चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान पर व्यंग्य करती थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और मनोज कुमार जैसे कलाकारों के डुप्लीकेट थे। राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषय के चलते इस पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन 1978 में इसे रिलीज किया गया।
‘चंदा मारुथा’ – पी. लंकेश के नाटक पर आधारित इस कन्नड़ फिल्म का निर्देशन पट्टाभि राम रेड्डी ने किया था। उनकी पत्नी और फिल्म की अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी को सरकार ने जेल भेज दिया। उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया, लेकिन पांच दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। यह आपातकाल के अत्याचार की एक मार्मिक मिसाल बन गई।
‘आंदोलन’ – लेख टंडन द्वारा निर्देशित यह फिल्म 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन पर आधारित थी। राकेश पांडे और नीतू सिंह अभिनीत इस फिल्म को भी आपातकाल के दौरान भारी सेंसरशिप और कटौती का सामना करना पड़ा।
आपातकाल के इन 21 महीनों में बॉलीवुड को भी राजनीतिक दबाव, सेंसरशिप और दमन का सामना करना पड़ा। यह दौर भारतीय सिनेमा के इतिहास में अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे कड़े प्रतिबंधों वाले समय के रूप में दर्ज है।
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