भारतीय थल सेना प्रमुख (Chief of Army Staff) जनरल उपेंद्र द्विवेदी द्वारा चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य से “राम मंत्र” की दीक्षा लेना न केवल एक आध्यात्मिक घटना है, बल्कि इसके प्रतीकात्मक और राष्ट्रवादी संदर्भों ने इसे खासा चर्चित बना दिया है। सबसे चर्चित पहलू यह रहा कि रामभद्राचार्य ने दक्षिणा में “पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK)” की मांग की।
घटना का सार:
- जनरल उपेंद्र द्विवेदी, जो हाल ही में थलसेना प्रमुख बने हैं, चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य से मिले और उनसे “राम मंत्र” की दीक्षा ली।
- रामभद्राचार्य ने दावा किया कि यह वही मंत्र है जो माता सीता ने हनुमान जी को दिया था, जिसके बल पर उन्होंने लंका विजय की थी।
- इस अवसर पर रामभद्राचार्य ने कहा:
“तुम शस्त्र से लड़ो, मैं शास्त्र से लड़ूंगा। दक्षिणा में मुझे PoK चाहिए।”
दीक्षा क्या होती है?
दीक्षा एक धार्मिक या आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें गुरु किसी शिष्य को मंत्र, सिद्धांत या धार्मिक मार्ग पर चलने का निर्देश देते हैं। इसका उद्देश्य होता है:
- आत्मिक शुद्धि
- गुरु-शिष्य संबंध की स्थापना
- किसी विशेष साधना की शुरुआत
दीक्षा के चरण:
- संस्कार – शुद्धिकरण की प्रक्रिया
- मंत्र प्रदाय – किसी विशेष मंत्र का उच्चारण और उसका अर्थ समझाना
- आदेश और निर्देश – उस मंत्र के अनुशासनों का पालन करना
- ग्रहण और प्रतिज्ञा – शिष्य मंत्र को जीवन में उतारने की प्रतिज्ञा करता है
क्या सेना प्रमुख इस तरह से दीक्षा ले सकते हैं?
- संवैधानिक रूप से कोई भी नागरिक, चाहे वह सेना प्रमुख हो या अन्य, अपने धार्मिक विश्वास और आध्यात्मिक आचरण के लिए स्वतंत्र है, जब तक कि यह उनके आधिकारिक कर्तव्यों या निष्पक्षता में हस्तक्षेप न करे।
- चूंकि यह निजी और प्रतीकात्मक स्तर पर हुआ है, और किसी राजनीतिक वक्तव्य की तरह नहीं देखा गया है, इसलिए इसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
रामभद्राचार्य की “PoK की दक्षिणा” की मांग: क्या संदेश?
यह कथन राष्ट्रवादी प्रतीकवाद से भरा हुआ है। इसके संभावित अर्थ:
- PoK को भारत का हिस्सा मानने की भावना को धार्मिक प्रतीक से जोड़ा गया।
- जैसे हनुमान जी ने लंका को मुक्त कराया, वैसे ही सेना से PoK की वापसी की उम्मीद जताई गई।
- यह बयान आध्यात्मिक समर्थन और देशभक्ति की भावना को एक साथ जोड़ता है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य कौन हैं?
- जन्म: 14 जनवरी 1950, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
- दृष्टिहीन होने के बावजूद 22 भाषाओं में पारंगत
- अब तक 80 से अधिक ग्रंथों की रचना
- चित्रकूट में “जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय” की स्थापना
- उन्हें रामचरित मानस, वेद, उपनिषद, गीता आदि में गहन ज्ञान है
- वे एक प्रभावशाली कथावाचक, दार्शनिक और राष्ट्रवादी संत के रूप में प्रतिष्ठित हैं
निष्कर्ष:
जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह दीक्षा लेना आध्यात्मिक प्रेरणा, राष्ट्रीय चेतना, और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा हुआ कदम प्रतीत होता है। वहीं रामभद्राचार्य द्वारा PoK की मांग एक प्रतीकात्मक और प्रेरणात्मक संदेश के रूप में देखा जा सकता है, जो सेना और जनता दोनों में राष्ट्रहित के लिए संकल्प की भावना को प्रबल करता है।