कर्नाटक चुनाव में बीजेपी पिछले 36 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ने का दावा कर रही है. यहां दोबारा सरकार बनाने पर कई नए कीर्तिमान स्थापित तो होंगे साथ ही नए चेहरे पर खेले गए दांव को सफल भी कहा जाएगा. दरअसल कई दिग्गजों का टिकट काट कर बीजेपी ने भविष्य के लिए नया दांव खेला है जिसमें जाति समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया है. ऐसे में राज्य की इकाई के साथ केन्द्र का बेहतर तालमेल भी अहम वजहों में एक है जिससे दक्षिण के राज्यों में बीजेपी अपनी जड़े मजबूती से जमा सके.
कर्नाटक चुनाव में बीजेपी के कई नए प्रयोग के पीछे वो रणनीति है जिससे नए चेहरे को जगह मिले और पुराने नेताओं के एकाधिकार को खत्म किया जा सके. पार्टी ऐसा कर राज्य की इकाई पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रही है. यही वजह है कि कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटा गया है वहीं उनकी जगह पर उसी बिरादरी के नेताओं को टिकट देकर जातिगत समीकरण को साधे रखने की कोशिश की गई है. दरअसल बीजेपी इस कवायद में जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, यूबी बानकर, एस रामदास और रघुपति भटट्ट जैसे दिग्गज नेताओं का टिकट काटकर सबको हैरान कर चुकी है. इतना ही नहीं इस चुनाव में स्टार कैंपेनर की तरह बी एस येदुरप्पा काम कर रहे हैं लेकिन उनकी सीट से चुनावी मैदान में उनके पुत्र बीवाई विजयेन्द्र हैं.
जाति समीकरण का रखा गया ध्यान
नए प्रयोग में जाति समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है लेकिन नए चेहरे को उतारकर सूबे की सियासत को नई दिशा देने की कोशिश की गई है. पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार की जगह पार्टी के महासचिव और शेट्टार के शिष्य महेश तेनगिनकी को टिकट इसबार दिया गया है जो लिंगायत जाति से ही ताल्लुख रखते हैं. इतना ही नहीं चार बार से जीत रहे एमएलए एस रामदास की जगह ब्राह्णण जाति के ही श्रीवत्स को हुबली से टिकट दिया गया है.
उडपी में रघुपति भट की जगह यशपाल सुवर्णा को टिकट दिया गया जो अलग जाति से हैं लेकिन जिले में जाति के समीकरण को बरकरार रखा गया है.यशपाल सुवर्णा हिंदुत्व को लेकर हार्डलाइनर की छवी रखते हैं इसलिए पार्टी ने उन्हें तवज्जो देकर मैदान में उतारा है लेकिन जिले में जातिगत आधार वाले अपने संतुलन को बिगड़ने नहीं दिया है.
बीजेपी नए प्रयोग कर रिस्क क्यों ले रही है ?
बीजेपी कैलकुलेटेड रिस्क लेकर मैदान में उतरी है. यहां जाति के आधार को नहीं बदला गया है लेकिन चेहरे जरूर बदले गए हैं. दरअसल दक्षिण का दरवाजा कहलाने वाला कर्नाटक केन्द्रीय नेतृत्व के लिए हमेशा से कठिनाई वाला प्रदेश रहा है. यहां पर येदुरप्पा सरीखे नेताओं को पार्टी लाइन से जोड़े रखना आसान नहीं रहा है. येदुरप्पा सरीखे नेताओं पर आरोप लगने के बावजूद पार्टी उन्हें दरकिनार करने में सफल नहीं हो पाई है.
इसलिए बीजेपी नए सिरे से उन नेताओं को आगे कर रही है जिनका जातिगत आधार पुख्ता है और बीजेपी पर भरोसा जताते रहे हैं. पार्टी ने ज्यादातर नेताओं को रिप्लेस उनकी जाति के ही नेताओं से किया है और सबसे ज्यादा भरोसा पूर्व की तरह लिंगायत समाज पर ही जताया है. पार्टी जानती है कि साल 1999 से लगातार बीजेपी लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की तुलना में कहीं बेहतर की है.