मामले की पृष्ठभूमि
- न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से अर्ध-जली नकदी की भारी मात्रा बरामद हुई।
- यह बरामदगी ‘आउटहाउस’ में आग लगने के बाद सामने आई थी।
- सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति ने वर्मा को दोषी ठहराया, हालांकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई।
- इसके बाद उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया।
सीजेआई संजीव खन्ना की भूमिका
- तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने:
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।
- महाभियोग की कार्रवाई की सिफारिश की।
- जस्टिस वर्मा से इस्तीफे की मांग की, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।
सरकार की संभावित कार्रवाई
- केंद्र सरकार महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है।
- यदि वर्मा स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देते, तो यह विकल्प स्पष्ट रूप से अपनाया जा सकता है।
- सरकार सभी विपक्षी दलों को विश्वास में लेने की प्रक्रिया में है।
महाभियोग की प्रक्रिया क्या है?
- लोकसभा में 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों को प्रस्ताव का समर्थन करना होता है।
- प्रस्ताव पारित होने के बाद, जांच समिति का गठन किया जाता है जिसमें:
- सुप्रीम कोर्ट का एक मौजूदा न्यायाधीश
- एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
- सरकार द्वारा नामित एक “प्रतिष्ठित न्यायविद”
- जांच समिति आरोपों की पुष्टि करती है।
- फिर दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
- उन्होंने खुद को निर्दोष बताया है।
- नकदी से किसी भी संबंध से इनकार किया है।
- उनके अनुसार नकदी उनके ‘आउटहाउस’ में आग लगने के बाद मिली, उनका उससे कोई लेना-देना नहीं।
राजनीतिक और संस्थागत निहितार्थ
- मामला अत्यधिक संवेदनशील और प्रतिष्ठा से जुड़ा है।
- सरकार को इस पर सभी दलों का समर्थन सुनिश्चित करना आवश्यक होगा ताकि न्यायपालिका की साख पर आंच न आए और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन हो।