गृह मंत्रालय की लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज्म (एलडब्ल्यूई) विंग ने बताया है कि माओवादी प्रभावित राज्यों को स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (एसआईएस) के तहत अब तक 630 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग दी गई है। यह स्कीम पुलिस फोर्स को आधुनिक बनाने वाली मॉडर्नाइजेशन ऑफ पुलिस फोर्स (एमपीएफ) नामक अंब्रेला स्कीम का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आरटीआई के इस जवाब ने पहले से मौजूद उस तस्वीर को और मजबूत किया है जिसमें गृह मंत्रालय के डेटा के आधार पर यह सामने आया था कि मई 2014 से, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार पद संभाला, तब से अब तक हजारों माओवादी सरेंडर कर चुके हैं या मारे गए हैं। इसके साथ ही एंटी-नक्सल ऑपरेशन्स भी रिकॉर्ड स्तर पर हुए हैं। दोनों जानकारियाँ मिलकर बताती हैं कि मोदी सरकार की रणनीति दो हिस्सों में बंटी—जमीन पर सख्त कार्रवाई और राज्यों की पुलिस क्षमताओं को व्यवस्थित रूप से मजबूत करना।
आरटीआई में क्या कहा गया?
गृह मंत्रालय ने जवाब में बताया कि एमपीएफ अंब्रेला स्कीम के तहत एलडब्ल्यूई प्रभावित राज्यों को एसआईएस में मंजूर प्रोजेक्ट्स के आधार पर फंड दिया जाता है। मंत्रालय का कहना है कि प्रोजेक्ट पूरा होने और बिल जमा करने पर ही फंडिंग रिलीज होती है। यह पूरी प्रक्रिया रीइंबर्समेंट मॉडेल पर चलती है। खास बात यह है कि एसआईएस में यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जमा करने का प्रावधान नहीं है, क्योंकि भुगतान पहले से सत्यापित प्रोजेक्ट्स के आधार पर ही होता है।
इस जवाब के साथ मंत्रालय ने दस राज्यों की फंडिंग डिटेल्स साझा कीं, जिनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं।
छत्तीसगढ़ और झारखंड को सबसे अधिक फंड
डेटा के अनुसार, सबसे अधिक फंडिंग छत्तीसगढ़ (₹158.18 करोड़) और झारखंड (₹121.83 करोड़) को मिली। ये राज्य लंबे समय से माओवादी गतिविधियों के प्रमुख केंद्र रहे हैं। फंडिंग का पैटर्न राज्यों में चल रहे ऑपरेशन्स की तीव्रता से मेल खाता है, क्योंकि इन्हीं राज्यों में सबसे अधिक सरेंडर और एनकाउंटर दर्ज हुए हैं।
लगातार फंडिंग से इन राज्यों में स्पेशल टास्क फोर्स, ट्रेनिंग सेंटर, और दूरदराज क्षेत्रों में कम्युनिकेशन नेटवर्क को मजबूत किया गया है। इससे केंद्रीय और राज्य सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल भी बेहतर हुआ है।
रीइंबर्समेंट मॉडल से बढ़ी जवाबदेही
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि एसआईएस फंडिंग प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ही मिलती है। इससे न केवल जवाबदेही बढ़ती है, बल्कि फंड का उपयोग सीधे जमीन पर काम से जुड़ा होता है। यह तरीका अन्य केंद्रीय योजनाओं में होने वाली देरी को भी काफी हद तक कम करता है।
स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (SIS) क्या है?
एसआईएस का मुख्य उद्देश्य एलडब्ल्यूई प्रभावित राज्यों की पुलिस और सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है। इसमें मॉडर्न हथियार, फोर्टिफाइड थाने, मोबिलिटी बढ़ाने के साधन, कम्युनिकेशन उपकरण, और एंटी-माओवादी ऑपरेशन्स के लिए विशेष प्रशिक्षण शामिल हैं। यह योजना केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में चलती है।
गृह मंत्रालय के अनुसार, एसआईएस के तहत मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स की कुल लागत 1,741 करोड़ रुपये है, जबकि 638.85 करोड़ रुपये की फंडिंग पहले ही रिलीज हो चुकी है। मंजूर प्रोजेक्ट्स में 306 फोर्टिफाइड थानों का निर्माण शामिल था, जिनमें से 210 थाने पूरा हो चुके हैं।
लाल आतंक का अंत करीब?
गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि ‘ऑपरेशन कागड़’ के तहत मार्च 2026 तक माओवाद का लगभग पूरी तरह सफाया हो जाएगा। आरटीआई से मिले ताज़ा डेटा में भी सरेंडर, एन्काउंटर और लगातार जारी मॉडर्नाइजेशन फंडिंग बताती है कि सरकार अपने लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रही है।
अमित शाह ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीजफायर या बातचीत का कोई विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि माओवादियों के पास अब सिर्फ दो रास्ते हैं—या तो सरेंडर करें या कार्रवाई का सामना करें। केंद्र सरकार की यह साफ रणनीति दिखाती है कि हथियारबंद आंदोलन के लिए अब कोई स्थान नहीं छोड़ा जा रहा।
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