मध्य प्रदेश के वीर योद्धा राजा भभूत सिंह पर जो ऐतिहासिक विवरण साझा किया है, वह न केवल गौरवशाली है, बल्कि आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। पंचमढ़ी में हुई भाजपा सरकार की कैबिनेट बैठक के माध्यम से उन्हें सम्मानित करना एक सराहनीय और ऐतिहासिक कदम है। आइए इस पूरी घटना और राजा भभूत सिंह की वीरता को कुछ मुख्य बिंदुओं में समेटें:
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राजा भभूत सिंह: नर्मदांचल के शिवाजी
🔹 इतिहास में भूमिका
- सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सतपुड़ा क्षेत्र से बगावत का बिगुल फूंकने वाले महान योद्धा।
- तात्या टोपे के आगमन पर सतपुड़ा में 8 दिन तक मिलकर क्रांति की रणनीति बनाई।
- जनजातीय समुदाय को संगठित कर उन्हें गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी।
🔹 गुरिल्ला योद्धा और रणनीतिकार
- सतपुड़ा की भौगोलिक जानकारी का लाभ उठाकर अंग्रेजी सेना को छापामार हमलों से चौंका दिया।
- मधुमक्खियों के छत्तों का उपयोग कर अंग्रेजों को भगाने की युक्ति आज भी चर्चित है।
- उनकी रणनीति और युद्ध कौशल की तुलना छत्रपति शिवाजी महाराज से की जाती है।
राजनीतिक मान्यता और सम्मान
✅ कैबिनेट बैठक का विशेष उद्देश्य
- मध्य प्रदेश सरकार की पंचमढ़ी कैबिनेट बैठक केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्स्मरण का प्रतीक रही।
- पंचमढ़ी वाइल्डलाइफ सेंचुरी का नाम अब राजा भभूत सिंह के नाम पर होगा — यह उन्हें स्थायी स्मृति में स्थापित करने का निर्णय है।
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अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक युद्ध
🔸 देनवा घाटी की लड़ाई
- मद्रास इन्फेंट्री और अंग्रेजी फौज को भारी हार का सामना करना पड़ा।
- ब्रिटिश अधिकारी एलियट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा: “राजा भभूत सिंह जैसे योद्धा को पकड़ने के लिए विशेष बल बुलाना पड़ा।”
🔸 गिरफ्तारी और वीरगति
- लगातार लड़ाई के बाद 1862 में गिरफ्तार किए गए।
- जबलपुर में फाँसी या गोली से मौत — इतिहासकारों में मतभेद।
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राजनीतिक विरासत और वंश परंपरा
- गौड़ शासक ठाकुर अजीत सिंह के वंशज।
- दादा ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में सीताबर्डी युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ अप्पा साहेब भोंसले का साथ दिया।
जल-जंगल-जमीन के रक्षक
- राजा भभूत सिंह की लड़ाई केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं थी, वे जनजातीय संस्कृति, भूमि अधिकार और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए भी लड़े।
निष्कर्ष: एक भूला-बिसरा नायक, जो अब पुनर्जीवित हो रहा है
राजा भभूत सिंह की वीरगाथा इतिहास के पन्नों से निकालकर जनमानस में पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास सराहनीय है। इससे आदिवासी समाज की संस्कृति, स्वाभिमान और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को राष्ट्रव्यापी पहचान मिलेगी।