भारतीय सेना ने स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली ‘संजय’ को शामिल करने का बड़ा कदम उठाया है। यह प्रणाली सेना की खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) क्षमताओं को नई ऊंचाई पर ले जाएगी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे साउथ ब्लॉक से हरी झंडी दिखाई, जिससे इसे सेना में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
संजय प्रणाली की विशेषताएं और उपयोगिता
- अत्याधुनिक सेंसर और एनालिटिक्स:
- ‘संजय’ प्रणाली में आधुनिक सेंसर और उन्नत विश्लेषण तकनीकें शामिल हैं।
- यह भूमि सीमाओं की निगरानी, घुसपैठ रोकने और अद्वितीय सटीकता के साथ युद्धक्षेत्र की स्थितियों का आकलन करेगी।
- सूचना का एकीकरण:
- यह प्रणाली जमीनी और हवाई युद्ध क्षेत्र की जानकारी को एकीकृत करती है।
- डेटा सत्यापन और दोहराव रोकने के बाद इसे सुरक्षित सेना डेटा नेटवर्क और सैटेलाइट संचार नेटवर्क पर साझा किया जाएगा।
- युद्धक्षेत्र की पारदर्शिता में वृद्धि:
- यह केंद्रीकृत वेब एप्लिकेशन के माध्यम से युद्धक्षेत्र की स्थिति को स्पष्ट बनाएगी।
- कमांडर और मुख्यालय को निर्णय लेने में यह प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- ऑपरेशन क्षमताओं में सुधार:
- यह प्रणाली पारंपरिक और उप-पारंपरिक ऑपरेशन दोनों में सेना को नेटवर्क केंद्रित वातावरण में काम करने में सक्षम बनाएगी।
सेना के लिए रणनीतिक महत्व
- डेटा और नेटवर्क केंद्रितता: यह प्रणाली भारतीय सेना को डिजिटल युद्धक्षेत्र में मजबूती प्रदान करेगी।
- भारतीय सेना की आत्मनिर्भरता: इसे भारतीय सेना और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।
समावेशन और लागत
- ‘संजय’ प्रणाली को 2,402 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया गया है।
- इसे मार्च से अक्टूबर 2025 तक तीन चरणों में सेना के सभी परिचालन ब्रिगेड, डिवीजनों और कोर में शामिल किया जाएगा।
- यह कदम रक्षा मंत्रालय के ‘सुधारों का वर्ष’ पहल का हिस्सा है।
कार्यक्रम में प्रमुख उपस्थिति
इस ऐतिहासिक अवसर पर कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे, जिनमें शामिल हैं:
- राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री
- जनरल अनिल चौहान, चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ
- जनरल उपेन्द्र द्विवेदी, थल सेनाध्यक्ष
- मनोज जैन, बीईएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
भविष्य की दिशा
‘संजय’ प्रणाली भारतीय सेना को युद्धक्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए सटीकता और गति प्रदान करेगी। यह न केवल देश की रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करेगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को भी मजबूती प्रदान करेगी।