एक विवाहित महिला की 26 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अजन्मे बच्चे के अधिकार को तरजीह दी और कहा कि हम दिल की धड़कन रोक नहीं सकते. बच्चे के धरती पर जन्म लेने का रास्ता साफ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एम्स रिपोर्ट के मुताबिक- बच्चे में कोई असमान्यता नहीं है. तय समय पर एम्स डिलीवरी कराएगा. सीजेआई ने कहा कि गर्भावस्था 26 सप्ताह और 5 दिन की है. इस प्रकार गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना MTP अधिनियम की धारा 3 और 5 का उल्लंघन होगा क्योंकि इस मामले में मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है. यह भ्रूण की असामान्यता का मामला नहीं है.
बच्चे को गोद देने का विकल्प माता-पिता पर निर्भर
CJI ने कहा कि हम दिल की धड़कन को नहीं रोक सकते. अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल पूर्ण न्याय करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल हर मामले में नहीं करना चाहिए. यहां डॉक्टरों को भ्रूण की समस्या का सामना करना पड़ेगा. उचित समय पर एम्स द्वारा डिलीवरी कराई जाएगी. यदि दंपति बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ना चाहते हैं तो केंद्र माता-पिता की सहायता करेगा. बच्चे को गोद देने का विकल्प माता-पिता पर निर्भर करता है.
SC rejects woman's plea seeking termination of 26-week pregnancy
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— ANI Digital (@ani_digital) October 16, 2023
सुनवाई के दौरान ये तर्क भी रखे गए सामने
बता दें कि सुनवाई के दौरान कॉलिन गोंजालेविस ने कहा कि अजन्मे बच्चे का कोई अधिकार नहीं है. मां का ही अधिकार है. इस संबंध में कई अंतरराष्ट्रीय फैसले हैं. WHO की भी मेंटल हेल्थ को रिपोर्ट है. CJI ने कहा कि भारत प्रतिगामी नहीं है. संयुक्त राज्य अमेरिका में क्या हुआ और देखें कि रो बनाम वेड मामले का क्या हुआ. यहां भारत में 2021 में विधानमंडल ने संतुलन बनाने का काम किया है. अब यह अदालतों को देखना है कि संतुलन बनाने का काम सही है या नहीं. क्या हम इन बढ़ते मामलों में ऐसे कदम उठाने की विधायिका की शक्ति से इनकार कर सकते हैं? हमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका को वह शक्ति क्यों देने से इनकार करना चाहिए और क्या हम इससे अधिक कुछ कर सकते हैं? प्रत्येक लोकतंत्र के अपने अंग होते हैं और उन्हें कार्य करना चाहिए. आप हमें WHO के बयान के आधार पर हमारे क़ानून को पलटने के लिए कह रहे हैं? हमें नहीं लगता कि ऐसा किया जा सकता है.