केरल की असली कहानी हमने आपको सुनाने की कोशिश की है. और इस स्टोरी में हम उन डिवाइसों-उन टूल्स का ज़िक्र करेंगे, जिनकी मदद से केरल में युवाओं का ब्रेनवॉश किया गया. कुछ का धर्म बदला गया और उन्हें आखिर में आतंकवादी बना दिया गया. वो केरल की जमीन छोड़कर अफगानिस्तान के नांगरहार चले गए. जहां अमरीका द्वारा किए गए हमलों में उनकी मौत हो गई. और ये सबकुछ हुआ कुछ किताबों की मदद से, कुछ ऑनलाइन टूल्स की मदद से.
ग्राउंड पर मिले हमारे सोर्स बताते हैं कि जिन 20 युवाओं को केरल से बाहर ले जाया गया. उनमें से अधिकांश को सबसे पहले डार्क नेट चलाना सिखाया गया. डार्क नेट या डीप वेब. यानी इंटरनेट का वो विशालकाय हिस्सा, जो आम इंटरनेट कनेक्शन से नहीं चलाया जा सकता है. डार्क नेट पर चाइल्ड पॉर्न, आतंकवादी संगठन और उनके कान्टैक्ट, भाड़े के शूटर और बिटकॉइन ट्रेडिंग जैसी चीजें उपलब्ध हैं.
जब केरल के लोग डार्क नेट से जुड़े तो दुबई में बैठे इनके हैंडलर्स ने इनको डार्क नेट के जरिए कुछ चीजें परोसना शुरू किया. ये सारे कंटेन्ट इनको कट्टर बनाने में मदद करते थे. क्या-क्या था? इन कंटेन्ट में वैसे तो बहुत सारी चीजें थीं, लेकिन हमारे सोर्स दो चीजों की प्रमुखता से चर्चा करते हैं.
अवलाकी एक इमाम था. लेकिन एक इमाम से ज्यादा बड़ी पहचान उसकी ये थी कि वो आतंकी संगठन अल कायदा का नेता भी था. मूलतः यमन का रहने वाला था, पैदा हुआ साल 1971 में अमरीका के न्यू मेक्सिको में. पढ़ाई भी अमरीका के संस्थानों में हुई थी.अवलाकी ने अमरीका में रहते ही बतौर इमाम उपदेश देना शुरु कर दिया था. लेकिन साल 2004 में वो अपने देश यमन वापिस आ गया था. यहां एक विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगा. कुछ मौकों पर कुछ महीनों के लिए अरेस्ट हुआ. फिर बाहर आ गया. उसके उपदेश चालू रहे.
बदनाम हुआ अमरीका में साल 2001 में हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की जांच के दौरान. जांच एजेंसियों को ये पता चला कि हमले में शामिल कुछ आतंकवादी अवलाकी के उपदेशों से प्रभावित थे. अवलाकी को तो साल 2011 में अमरीका ने ड्रोन से बम मारकर मार गिराया था. लेकिन डार्क नेट और बाकी चैनल पर मौजूद उसके वीडियो अब भी जिंदा थे. वो अपने वीडियो में हिंसक गतिविधियों को सपोर्ट करता था. वो हिंसा फैलाने वाले जिहाद का समर्थक था. केरल के युवाओं को अवलाकी के वीडियो दिखाए जा रहे थे. वो अवलाकी के वीडियो से सीख ले रहे थे.
वीडियो के अलावा एक किताब का इस्तेमाल किया जा रहा था. किताब थी – मशारी अल-अशवाक इल मशारी अल-उशाक. आम भाषा में “बुक ऑफ जिहाद” कहते हैं. इसका लिखने वाले लेखक का नाम था – अहमद इब्राहिम मुहम्मद अल दिमश्क़ी अल दुमयती. इस लेखक को इमाम इब्न नुहास कहते थे. यूं तो ये किताब बहुत पहले लिखी गई थी, लेकिन इसका प्रचलित अंग्रेजी तर्जुमा भी आतंकी अनवर अल-अवलाकी ने किया था. इस किताब में लिखी भूमिका की मानें तो अंग्रेजी किताब लिखते समय अवलाकी ने हदीस में लिखी बातों को अपने तरीके से समझाया था.
यही नहीं, खबरों के मुताबिक अवलाकी ने इस किताब का एक ऑडियो वर्ज़न भी तैयार किया था. ये ऑडियोबुक कई जगहों पर सर्कुलेट की गई.
इस किताब के शुरुआती हिस्से में ही ज़िक्र मिलता है कि (इस्लाम पर) भरोसा न करने वालों से युद्ध करो. उनसे जंग लड़ो.
सुरक्षा एजेंसियों के लिए ये किताब काफी खतरनाक साबित हुई थी. इतनी खतरनाक कि केरल पुलिस ने राज्य सरकार से मांग की थी कि इस किताब को तत्काल बैन करवा दिया जाए. केरल पुलिस ने आरोप लगाए थे कि इस किताब में चरमपंथी किस्म के लेख हैं, जो युवाओं को आतंकी संगठन से जुड़ने के लिए उकसाते थे.
इसके अलावा इन लोगों को और भी कई चीजें दिखाई-सुनाई गई थीं. अरब देशों में बैठे कुछ लोग इनसे मलयालम में बात करते थे, ताकि इन्हें कट्टरपंथी बनाया जा सके. साथ ही इनके स्थानीय मास्टरमाइंड राशिद अब्दुल्ला की दूसरी पत्नी यासमीन दिल्ली एयरपोर्ट पर पकड़ी गई थी. उसने टेलीग्राम ऐप पर चल रहे एक चैनल का नाम लिया था. आगे वीडियो में 14 मिनट 40 सेकंड पर देखें – तो आतंक की राह पर जाने वाले युवाओं को वीडियो दिखाए गए, बुक ऑफ जिहाद नाम की किताब पढ़ाई गई. यहीं से शुरु हुई कुछ भ्रमित युवाओं के आतंकवादी बनने की कहानी.