सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने गुरुवार ने महाराष्ट्र में शिवसेना विवाद की सुनवाई की. संविधान पीठ की सुनवाई किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया. अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच करेगी. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नबाम रेबिया मामले में उठाए गए सवाल को अब दूसरी बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए.
जानिए आखिर क्या है वो नबाम रेबिया मामला, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने किया और महाराष्ट्र के शिवसेना विवाद से इसे क्यों जोड़ा गया.
क्या है नबाम रेबिया मामला?
नबाम रेबिया मामला की कहानी भी महाराष्ट्र में उपजे विवाद जैसी ही है. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में अरुणाचल प्रदेश के बर्खास्त सीएम नबाम तुकी कांग्रेस सरकार को वापस बहाल करने का आदेश दिया था. दरअसल, हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 14 बागी विधायकों को आयोग्य ठहराने पर रोक लगा दी थी. यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहरा दिया गया.
इस मामले की नींव दिसम्बर 2015 में पड़ी. अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन CM नबाम तुकी ने राज्यपाल से 14 जनवरी 2016 को विधानसभा सत्र बुलाने की अपील की. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. राज्यपाल ने 30 दिन पहले 16 दिसम्बर 2015 को ही सत्र बुला लिया. इससे संवैधानिक संकट पैदा हुआ. नतीजा, नबाम तुकी ने विधानसभा भवन को लॉक करा दिया.
विधानसभा अध्यक्ष रेबिया ने राज्यपाल के इस फैसले को चुनौती दी और कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराते हुए विधानसभा अध्यक्ष के पक्ष में फैसला सुनाया.
क्यों आई ऐसी नौबत?
सत्र को समय से पहले बुलाने की नौबत क्यों आई. अब इसे भी समझ लेते हैं. कांग्रेस के कुछ बागी विधायकों का एक गुट तत्कालीन राज्यपाल राजखेवा के पास पहुंचा. गुट ने राज्यपाल से शिकायत करते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष उन्हें अयोग्य घोषित करना चाहते हैं. इसके बाद राज्यपाल ने 16 दिसम्बर को विधानसभा का आपातसत्र बुलाने और अध्यक्ष के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लाने की अनुमति दे दी. कांग्रेस ने राज्यपाल की कार्रवाई का विरोध किया. इसके बाद केंद्र ने आर्टिकल 356 का इस्तेमाल करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया.
फिर विधानसभा में विशेष सत्र बुलाया गया. इसमें भाजपा के 11, कांग्रेस के 20 और दो निर्दलीय विधायकों ने हिस्सा लिया. इस दौरान महाभियोग प्रस्ताव पास किया किया और स्पीकर ने कांग्रेस के 14 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया.
नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दल बदल विरोधी कानून के तहत संवैधानिक तौर पर स्पीकर के पास यह अधिकार नहीं है कि वो विधायकों को अयोग्य ठहरा सके.
अब महाराष्ट्र से इसका कनेक्शन समझते हैं
महाराष्ट्र विवाद में शिंदे गुट ने नबाम रेबिया के फैसले का हवाला दिया था, जब जून 2022 में संकट सामने आया था, यह तर्क देने के लिए कि डिप्टी स्पीकर असंतुष्ट शिवसेना विधायकों के खिलाफ दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें हटाने का नोटिस लंबित था.
इसका विरोध करते हुए, ठाकरे गुट ने बेंच से कहा था कि जो विधायक दल बदलना चाहते हैं, वे नोटिस के माध्यम से स्पीकर को हटाने की मांग करके उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही को रोक सकते हैं.
फरवरी में संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान शिंदे गुट ने तर्क दिया था कि यह मामला बहुत सामान्य है और इसे बड़ी पीठ के पास भेजने का कोई कारण नहीं है.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और ए एम सिंघवी ने अदालत में ठाकरे पक्ष को रखते हुए पूरे मामले को सात-न्यायाधीशों की पीठ को भेजने का आग्रह किया.
बागी विधायकों ने उठाए थे ये तीन सवाल
महाराष्ट्र के बागी विधायकों ने 3 सवाल उठाते हुए अदालत का रुख किया था. उनका कहना था कि अगर डिप्टी स्पीकर के खिलाफ पहले से अविश्वास का प्रस्ताव है, वो किसी अन्य को कैसे अयोग्य ठहरा सकते हैं. महाराष्ट्र विधानमंडल के नियमों के मुताबिक, अयोग्यता पर फैसले के लिए 7 दिन का समय दिया जाना चाहिए, जबकि 2 दिन का वक्त दिया गया. इसके अलावा बागी विधायकों ने जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा मुहैया कराने का आग्रह भी किया गया.