आल इंडिया कांग्रेस के लिए 13 मई बेहद अहम दिन साबित होने वाला है. इसी दिन तय हो जाएगा कि लोकसभा चुनाव 2024 में देश की विपक्षी एकता कहां ठहरेगी. कांग्रेस इस एकता की धुरी होगी या फिर बिखरा विपक्ष उसे उसके हाल पर छोड़ नई राह पर चलेगा. हालांकि, कर्नाटक में ज्यादातर एग्जिट पोल में हंग असेंबली की बातें हुई हैं, पर कुछ एग्जिट पोल बता रहे हैं कि कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है.
सरकार कौन बनाएगा, कैसे बनाएगा, यह काफी हद तक 13 मई को तय हो जाएगा. हंग असेंबली बनी तो तस्वीर और साफ हो जाएगी क्योंकि तब किंग मेकर जेडी-एस और उसके नेता कुमार स्वामी होंगे. वे जिस करवट बैठ जाएंगे, सरकार वही दल बना लेगी. वे खुद सीएम बनना चाहेंगे तो एक-दो दिन का समय लगेगा, अन्यथा तस्वीर 13 मई को ही एकदम साफ होने वाली है.
विपक्षी एकता का रूप-स्वरूप भी कर्नाटक का रिजल्ट तय कर देगा. नीतीश कुमार और के चंद्रशेखर राव के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में चल रहे प्रयास की धुंधली तस्वीर से भी कुछ गर्दा हटेगा. खुद कांग्रेस का आत्मविश्वास इस चुनाव से जुड़ा हुआ है. अगर वह सरकार बनाने में सक्षम होती है तो विपक्षी एकता की बैठकों में उसकी भाषा अलग होगी.
अगर नहीं बना पाती है तो विपक्ष के लिए कांग्रेस पार्टी की भूमिका कमतर होगी. सब जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के बाद कांग्रेस ही एक ऐसा अकेला दल है जिसके पास ढेरों कमजोरियों के बावजूद अभी भी देश के सभी हिस्सों में टूटा-फूटा ही सही, संगठन है. अकेली ऐसी पार्टी है जो देश भर में चुनाव लड़ती आ रही है. उम्मीद है कि अगला लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस अकेले दम पर लड़ने की ताकत रखती है, परिणाम कुछ आए.
इन हालातों के बीच विपक्ष की मजबूत चेहरा टीएमसी चीफ ममता बनर्जी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव जैसे नेता लोकसभा चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस या कह लें कि राहुल गांधी की अगुवाई मना कर चुके हैं. तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव ने भी कमोवेश ऐसा ही रुख अपनाया है, जो लोकसभा चुनाव और अपना राष्ट्रीय भविष्य संवारने को भारत राष्ट्र समिति बनाकर दिल्ली आ चुके हैं.
हां, विपक्षी एकता का माला बनाने की कोशिशों में जुटे बिहार के सीएम नीतीश कुमार जरूर कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिल चुके हैं. वे मंचों से भी विपक्षी एकता में कांग्रेस की भूमिका स्वीकार करते हैं. पर, अगर कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस के खाते में गिरा तो विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस आसानी से बन जाएगी.
लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता के प्रयासों को पंख भी लगेंगे. जो भी दल या नेता कांग्रेस को विपक्षी एकता में महत्व देने के मूड में नहीं है, वे सब आसानी से इस राष्ट्रीय पार्टी के महत्व को स्वीकार कर लेंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो विपक्षी एकता की राह में रोड़े ही रोड़े हैं. नेतृत्व का सवाल अभी भी बना हुआ है.कौन होगा विपक्ष का चेहरा, यह ढेरों कोशिशों के बीच स्पष्ट नहीं है.
नीतीश कुमार ने जरूर स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा को सत्ता से बेदखल करने को कुछ भी करेंगे, उन्हें कोई पद नहीं चाहिए. शरद पवार का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है. ममता बनर्जी अपनी पार्टी में अकेली नेता हैं, अगर वे पश्चिम बंगाल छोड़ती हैं तो उनकी सरकार संकट में आ सकती है. विपक्ष में एक और मजबूत चेहरा नवीन पटनायक हैं लेकिन वे भाजपा के ज्यादा करीब हैं. उन्होंने बिना लाग-लपेट नीतीश कुमार से विपक्षी एकता का हिस्सा बनने से मना भी कर दिया है.
बसपा चीफ मायावती अभी इस सीन में कहीं नहीं दिख रही हैं. न वे बोल रही हैं न ही विपक्षी एकता को लेकर प्रयास करने वाले नीतीश कुमार. नीतीश जब अखिलेश से मिलने लखनऊ पहुंचे थे तो उनके सामने यह सवाल आया था कि मायावती से मिलने की कोई योजना है या नहीं? जवाब में नीतीश ने कहा था कि अभी तो वे इनसे (अखिलेश यादव) मिलने आए हैं.
शिवसेना के उद्धव ठाकरे के सामने असली शिवसेना साबित होने की चुनौती है. क्योंकि उनके पिता द्वारा स्थापित दल और झंडा, दोनों अब शिंदे गुट की अमानत है. आंध्र प्रदेश के चंद्रा बाबू नायडू भी फिलहाल सीन से बाहर दिख रहे हैं. इस तरह दावे कोई कुछ भी करे लेकिन विपक्ष में सर्वमान्य नेता का संकट है.
लंबी पदयात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में तनिक निखार आया है लेकिन अभी भी उन्हें विपक्ष और सत्ता पक्ष गंभीरता से लेने को तैयार नहीं दिखते. कर्नाटक चुनाव में अगर कांग्रेस सरकार बनाती है तो लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस की राह थोड़ी आसान होगी. विपक्ष एक बार राहुल गांधी को भले भाव न दे लेकिन सोनिया गांधी की स्वीकार्यता है. भले उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता लेकिन यूपीए चेयरमैन और कांग्रेस की सर्वेसर्वा वे अभी भी हैं. राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें इनकार करना अभी किसी भी दल, व्यक्ति के लिए एकदम आसान नहीं है.
विपक्ष की भी कुछ मजबूरी है. अगर वह कांग्रेस को अपने साथ नहीं ले पाती है तो विपक्षी एकता यूं भी तार-तार होती हुई दिखेगी. कारण साफ है. सारे दल एक साथ मिल भी जाएं और कांग्रेस इसमें शामिल न हो तो भी वह चुनाव में जाएगी और सीटें भले न जीते या कम जीते लेकिन वोट तो काटेगी. नुकसान विपक्ष का ही होगा. देखना रोचक होगा कि कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को कितना प्यार वोट के रूप में दिया है. बहुत कुछ यहीं से तय हो जाएगा.