बिहार की राजनीति पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं। इस संशय का आलम यह है कि लगभग दल अपने अपने विधायकों को संदेह की नजर से देखने लगे हैं। हालत यह हो गई कि बिहार की राजनीति पर पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का वह बयान हावी हो गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि खेला तो होगा। बिहार के विधायकों की चर्चा दिल्ली से तेलंगाना तक हो रही है। हर पार्टियां अपने अपने हिसाब से विधायकों को एकजुट रखने की कोशिश में है।
बिहार विधान सभा अध्यक्ष के तेवर से सत्ता दल परेशान
बिहार विधान सभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के तेवर से सत्ता दल की बौखलाहट बढ़ गई है। ऐसा नहीं कि अविश्वास प्रस्ताव झेलने वाले अवध बिहारी चौधरी कोई पहले विधान सभा अध्यक्ष हैं। इसके पहले, विधान सभा अध्यक्ष शिवचंद्र झा, विंदेश्वरी वर्मा और 2022 में बीजेपी के विजय सिन्हा पर भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। पर अवध बिहारी चौधरी इस मामले में उन सब विधान सभा अध्यक्ष से अलग हैं। अवध बिहारी चौधरी पहले विधान सभा अध्यक्ष होंगे जो अपने ऊपर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेंगे। पत्रकारों से बात करते हुए बिहार विधान सभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने साफ तौर से कहा- ‘मैं इस्तीफा नहीं दूंगा’। अविश्वास प्रस्ताव का सदन में सामना करूंगा। शेष विधानसभा अध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने से पहले इस्तीफा दे दिया था। अवध बिहारी चौधरी की ओर से उठाए गए इस कदम के बाद सत्ता दल में भी विधायकों के टूटने का खौफ कायम कर दिया है।
राज को राज रहने दे: भाई वीरेंद्र
अवध बिहारी चौधरी के इस स्टेप के बाद राजद के वरीय विधायक भाई वीरेंद्र ने भी अपने बयान से सत्ता दल के रणनीतिकारों की धड़कन बढ़ा दी है। भाई वीरेंद्र ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि – खेला तो 12 फरवरी को होगा। सीएम नीतीश कुमार भी डर गए हैं। इसलिए भागे भागे पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने गए। और उनसे कह रहे हैं कि अब हम आपके साथ रहेंगे। दरअसल, जदयू के विधायकों में नीतीश कुमार के प्रति काफी नाराजगी है। इसकी वजह यह है कि नीतीश कुमार ब्यूरोक्रेट्स को प्राथमिकता देते हैं। चारो तरफ अधिकारी हावी हैं। विधायक जनता का प्रतिनिधि होता है। पर जनता का कोई काम नहीं रहा है। इसलिए ज्यादा मत बोलवाइए 12 फरवरी को खेला देखिए और शाम को मिलिए।
मंत्री श्रवण कुमार के बयान ने भी चौंकाया
जदयू के मंत्री श्रवण कुमार ने यह कह कर चौंका डाला कि जदयू विधायकों के पास फोन आ रहे हैं। विधायकों को प्रलोभन दिया जा रहा है। साथ ही यह कहा जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी सदस्यता नहीं जाने देंगे। लेकिन जदयू के विधायक मजबूती से उनके प्रलोभन को ठुकरा रहे हैं। इनका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पूरा विश्वास है। जदयू के विधायक कहीं नहीं जायेंगे और एनडीए की सरकार को मजबूत करेंगे।
विधानसभा में क्या है आंकड़ा:
बिहार विधानसभा में 243 विधायक हैं. उस हिसाब से 122 विधायक बहुमत के लिए चाहिए. एनडीए के पास अभी 128 विधायक हैं, जो बहुमत से 6 अधिक है. वहीं महा गठबंधन के पास 114 विधायक हैं. एआईएमआईएम के एक विधायक हैं. एक तरफ जहां एनडीए के पास बहुमत से 6 अधिक विधायक है तो वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन के पास बहुमत से आठ विधायक कम है.
क्या है तेजस्वी का ‘खेला’:
जीतन राम मांझी के चार विधायक हैं. जीतन मांझी दो मंत्री पद की मांग कर रहे हैं. उनके बयान को लेकर कई तरह की चर्चा है. उन्होंने यह भी कह दिया कि महागठबंधन की तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री का ऑफर था. वहीं एक निर्दलीय विधायक सुमित सिंह है, जिन्हें नीतीश सरकार में फिर से मंत्री बनाया गया है. एआईएमआईएम के एक विधायक हैं. इस तरह से देखें तो 6 विधायक हो जाते हैं, जिस पर महागठबंधन की नजर है.
संभावना क्या है?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की माने तो एनडीए की सरकार पूर्ण बहुमत में है। एनडीए के पास सरकार बनाए रखने के मैजिक नंबर से ज्यादा विधायकों का साथ है। ऐसे में एनडीए की सरकार अपनी गति से आगे बढ़ेगी। और अगर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के दावे में दम होगा तो अविश्वास प्रस्ताव गिर भी सकता है। यह तभी संभव होगा जब सत्ता पक्ष के विधायक अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध क्रॉस वोटिंग करें या सरकार बनाने के मैजिक को ध्वस्त करते सत्ता पक्ष के विधायक सदन की कार्यवाही से खुद को अलग रखें यानी सदन से ही अनुपस्थित हो जाएं।
ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प राज्यपाल के हाथ अपना इस्तीफा दे देंगे। दूसरा विकल्प यह है कि नीतीश कुमार मंत्रिमंडल की बैठक में सदन को भंग कर देने का निर्णय लें और राज्यपाल को इस निर्णय की जानकारी दें। अब राज्यपाल पर निर्भर करता है कि सबसे बड़ी पार्टी राजद को सरकार बनाने का न्योता दें या फिर विधायकों के खरीद फरोख्त को रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दें।
बिहार में सियासी हलचलः
ऐसे जदयू और बीजेपी के नेता लगातार कह रहे हैं कि उनके पास बहुमत है. जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन का कहना है कि वह एनडीए के साथ खुश हैं, तो यह भी एक राहत वाली बात है. लेकिन, लालू प्रसाद यादव राजनीति के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं. इसलिए कई तरह के कयास लग रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस के विधायकों को हैदराबाद भेज दिया गया है. फ्लोर टेस्ट के दिन उन्हें पटना भेजा जाएगा. चर्चा है कि 10 विधायक नीतीश कुमार के संपर्क में हैं. टूट से बचने के लिए कांग्रेस विधायकों को बिहार से बाहर भेजा गया है.
विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ चौथी बार अविश्वास प्रस्तावः
17 वीं विधानसभा में दूसरा मौका है जब विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया है. यह भी पहली बार है जब एक विधानसभा की अवधि में दो बार ऐसा हुआ है. 2022 में जब नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाए थे तो आरजेडी की ओर से विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. ऐसे यह चौथा अवसर है जब अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है. इससे पहले कांग्रेस के शिवचंद्र झा और बिंदेश्वरी प्रसाद वर्मा के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.