झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सुप्रीम कोर्ट से उस वक्त झटका लगा जब जस्टिस दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्रा की बेंच ने बुधवार को उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. इसके बाद सोरेन के वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली है. हेमंत सोरेन ने लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अंतरिम जमानत की मांग की थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ही अंतरिम जमानत की मांग की थी. और जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने केजरीवाल को 1 जून तक के लिए जमानत दी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोरेन की याचिका क्यों खारिज कर दी. जबकि केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी गई.
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ क्या है मामला?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को कथित शराब नीति से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के दो दिनों के भीतर ही केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती हुए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. जो केजरीवाल के मामले में बहुत ही महत्वपूर्ण स्टेप था.
आमतौर पर एक नियमित जमानत याचिका ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर की जाती है. फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है. हालांकि, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम यानी पीएमएलए के तहत जमानत देने में कई तरह की बाधाएं हैं. जिससे जमानत मिलना बेहद असंभव है. PMLA का सेक्शन 45 जिसमें जमानत देने की प्रक्रिया का उल्लेख है. इसके अनुसार, आरोपी को कोर्ट में यह साबित करना होगा कि प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ मामला नहीं बनता है और जमानत के दौरान वह किसी तरह का अपराध नहीं करेगा.
गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने के उपरांत आरोपी को कोर्ट में यह साबित करना होता है कि ईडी को उसे गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी. और ईडी ने PMLA के सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी की अपनी शक्ति का अवैध इस्तेमाल किया.
गिरफ्तारी की चुनौती से संबंधित याचिका सीधे संवैधानिक अदालत के समक्ष दायर की जाती है. यानी आरोपी सीधे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है. यानी जमानत याचिका की तुलना में अवैध गिरफ्तारी की चुनौती देने से ट्रायल कोर्ट के समक्ष खर्च होने वाला समय बच जाता है.
हाई कोर्ट ने 9 अप्रैल को केजरीवाल की गिरफ्तारी को बरकरार रखा था. जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. चूंकि, मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था और फैसला आने में समय लगना तय था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केजरीवाल को जमानत देकर वह नेताओं के लिए कोई विशेष परिस्थितयां नहीं पैदा कर रहा है. लेकिन अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और राष्ट्रीय पार्टियों में से एक के नेता हैं. उन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं, लेकिन किसी में भी कनविक्शन नहीं हुआ है. केजरीवाल को 21 दिन की अंतरिम जमानत देने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.
हेमंत सोरेन को क्यों नहीं मिली जमानत?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने कथित जमीन घोटाले के केस में 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था. उसी दिन सोरेन के वकीलों ने गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी. झारखंड हाई कोर्ट ने 28 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और दो महीने बाद सोरेन को अंतिरम जमानत देने से इनकार कर दिया.
इसी बीच ईडी ने सोरेन के खिलाफ एक चार्जशीट दायर की और ट्रायल कोर्ट ने 4 अप्रैल को इस अपने संज्ञान में लिया. कोर्ट में चार्जशीट दायर करना एक रुटीन वर्क है. इसके तहत ईडी ने कोर्ट को अवगत कराया कि आरोपी यानी हेमंत सोरेन के खिलाफ प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ अपराध का केस बनता है. कार्ट को इस चार्जशीट की जांच करनी होती है और आरोप तय करना होता है. लेकिन हाई कोर्ट ने अपना आदेश आदेश सुरक्षित रख लिया था. इसी बीच सोरेन के वकीलों ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत याचिका दायर की. लेकिन ट्रायल कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.
इसके बाद सोरेन के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने सोरेन के वकीलों के इस कदम पर नाराजगी जताई कि सोरेन इस जमानत याचिका को दायर करके जमानत के लिए दो उपाय खोज रहे थे. यही वजह है कि सोरेन के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका वापस ले ली.
इसके अलावा अरविंद केजरीवाल की पार्टी राष्ट्रीय पार्टी है और वह पार्टी के अध्यक्ष हैं. जबकि हेमंत सोरेन की पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी है और वह पार्टी के अध्यक्ष भी नहीं हैं. हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम के अध्यक्ष हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन हैं. साथ ही हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. जबकि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था.