क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा जमीन का मालिक कौन है? निसंदेह पहले नंबर पर भारत सरकार आती है. सरकार के दो मंत्रालय भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय देश के अंदर सबसे ज्यादा जमीनों का मालिकाना हक रखते हैं. सरकार के अलावा भारत में सबसे बड़े भू स्वामी की बात होती है तो पहले नंबर पर वक्फ बोर्ड आता है. दूसरे नंबर पर कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया आता है. इन दोनों के पास देश में बहुत सारी संपत्तियां हैं. अगर कुल क्षेत्रफल की बात की जाए तो वक्फ बोर्ड के पास ज्यादा जमीन होने के आंकड़े मौजूद हैं. वक्फ बोर्ड के पास देश भर में 9.4 लाख एकड़ जमीन है. वहीं, कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया के पास दो से तीन लाख एकड़ जमीन है.
भारत के सबसे बड़े भूमि स्वामी (Landowners)
भारत सरकार (Indian Government) – सबसे अधिक भूमि की स्वामी
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भारतीय रेलवे – अनुमानतः 4.8 लाख हेक्टेयर (11.8 लाख एकड़)
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रक्षा मंत्रालय (MoD) – अनुमानतः 17.95 लाख एकड़
वक्फ बोर्ड (Waqf Board) – तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी
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कुल संपत्तियाँ: 8.72 लाख अचल संपत्तियाँ (WAMSI अनुसार, दिसंबर 2022 तक)
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कुल भूमि: अनुमानतः 9.4 लाख एकड़
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प्रकार: मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे, धार्मिक स्थल, सामुदायिक भवन
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इतिहास: सल्तनत, मुगल, नवाबी युग में बड़े पैमाने पर भूमि दान की गई
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कानूनी आधार: वक्फ एक्ट 1913 → वक्फ एक्ट 1954 → संशोधित वक्फ एक्ट 1995
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मूल्य: ₹1.2 लाख करोड़ (अनुमानित)
कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया – दूसरा सबसे बड़ा गैर-सरकारी भूस्वामी
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कुल अनुमानित भूमि: 2–3 लाख एकड़ (कुछ रिपोर्ट्स 5 लाख एकड़ तक मानती हैं)
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संपत्तियाँ:
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14,429 स्कूल-कॉलेज
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1,826 अस्पताल-डिस्पेंसरी
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1,086 ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट्स
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इतिहास:
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पुर्तगालियों (1498 से), ब्रिटिश सरकार द्वारा सस्ती दरों पर भूमि पट्टे
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मिशनरी गतिविधियों, लोक दान व धर्म परिवर्तन से संपत्ति का विस्तार
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मूल्य: ₹1 लाख करोड़+ (शहरी क्षेत्रों में मुख्य स्थानों पर संपत्ति)
विवाद और कानूनी जटिलताएं
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वक्फ की विशेष कानूनी शक्ति: यदि वक्फ घोषित किया जाए, तो उस भूमि पर उसका स्वामित्व बन जाता है।
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उदाहरण: तमिलनाडु का एक पूरा गांव, बेंगलुरु के पास 1,200 एकड़ जमीन
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चर्च की संपत्तियों की पारदर्शिता: भूमि रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं, जिससे विवाद और भ्रम की स्थिति
चर्च के आंकड़ों को लेकर गफलत
हालांकि, चर्च के पास कितनी जमीन है इसके बारे में स्पष्ट तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. चर्च के पास मौजूद जमीन का क्षेत्रफल वक्फ की तरह स्पष्ट रूप से एकड़ में बता पाना मुश्किल है, लेकिन एक आंकड़े के अनुसार यह रेलवे के बाद दूसरे स्थान पर आता है. क्षेत्रफल के आधार पर वक्फ बोर्ड के पास 9.4 लाख एकड़ जमीन दर्ज है, जो चर्च के अनुमानित क्षेत्रफल से अधिक है. चर्च की जमीन का सटीक क्षेत्रफल उपलब्ध नहीं होने के कारण यह कहना मुश्किल है कि यह वक्फ से कम है या ज्यादा, लेकिन अधिकांश रिपोर्ट्स वक्फ को तीसरे और चर्च को दूसरे स्थान पर रखती हैं, जिससे संकेत मिलता है कि चर्च के पास वक्फ से कम जमीन है.
कितनी होगी जमीनों की कीमत
वक्फ बोर्ड की संपत्ति का बाजार मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये और कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया का एक लाख करोड़ रुपये से अधिक अनुमानित है. यानी ये आंकड़ा भी वक्फ को थोड़ा आगे रखता है. हालांकि, जमीन की कीमत स्थान और उपयोगिता पर निर्भर करती है. चर्च के पास मौजूद संपत्तियों की कीमत ज्यादा इसलिए हो सकती है, क्योंकि उसकी संपत्तियां शहरी क्षेत्रों में मुख्य जगहों पर स्थित हैं.
वक्फ के पास कहां से आईं इतनी जमीनें
वक्फ इस्लामी कानून (शरीयत) से लिया गया एक सिद्धांत है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धर्मार्थ, सामुदायिक या धार्मिक उद्देश्यों के लिए हमेशा के लिए दान कर देता है. यह संपत्ति फिर व्यक्तिगत स्वामित्व से बाहर होकर ‘अल्लाह की संपत्ति’ मानी जाती है. मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ, खासकर सल्तनत और मुगल काल में, वक्फ की प्रथा भारत में शुरू हुई. सुल्तानों, बादशाहों और नवाबों ने मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों और कब्रिस्तानों के लिए जमीनें दान कीं. उदाहरण के लिए, मुगल सम्राटों ने दिल्ली, आगरा और लखनऊ जैसे शहरों में बड़ी मात्रा में जमीन वक्फ को दी. मुगल शासकों ने अपने शासनकाल में वक्फ को बढ़ावा दिया. बादशाहों और उनके दरबारियों ने अपनी संपत्ति का एक हिस्सा वक्फ के रूप में दान किया ताकि उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता दिखे और जनता के लिए सुविधाएं उपलब्ध हों. कई बड़े जागीरदारों और सूबेदारों ने भी अपनी जमीनें वक्फ को दीं, जिससे संपत्तियों का दायरा बढ़ता गया. मिसाल के तौर पर, हैदराबाद के निजाम और अवध के नवाबों ने भारी मात्रा में जमीनें वक्फ को सौंपीं.
ब्रिटिश काल में मिली वैधानिक मान्यता
अंग्रेजों ने वक्फ संपत्तियों को कानूनी रूप देने के लिए 1913 में एक वक्फ एक्ट पारित किया. इससे वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन और संरक्षण आसान हुआ, और साथ ही उनकी संख्या भी बढ़ी क्योंकि लोग औपचारिक रूप से जमीनें दान करने लगे. ब्रिटिश शासन में कई स्थानीय जमींदारों और प्रभावशाली मुस्लिम परिवारों ने अपनी जमीनें वक्फ को दान कर दीं, ताकि उनकी संपत्ति पर टैक्स कम लगे या उसे जब्त होने से बचाया जा सके.
आजादी के बाद 2 बार बना कानून
आजादी के बाद भारत सरकार ने वक्फ संपत्तियों को व्यवस्थित करने के लिए नए कानून बनाए. पहला वक्फ एक्ट 1954 में बनाया गया. इसके बाद 1995 में आए वक्फ एक्ट ने वक्फ बोर्ड को व्यापक अधिकार दिए, जिससे वह अपनी संपत्तियों को पुनः प्राप्त कर सके और अतिक्रमण हटाया जा सके. इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड ने उन जमीनों पर दावा किया जो ऐतिहासिक रूप से वक्फ को दी गई थीं, लेकिन समय के साथ अतिक्रमण का शिकार हो गई थीं. कई जगहों पर पुरानी मस्जिदों या कब्रिस्तानों के आसपास की जमीन को वापस लिया गया. कुछ राज्यों में वक्फ बोर्ड को सरकारी जमीनें भी दी गईं, जिससे उनकी संपत्ति में इजाफा हुआ.
वक्फ की कानूनी शक्ति को लेकर विवाद
वक्फ बोर्ड को विशेष अधिकार प्राप्त हैं, जैसे कि अगर यह साबित हो कि यह जमीन कभी वक्फ के लिए दान की गई थी तो वो उस संपत्ति को ‘वक्फ संपत्ति’ घोषित कर सकता है. इस प्रावधान का कई बार विवादास्पद इस्तेमाल हुआ, जिसके चलते वक्फ की जमीनों की संख्या बढ़ी. इसे लेकर विवाद भी हुए. जैसे तमिलनाडु में एक पूरा गांव (शिवगंगा जिले का तिरुपट्टूर) और बेंगलुरु के पास 1,200 एकड़ जमीन पर वक्फ ने दावा किया.
चर्च को किसने दीं जमीनें
चर्च के पास जमीनें मुख्य रूप से औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश सरकार के पट्टों, मिशनरी गतिविधियों, स्थानीय दान, और स्वतंत्रता के बाद कानूनी संरक्षण के जरिए आईं. भारत में कैथोलिक चर्च के पास बड़ी मात्रा में जमीन होना ऐतिहासिक, औपनिवेशिक और सामाजिक कारकों का परिणाम है. भारत में ईसाई धर्म का प्रसार पुर्तगालियों के साथ शुरू हुआ, जब वास्को डी गामा 1498 में केरल पहुंचे. पुर्तगाली शासकों ने गोवा, दमन और दीव जैसे क्षेत्रों में चर्च की स्थापना के लिए जमीनें दीं.
गोवा में आज भी कई पुराने चर्च और मठ इस दौर की देन हैं. शुरुआती मिशनरियों ने स्थानीय राजाओं और जमींदारों से जमीनें प्राप्त कीं ताकि चर्च, स्कूल और अस्पताल बनाए जा सकें. 18वीं और 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन ने ईसाई मिशनरियों को बढ़ावा दिया ताकि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए भारतीय समाज को आधुनिक बनाया जा सके. इसके लिए सरकार ने मिशनरियों को सस्ते दामों पर जमीनें पट्टे पर दीं. जिन भारतीयों ने ईसाई धर्म अपनाया, उन्होंने अपनी जमीनें चर्च को दान में दीं. खासकर दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु) और पूर्वोत्तर राज्यों में यह आम था.