सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपांकर दत्ता का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग पर ज़िम्मेदारीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव आज के समय में बेहद प्रासंगिक है। तकनीकी प्रगति ने मानवता के लिए कई संभावनाएं खोली हैं, लेकिन इसके दुरुपयोग और इसके प्रभावों के प्रति सतर्क रहना भी आवश्यक है। एआई का तेजी से विस्तार और कानूनी क्षेत्र में इसके संभावित प्रभावों के कारण इसे लेकर नियम और नैतिक सीमाओं का निर्धारण करना महत्वपूर्ण हो गया है।
जस्टिस दत्ता की मुख्य बातें:
- एआई का जिम्मेदार उपयोग:
जस्टिस दत्ता ने एआई के व्यापक उपयोग से पहले इसके ज़िम्मेदारीपूर्ण और आलोचनात्मक विश्लेषण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इंटरनेट और सोशल मीडिया के उदाहरण देते हुए बताया कि इन तकनीकों का सकारात्मक प्रभाव तो हुआ है, लेकिन नफरत फैलाने वाले भाषण, गलत सूचना और निगरानी जैसी समस्याएं भी बढ़ी हैं। - कानूनी क्षेत्र में एआई:
एआई और कानून में स्नातक पाठ्यक्रम के शुभारंभ को कानूनी शिक्षा में एक बड़ा कदम बताते हुए उन्होंने इसे भविष्य की दिशा में एक छलांग बताया। - एआई और मानवता की सीमा:
जस्टिस दत्ता ने यह स्पष्ट किया कि एआई कभी भी मानव की संवेदनशीलता, नीति और असीम बौद्धिकता की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए यह बताया कि मानव व्यवहार और संवेदनशीलता एआई के मुकाबले अधिक प्रभावशाली और अद्वितीय हैं। - वैज्ञानिक प्रगति के जोखिम:
उन्होंने डायनामाइट और परमाणु ऊर्जा जैसे उदाहरण देते हुए बताया कि तकनीकी विकास संभावनाओं के साथ-साथ खतरनाक परिणाम भी ला सकता है।
अभिषेक मनु सिंघवी का दृष्टिकोण:
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भविष्य में एआई के कानूनी पेशे पर प्रभाव की अनिश्चितता पर चर्चा की। उन्होंने 2030 तक एआई को “एक वास्तविकता” बताया, लेकिन यह भी माना कि 2040 तक इसके प्रभाव की दिशा को लेकर अनिश्चितता बनी रहेगी।
एआई पर व्यापक दृष्टिकोण:
- तकनीक और कानूनी सीमा:
एआई के बढ़ते उपयोग के लिए स्पष्ट कानूनी ढांचे और नैतिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि एआई का उपयोग समाज के लाभ के लिए हो और इसका दुरुपयोग न हो। - शिक्षा और जागरूकता:
एआई पर आधारित पाठ्यक्रमों और शिक्षाओं के माध्यम से युवा वकीलों और छात्रों को इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति संवेदनशील बनाना महत्वपूर्ण है। - एआई और मानवाधिकार:
एआई का उपयोग मानवीय अधिकारों की सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देने के लिए किया जाना चाहिए, लेकिन इसके दुरुपयोग से जुड़े खतरों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
यह स्पष्ट है कि तकनीकी प्रगति और एआई के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों के साथ-साथ, इसके उपयोग के प्रभावों को समझने और दिशा देने के लिए एक व्यापक और ज़िम्मेदारीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।