भारत में आतंकी भेजने और पहलगाम में निर्दोषों की हत्या के लिए खाद पानी देने वाला पाकिस्तान खुद विभाजन की तरफ बढ़ रहा है। भारत से युद्ध की गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान में लगातार कई समूह आजादी की लड़ाई तेज कर रहे हैं। खराब आर्थिक हालातों से जूझता पाकिस्तान इन आवाजों को दबाने में भी विफल है।
पाकिस्तान में सिंधी, बलूच और पश्तून समुदाय लंबे समय से आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह अपना अलग देश बनाना चाहते हैं। इन समुदायों का पाकिस्तान और उसकी फ़ौज लगातार शोषण करती आई है। इनसे लगातार भेदभाव किया जाता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य तनाव के बीच, बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तान से आजादी के लिए अपने आंदोलन को दोबारा चालू कर दिया है। उन्होंने अपनी आजादी की घोषणा भी कर दी है। बलूचों के अलावा अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भी आजादी की माँग उठी है।
सिंध प्रांत को पाकिस्तान से आजाद करके सिंधु देश के अलग देश के निर्माण की माँग करने वाले संगठन ‘जय सिंधु स्वतंत्रता आंदोलन’ (JSFM) ने भी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ अपने आजादी के अभियान को तेज कर दिया है।
इसके अलावा पश्तूनिस्तान नामक अलग देश की माँग करने वाली आवाजें भी उठी हैं। पश्तूनिश्तान की माँग करने वाले खैबर पख्तूनख्वा और उत्तरी बलूचिस्तान के हिस्सों को पाकिस्तान से अलग करके अपना देश बनाना चाहते हैं।
बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई
भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव के दौरान BLA ने पाकिस्तान से आजादी की घोषणा की और संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान के लोकतांत्रिक गणराज्य को मान्यता देने का आग्रह किया। काफी कम आबादी वाले और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान लम्बे समय से उग्रवाद से जूझ रहा है।
ऐतिहासिक रूप से, बलूचिस्तान ‘खान ऑफ कलात’ के अधीन एक स्वतंत्र देश था। हालाँकि, भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद यह मार्च 1948 में यह पाकिस्तान में शामिल हो गया। खान ऑफ कलात ने दबाव में आकर अपनी और बलूच समुदाय की इच्छा के विरुद्ध विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
इससे पहले 11 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों की निगरानी में कलात और पाकिस्तान के बीच एक स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते में कलात को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी गई थी। कलात को ही अब बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है।
1948 में समझौते के बावजूद पाकिस्तान ने खान ऑफ कलात को बलूचिस्तान को पाकिस्तान में विलय करने के लिए मजबूर किया। पाकिस्तान चाहता था कि बलूचिस्तान उसमे शामिल हो जाए। इस विलय के बाद से बलूचिस्तान में पाँच बार विद्रोह हो चुके हैं।
यह विद्रोह 1948, 1958, 1962, 1973-77 में हुए हैं। इसके बाद 2000 से चालू हुई लड़ाई आज तक जारी है। बलूच खुद को राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने, हिंसक और यातनापूर्ण दमन और संसाधनों के दोहन के चलते हथियार उठाने पर मजबूर हैं।
बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व अब BLA कर रही है। हाँलाकि, पाकिस्तान की 2009 में शुरू की गई नीति ‘मारो और फेंको’ के चलते इसके सदस्य लगातार मारे जा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग गायब भी किए गए हैं। हजारों की संख्या में लोगों को पाकिस्तान की फ़ौज ने उठाया और वह फिर कभी वापस नहीं लौटे।
सिंध भी चाहता है स्वतंत्रता
पाकिस्तान के सिंध प्रांत की आजादी की माँग ‘जय सिंधु स्वतंत्रता आंदोलन’ (JSFM) द्वारा की जा रही है। जो सिंधु देश के एक अलग देश के गठन की वकालत करता रहा है। सिंध के लोगों की लंबे समय से माँग रही है कि सिंध का एक अलग स्वतंत्र देश हो।
अल्पसंख्यक सिंधी समुदाय ने इस्लामी मुल्क पाकिस्तान पर उर्दू थोपने और जमीन हड़पने के आरोप लगाए हैं। सिंधियों का कहना है कि पाकिस्तान उनकी स्थानीय संस्कृति को मिटा रहा है। पिछले कुछ सालों में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा कई स्वतंत्रता समर्थक कार्यकर्ताओं को न सिर्फ मारा और प्रताड़ित किया गया है बल्कि जबरन गायब भी कर दिया गया है।
पश्तूनिश्तान की लड़ाई भी हुई तेज
पंजाबियों के बाद पश्तून पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है। ये पाकिस्तान की कुल आबादी का 15% हिस्सा हैं। यह समुदाय भी भेदभाव और उत्पीड़न के कारण एक स्वतंत्र देश की माँग कर रहा है।
पश्तूनों की बड़ी आबादी पाकिस्तान के पश्चिमी इलाके में रहती है। यह इलाका पश्तूनिस्तान अख्लाता है। इसका कुछ हिस्सा पाकिस्तान और कुछ हिस्सा अफगानिस्तान में आता है। पाकिस्तान और अफगान पश्तूनों ने 1893 में बनाई गई डूरंड लाइन के सीमांकन को खारिज किया है। यह सीमा अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान को विभाजित करती है।
पश्तूनों का कहना है दोनों तरफ उनके लोग रहते हैं, ऐसे में वह इस सीमा को नहीं मान सकते। हाल के दिनों में पश्तून समुदाय के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व पश्तून तहफुज मूवमेंट (PTM) ने किया है। इसके मुखिया मंजूर पश्तीन हैं। मंजूर पश्तीन की आवाज भी लगातार पाकिस्तान दबाता रहा है।
लोगों की माँगों को उठाने के लिए बनाया गया PTM एक सामाजिक आंदोलन है। यह पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी फ़ौज की मनमानी और हर तरह के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाता है। इसके भी कई कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की फ़ौज ने यातनाएँ दी हैं।
गिलगित और बाल्टिस्तान में भी उठी आवाज
पाकिस्तानी फौज को गिलगित-बाल्टिस्तान में रहने वाले लोगों से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान उस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है, जिसे पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा रखा है।
प्राकृतिक और भौगोलिक रुप से सुंदर इस क्षेत्र को पाकिस्तानी सरकार द्वारा नजरअंदाज किया गया है। गिलगित-बाल्टिस्तान रणनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर, उत्तर-पश्चिम में चीन के शिनजियांग प्रांत, पूर्व में लद्दाख और दक्षिण में कश्मीर से घिरा हुआ है।
पाकिस्तानी सरकार की लापरवाही के कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोग मुश्किलों से भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ विकास का भी अभाव है। यहाँ के स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी फ़ौज पर उनकी जमीनों पर अवैध कब्जा करने का आरोप लगाया है।
धार्मिक आधार पर भारत को विभाजित करके बनाए गए इस्लामी देश पाकिस्तान में कई अलगाव की आवाजें उठती आई हैं। इसका कारण पाकिस्तान की अपनी कोई पहचान नहीं होना है। पाकिस्तान के चार प्रदेशों में रहने वाले लोगों को लगातार प्रताड़ित किया जाता है।
इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान को उसकी जनता द्वारा चुनी गई सरकार नहीं बल्कि फ़ौज चलाती है। यह फ़ौज इस्लाम के आधार पर चलती है। पाकिस्तानी फ़ौज के हाथों मारे जाने के डर के चलते सिंधी हो या बलूच, सभी आजादी चाहते हैं।
आजादी की यह चिंगारी उत्तर में गिलगित बाल्टिस्तान से लेकर अफगान सीमा पर FATA और सिंध तथा बलूचिस्तान तक लग चुकी है। यह कोई पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान की फ़ौज किसी जातीय समूह पर अपनी इस्लामी थोप रही हो।
इससे पहले पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली लोगों के खिलाफ पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा इसी तरह की दमनकारी नीतियाँ लागू की गई थी। इसकी वजह से 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम हुआ और बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश का गठन हुआ। इस बार लगी चिंगारी का अंत भी पाकिस्तान के नए विभाजनों के रूप में नजर आ रहा है।