काशी ज्ञानवापी, मथुरा ईदगाह और बाबरी मस्जिद मामले के बाद मेरठ की जामा मस्जिद को लेकर इतिहासकार के. डी. शर्मा ने दावा किया है कि वो कभी बौद्ध मठ था। जिसे मुगल शासन काल में तुड़वाकर मस्जिद बनवाई गई। इतिहास कर शर्मा ने बताया कि मस्जिद के खंबे और दीवारों पर बौद्ध मौर्य कला के चित्र उकेरे हुए हैं और यहां 1875 में आए भूकंप के दौरान यहां खंबे बाहर निकल आए थे जोकि उनके मित्र असलम सैफी के घर में मिले इनका जब मौर्यकाल के प्रतीक चिन्हों से मिलान किया गया तो ये हुबहू वैसे ही मिले। जिससे ये बात पुष्ट होती है कि ये मस्जिद बौद्ध मठ को तोड़कर बनाई गई थी।
शर्मा ने बताया कि 119 साल पहले प्रकाशित ब्रिटिश हुकूमत के गजेटियर के चौथे वॉल्यूम पेज संख्या 273 में भी लिखा हुआ है कि ये घटना हुई थी और ये पहले बौद्ध मंदिर था। जिसे बाद में तोड़ा गया और मस्जिद के रूप में ढाला गया। शर्मा ने बताया कि मठ मंदिर में ही सूर्य, कमल के प्रतीक चिन्ह होते हैं जबकि मस्जिद में चांद तारे होते है। ये पिलर में स्पष्ट दिखाई देते है कि ये मौर्य बुद्धिष्ठ कला है। उन्होंने दावा किया है कि यदि एएसआई से इसकी जांच करवाई जाए तो हकीकत सामने आ जाएगी, शर्मा कहते हैं कि इसकी मरम्मत भी इसीलिए नहीं करवाई जाती क्योंकि इससे यहां का भेद खुल जाएगा।
उधर, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे और शहर काजी जैनुस शाहजुद्दीन का कहना है कि ये शाही मस्जिद दिल्ली के सल्तनत के नसीरुद्दीन महमूद ने बनवाई थी जोकि काजी खानदान से ताल्लुक रखते थे। ये गजनवी समय के दो सौ साल बाद की है, शाही मस्जिद आठ सौ साल पुरानी है। इस तरह के दावे फिजूल हैं और आपसी सद्भाव को चोट पहुंचाते हैं।