हवलदार (सेवानिवृत्त) बलदेव सिंह का जीवन और योगदान भारतीय सेना के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है। बाल सैनिक के रूप में उनकी सेवा और उसके बाद चार युद्धों में उनकी भागीदारी, भारतीय सेना और देशभक्ति की प्रेरणादायक कहानी है।
उनका जीवन निम्नलिखित पहलुओं पर प्रकाश डालता है:
- प्रारंभिक जीवन और बाल सैनिक के रूप में सेवा:
हवलदार बलदेव सिंह ने 16 वर्ष की आयु में, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में नौशेरा और झंगर की लड़ाई में भाग लिया। बाल सैनिकों के समूह के रूप में उन्होंने फ्रंटलाइन पर डिस्पैच रनर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां उनकी हिम्मत और समर्पण को प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सराहा। - भारतीय सेना में करियर:
बलदेव सिंह ने 1950 में भारतीय सेना में सेवा शुरू की और 29 वर्षों तक देश की सेवा की। उन्होंने 1961, 1962 और 1965 के युद्धों में हिस्सा लिया और अपनी वीरता से भारतीय सेना को मजबूती प्रदान की। - 1971 के युद्ध में भूमिका:
सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सेवा में वापस बुलाया गया। इस युद्ध में उन्होंने 11 जाट बटालियन के साथ आठ महीने तक सेवा की, जो उनके देशप्रेम और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। - सम्मान और स्मृतियाँ:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में नौशेरा दौरे के दौरान बलदेव सिंह से मुलाकात कर उनके योगदान को याद किया। उन्होंने भारत के नायकों ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और नायक जदुनाथ सिंह के बलिदान को भी श्रद्धांजलि दी, जिनके साथ बलदेव सिंह ने लड़ाई लड़ी थी। - निधन और श्रद्धांजलि:
बलदेव सिंह का 93 वर्ष की उम्र में निधन भारतीय सेना और पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया, जो उनके प्रति देश के गहरे सम्मान को दर्शाता है।
बलदेव सिंह का योगदान:
उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो युवा पीढ़ी को देश के लिए सेवा और त्याग का पाठ पढ़ाता है। भारतीय सेना ने अपने इस वीर योद्धा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके बलिदान और सेवाओं को हमेशा स्मरणीय बताया। उनका जीवन भारतीय सेना के साहस, समर्पण, और सेवा की सच्ची मिसाल है।