अफ्रीका के इस्लामी मुल्क मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक लगा दी गई है। मोरक्को में 99 फीसदी मुस्लिम आबादी है इसके बावजूद ये फैसला किंग मोहम्मद VI ने लिया है। इस रोक की दुनियाभर में चर्चे हैं। मोरक्को ने अपना पशु बाजार बंद कर दिया है। किंग ने अपने आदेश में बकरे समेत किसी भी पशु की कुर्बानी नहीं देने का आदेश दिया है। इस आदेश को लागू कर दिया गया है।
क्यों लगाई गई पशु की कुर्बानी पर रोक?
किंग मोहम्मद VI ने रोक के पीछे आर्थिक और पर्यावरण संकट की बात कही है। देश में पिछले 7 साल से गंभीर सूखा पड़ा हुआ है। फसलों की पैदावार नहीं हो पा रही है। पशुओं को चारे और पानी की किल्लत हो रही है। इसकी वजह से पशुओं की संख्या में 33 फीसदी की कमी आई है। वहीं चारे की कीमत 50 फीसदी बढ़ गए हैं। इसका असर किसानों और पशुपालकों पर पड़ा है। इसके अलावा माँस की कीमत में इजाफा हुआ है। इससे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए ‘कुर्बानी’ की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है।
किंग मोहम्मद VI मोरक्को के मजहबी प्रमुख भी हैं। उनका कहना है कि इस साल बदहाली की स्थिति है ऐसे में बकरीद पर कुर्बानी नहीं देना इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप है। किंग के मुताबिक इस्लाम में कुर्बानी को अच्छा माना गया है लेकिन ये अनिवार्य नहीं है। इसलिए ‘प्रतिकात्मक कुर्बानी’ भी दी जा सकती है।
पशुओं की खरीद-बिक्री बंद
पशुओं की खरीद-बिक्री को रोकने के लिए पशु बाजारों और मंडियों को बंद कर दिया गया है। देशभर के गवर्नरों और स्थानीय प्रशासन को इसे सख्ती से लागू करने के आदेश दिये गये हैं। बकरीद से पहले आम तौर पर जिन बाजारों में जबरदस्त भीड़भाड़ होती थी और पशुओं की खरीद बिक्री होती थी वहाँ अब शांति छाई हुई है।
मोरक्को का ये कदम दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के लिए उदाहरण है। किंग ने इस साल की शुरुआत में ही मोरक्को की जनता से पारंपरिक बलि से दूर रहने की अपील की थी, ताकि माँस की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाया जा सके और पशुधन की वृद्धि हो।
ऑस्ट्रेलिया से मँगाई जा रही 1 लाख भेड़ें
मोरक्को ने माँस और पशुओं के आयात पर टैक्स में कटौती की है। मोरक्को अब ऑस्ट्रेलिया से 1 लाख भेड़ों का आयात करने जा रहा है। ऐसा देश में माँस की कमी को दूर करने के लिए किया जा रहा है। मोरक्को सरकार ने 6.2 बिलियन दिरहम यानी ₹ 532.66 करोड़ का कार्यक्रम शुरू किया है।
इसका मकसद पशुपालकों को आर्थिक सहायता मुहैया करना और पशुओं की वृद्धि करना है। पशुओं के लगातार कटने से उनकी संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। किंग के इस फैसले का आम तौर पर लोगों ने स्वागत किया है लेकिन कई कट्टरपंथी संगठनों ने इसे मजहबी मामलों में दखल बताया है।