लोकसभा में आज 19 सितंबर को 128वां संविधान संशोधन बिल यानी नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया। इसके मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेंशन लागू किया जाएगा। इस फॉर्मूले के मुताबिक, लोकसभा की 543 सीटों में 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
नए विधेयक में सबसे बड़ा पेंच ये है कि यह डीलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। ये परिसीमन इस विधेयक के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही होगा। 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन करीब-करीब असंभव है। यानी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव समय पर हुए तो इस बार महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। यह 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है।
#WATCH | Special Session of Parliament | PM Narendra Modi speaks on Women's Reservation Bill; says, "… Today a bill has been introduced in the Lok Sabha. After discussion, it will come here also. Today we are taking an important step towards women empowerment…" pic.twitter.com/hcbCYeE1Lq
— ANI (@ANI) September 19, 2023
बिल के पास होने के बाद लोकसभा में 181 महिला सांसद होंगी
कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि हम ऐतिहासिक बिल लाने जा रहे हैं। अभी लोकसभा में 82 महिला सांसद हैं, इस बिल के पास होने के बाद 181 महिला सांसद हो जाएंगी। यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जन प्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। लोकसभा की कार्यवाही 20 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है।
Modi government introduces new Women's Reservation bill in Lok Sabha
Read @ANI Story | https://t.co/iJkqOu0fI4#Modigovernment #WomenReservationBill #LokSabha pic.twitter.com/xzdutRpVxK
— ANI Digital (@ani_digital) September 19, 2023
महिला आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस ने श्रेय लेने की कोशिश की। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के बयान पर हंगामा हुआ। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान बिल लाया गया था। यह बिल अभी मौजूद है। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम नया बिल लाए हैं। आप जानकारी दुरुस्त कर लीजिए।
इसके बाद विपक्षी सांसदों ने बिल की कॉपी को लेकर हंगामा किया। इनका कहना था कि उन्हें बिल की कॉपी नहीं मिली है। सरकार का कहना था कि बिल को अपलोड कर दिया गया है।
मोदी ने कहा- भवन बदला है, भाव भी बदलना चाहिए; पीएम की स्पीच की 5 बड़ी बातें
- कौन कहां बैठेगा, व्यवहार तय करेगा: अभी चुनाव तो दूर हैं और जितना समय हमारे पास बचा है। मैं मानता हूं कि यहां जो जैसा व्यवहार करेगा, यह निर्धारित करेगा कि कौन यहां बैठेगा, कौन वहां बैठेगा। जो वहां बैठे रहना चाहता है, उसका व्यवहार क्या होगा, इसका फर्क आने वाले समय में देश देखेगा।’
- हमारा भाव जैसा होता है, वैसा ही घटित होता है: ‘हमारा भाव जैसा होता है, वैसे ही कुछ घटित होता है। यद् भावं तद भवति…! मुझे विश्वास है कि भावना भीतर जो होगी, हम भी वैसे ही भीतर बनते जाएंगे। भवन बदला है, भाव भी बदलना चाहिए, भावनाएं भी बदलनी चाहिए। संसद राष्ट्रसेवा का स्थान है। यह दलहित के लिए नहीं है।
- आज की तारीख इतिहास में अमरत्व प्राप्त करेगी: कल 18 सितंबर को ही कैबिनेट में महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दी गई है। आज 19 सितंबर की यह तारीख इसलिए इतिहास में अमरत्व प्राप्त करने जा रही है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं, नेतृत्व कर रही हैं तो बहुत आवश्यक है कि नीति निर्धारण में हमारी मांएं-बहनें, हमारी नारी शक्ति अधिकतम योगदान दे। योगदान ही नहीं, महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाए।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम: देश की नारी शक्ति के लिए सभी सांसद मिलकर नए प्रवेश द्वार खोल दें, इसका आरंभ हम इस महत्वपूर्ण निर्णय से करने जा रहे हैं। महिलाओं के नेतृत्व में विकास के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए हमारी सरकार एक प्रमुख संविधान संशोधन विधेयक पेश कर रही है। इसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी को विस्तार देना है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के माध्यम से हमारा लोकतंत्र और मजबूत होगा।
- बिल पर काफी चर्चा हुई, वाद-विवाद हुए: कई सालों से महिला आरक्षण के संबंध में बहुत चर्चा हुई। काफी वाद-विवाद हुए। महिला आरक्षण को लेकर संसद में पहले भी कुछ प्रयास हुए हैं। 1996 में इससे जुड़ा विधेयक पहली बार पेश हुआ। अटल जी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया, लेकिन उसे पास कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए और उस कारण से वह सपना अधूरा रह गया। महिलाओं को अधिकार देने, उन्हें शक्ति देने जैसे पवित्र कामों के लिए शायद ईश्वर ने मुझे चुना है।
तीन दशक से पेंडिंग है महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है। यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने उठाया था। 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था।
तब सपा और राजद ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। तभी से महिला आरक्षण बिल पेंडिंग है।
बिल का विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क
सपा और राजद महिला OBC के लिए अलग कोटे की मांग कर रही थीं। इस बिल का विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क था कि इससे संसद में केवल शहरी महिलाओं का ही प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। दोनों पार्टियों की मांग है कि लोकसभा और राज्यसभा में मौजूदा रिजर्वेशन बिल में से एक तिहाई सीट का कोटा पिछड़े वर्गों (OBC) और अनुसूचित जातियों (SC) की महिलाओं के लिए होना चाहिए।
बिना किसी शर्त पर कांग्रेस का बिल को समर्थन
राहुल गांधी ने कहा कि अब दलगत राजनीति से ऊपर उठें। हम महिला आरक्षण बिल पर बिना शर्त के समर्थन करेंगे। संसद के स्पेशल सेशन के पहले दिन जब PM मोदी के बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में बोल रहे थे तो वे कांग्रेस की पूर्व सरकारों के कामों को गिनाने लगे, इस दौरान सोनिया ने उन्हें टोका और महिला आरक्षण पर बोलने को कहा।
विपक्ष भी महिला आरक्षण बिल के पक्ष में
तेलंगाना CM केसीआर की बेटी के. कविता ने 13 सितंबर को दिल्ली में 13 विपक्षी दलों के साथ बैठक की थी। इस दौरान उन्होंने संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में वुमन रिजर्वेशन बिल पेश करने की मांग की थी। कविता ने कहा था कि उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) का विश्वास है कि महिलाओं के लिए रिजर्वेशन के साथ-साथ कोटा के भीतर कोटा पर भी काम किया जाना चाहिए।
कविता लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग कर रही हैं। इसी मांग को लेकर कविता ने 10 मार्च को दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल की थी। इसमें AAP, अकाली दल, PDP, TMC, JDU, NCP, CPI, RLD, NC और समाजवादी पार्टी समेत कई पार्टियां शामिल हुई थीं, लेकिन कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया था।
महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की टाइम लाइन
1931: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान महिलाओं के लिए राजनीति में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। इसमें बेगम शाह नवाज और सरोजिनी नायडू जैसी नेताओं ने महिलाओं को पुरुषों पर तरजीह देने के बजाय समान राजनीतिक स्थिति की मांग पर जोर दिया।
संविधान सभा की बहसों में भी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। तब इसे यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि लोकतंत्र में खुद-ब-खुद सभी समूहों को प्रतिनिधित्व मिलेगा।
1947: फ्रीडम फाइटर रेणुका रे ने उम्मीद जताई कि भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की गारंटी दी जाएगी। हालांकि यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित ही रहा।
1971: भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति का गठन किया गया, जिसमें महिलाओं की घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला गया। हालांकि समिति के कई सदस्यों ने विधायी निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का विरोध किया, उन्होंने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का समर्थन किया।
1974: महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए महिलाओं की स्थिति पर एक समिति ने शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई थी।
1988: महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perpective Plan) ने पंचायत स्तर से संसद तक महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की। इसने पंचायती राज संस्थानों और सभी राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों की नींव रखी।
1993: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल सहित कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया है।
1996: एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। इसके तुरंत बाद, उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा भंग हो गई
1998: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में विधेयक को फिर से पेश किया। इसके विरोध में एक राजद सांसद ने विधेयक को फाड़ दिया। विधेयक फिर से लैप्स हो गया, क्योंकि वाजपेयी सरकार के अल्पमत में आने के साथ 12वीं लोकसभा भंग हो गई थी।
1999: NDA सरकार ने 13वीं लोकसभा में एक बार फिर विधेयक पेश किया, लेकिन सरकार फिर से इस मुद्दे पर आम सहमति जुटाने में नाकाम रही। NDA सरकार ने 2002 और 2003 में दो बार लोकसभा में विधेयक लाया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों ने समर्थन का आश्वासन दिए जाने के बाद भी इसे पारित नहीं कराया जा सका।
2004: सत्ता में आने के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने साझा न्यूनतम कार्यक्रम (CMP) में अपने वादे के तहत बिल पारित करने की अपनी मंशा की घोषणा की।
2008: मनमोहन सिंह सरकार ने विधेयक राज्यसभा में पेश किया और 9 मई, 2008 को इसे कानून और न्याय पर स्थायी समिति को भेजा गया।
2009: स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और विधेयक को समाजवादी पार्टी, जेडीयू और राजद के विरोध के बीच संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया।
2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी। विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन सपा और राजद के UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकियों के बाद मतदान स्थगित कर दिया गया। 9 मार्च को राज्यसभा से महिला आरक्षण विधेयक को 1 के मुकाबले 186 मतों से पारित कर दिया गया। हालांकि, लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पाई।
2014 और 2019: भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया, लेकिन इस मोर्चे पर कोई ठोस प्रगति नहीं की।
दुनिया की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी
- UN women की एक रिपोर्ट में 1 जनवरी 2023 तक का डेटा शेयर किया गया है। इसके मुताबिक- 31 देशों में 34 महिलाएं हेड ऑफ द स्टेट या फिर हेड ऑफ द गवर्नमेंट हैं। अगर जेंडर इक्वेलिटी के लिहाज से देखें तो महिलाओं को पुरुषों की बराबरी करने में अभी 130 साल और लगेंगे।
- 17 देशों में महिलाएं हेड ऑफ द स्टेट और 19 देशों में हेड ऑफ द गवर्नमेंट हैं। 22.8% महिलाएं कैबिनेट मेंबर्स हैं। दुनिया में सिर्फ 13 देश ही ऐसे हैं, जहां की कैबिनेट्स में महिलाओं की तादाद 50% या उससे ज्यादा है।
- इसमें भी खास बात ये है कि पावर सेंटर्स से ताल्लुक रखने वाली इन महिलाओं के पास वुमन एंड जेंडर इक्वैलिटी, फैमिली एंड चिल्ड्रन अफेयर्स, सोशल अफेयर्स और सोशल सिक्योरिटी जैसे डिपार्टमेंट्स हैं।
- orf फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के हवाले से सियासत में महिलाओं की भूमिका के बारे में जानकारी दी गई है। इसके मुताबिक- 1 जनवरी 2023 तक दुनिया के सभी देशों में वुमन रिप्रजेंटेशन (एक सदन या दोनों सदन मिलाकर) 26.5% था। हर साल यह 0.4% की रफ्तार से बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट को 187 देशों में स्टडी के आधार पर तैयार किया गया है और हैरानी की बात यह है कि इस लिस्ट में भारत को 143वें स्थान पर रखा गया है।
- लोकसभा में 15.2% और राज्यसभा में 13.8% महिलाएं हैं। यह डेटा जुलाई 2023 तक का है।
- रिपोर्ट में इस डेटा एनालिसिस के हवाले से कहा गया है कि जेंडर रिप्रेजेंटेशन की यह कछुआ चाल रही तो पार्लियामेंट रिप्रेजेंटेशन की फील्ड में जेंडर इक्वॉलिटी 2063 से पहले नहीं लाई जा सकेगी।