प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर हैं. पूरी दुनिया की नजर इस यात्रा पर है. तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनकी पहली रूस यात्रा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बुलावे पर 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल हुए हैं. पिछले 3 सालों में दोनों देशों के बीच कोई भी द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई है.
पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान मॉस्को का ‘टॉम्ब ऑफ द अननोन सोल्जर’ चर्चा में हैं, जहां पीएम मोदी पहुंचेंगे. जानिए क्या है टॉम्ब ऑफ द अननोन सोल्जर?
क्या है ‘टॉम्ब ऑफ द अननोन सोल्जर’?
‘टॉम्ब ऑफ द अननोन सोल्जर’ एक वॉर मेमोरियल है. यह स्मारक द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए सोवियत संघ के सैनिकों को समर्पित है. दुनिया में 50 से अधिक देश हैं जहां इसी तरह का स्मारक मौजूद है. पीएम मोदी यहां पहुंचेंगे और सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे. यह मॉस्को के अलेक्जेंडर गार्डन में है. सोवियत सैनिकों को समर्पित इस युद्ध स्मारक को आर्किटेक्ट डी. आई. बर्डिन और वी. ए. क्लिमोव ने डिजाइन किया गया था. 8 मई, 1967 को इसका अनावरण किया गया.
आपका नाम अज्ञात है, आपका काम अमर है
इस स्मारक के सामने एक वर्गाकार मैदान पांच कोण वाला तारा बना हुआ है और उसके केंद्र में अमर ज्वाला जलती है. यह वहां पर मौजूद कांस्य शिलालेख को रोशन करती है. शिलालेख पर रूसी भाषा में Имя твоё неизвестно, подвиг твой бессмертен लिखा है. जिसका मतलब है, आपका नाम अज्ञात है, आपका काम अमर है. इसे सोवियत सैनिकों के बलिदान को दर्शाता है.
समय-समय पर इस वॉर मेमोरियल का जीर्णोद्धार किया गया है. इसकी 30वीं वर्षगांठ तक स्मारक को पूरी तरह से बदल दिया गया. इसे पहले से ज्यादा व्यवस्थित किया गया. 17 नवंबर 2009 को, तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने स्मारक को सैन्य गौरव का एक राष्ट्रव्यापी स्मारक घोषित किया. इसके बाद इसके मूल स्वरूप को संरक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण किया गया और यह सैन्य गौरव का प्रतीक बन गया.
23 फरवरी, 2010 को मेदवेदेव की उपस्थिति में एक समारोह में अमर ज्वाला को अलेक्जेंडर गार्डन में लाया गया. पुनर्निर्माण का कार्य साल 2010 में विजय दिवस तक पूरा हो गया था, और 8 मई को, रूस, बेलारूस और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों द्वारा सैन्य गौरव के राष्ट्रीय स्मारक का उद्घाटन किया गया था. रूस 3 दिसंबर 2014 से हर साल अज्ञात सैनिक दिवस मनाता आ रहा है.
कैसे हुई अज्ञात सैनिकों के लिए वॉर मेमोरियल बनाने की शुरुआत?
देश के लिए जान न्योंछावर करने वाले ऐसे सैनिकों के लिए वॉर मेमोरियल बनाने की परंपरा 1920 में फ्रांस और ब्रिटेन में शुरू हुई. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व स्तर पर यह चलन शुरू हो गया. आज 50 से अधिक देशों में ऐसे स्मारक हैं, जो राष्ट्रों के गौरव के प्रतीक स्थल बन गए हैं.
यहां बनीं कब्र उन अज्ञात सैनिकों का सम्मान करती हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान दे दी. उन्हें याद किया जाता है भले ही उनके नाम की जानकारी ऐतिहासिक दस्तावेजों में न मौजूद हो. जंग के दौरान शहीद हुए सैनिकों को पहचान करना एक बड़ी समस्या थी क्योंकि कई शव बहुत बुरी हालत में थे. इसलिए ऐसे सैनिकों के लिए वॉर मेमोरियल बनाने की परंपरा शुरू हुई.
ये स्मारक राष्ट्रीय और व्यक्तिगत शोक के लिए हैं. वॉर मेमोरियल शहीद हुए सैनिकों के परिवारों को अपने प्रियजनों का सम्मान करने और राष्ट्र को अपने नायकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक प्रतीक स्थल के रूप में मौजूद है. रूस में अज्ञात सैनिक का वॉर मेमोरियल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों के बलिदान के रूप में मौजूद है.