ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर एक रिपोर्ट जारी उसके खतरनाक मंसूबों को बेनकाब किया है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) एक कट्टरपंथी संगठन है जिस पर भारत में आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देने, साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने और एक इस्लामी जिहाद की योजना बनाने का आरोप है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) और राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा की गई जाँचों से यह साफ़ हुआ है कि PFI ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपने नेटवर्क का विस्तार किया है।
इसका उद्देश्य समाज में अस्थिरता फैलाकर साम्प्रदायिक दंगों को भड़काना, सरकार के खिलाफ विद्रोह करना और हिंसा को उकसाना था। इस रिपोर्ट में PFI के वित्तीय नेटवर्क, विदेशी फंडिंग, और उसकी गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है।
क्या है पीएफआई?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की स्थापना 2006 में केरल में हुई थी। यह संगठन पहले एक ‘सामाजिक सुधारक’ संगठन के रूप में सामने आया, लेकिन धीरे-धीरे इसके असली उद्देश्य सामने आए। संगठन ने जल्दी ही भारत के विभिन्न राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, और अन्य राज्यों में विस्तार किया। इसके अलावा, PFI का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क भी खाड़ी देशों और सिंगापुर तक फैला हुआ है।
PFI का संचालन इसके शीर्ष नेताओं और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। ये सदस्य संगठन के विभिन्न आयामों को संचालित करने, फंडिंग का प्रबंधन करने, और संगठन की रणनीति बनाने में शामिल हैं। पीएफआई के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों में सिर्फ देश में बैठे कट्टरपंथी ही नहीं हैं, बल्कि विदेश में बैठे इस्लामी कट्टरपंथी भी हैं, जिनमें से देश में बैठे अधिकांश कट्टरपंथियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
KA रऊफ शरीफ, पद: नेशनल जनरल सेक्रेटरी, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI)
भूमिका: संगठन के यूथ विंग के संचालन की जिम्मेदारी थी। इनके नेतृत्व में युवाओं को संगठन में शामिल किया गया और विभिन्न स्थानों पर हिंसक गतिविधियों के लिए प्रेरित किया गया।
अब्दुल रज़ाक BP, पद: डिविजनल प्रेसिडेंट, केरल
भूमिका: स्थानीय स्तर पर संगठन का विस्तार और विभिन्न अभियानों का नेतृत्व किया।
अशरफ MK, पद: राज्य कार्यकारी परिषद (SEC) सदस्य, PFI केरल यूनिट
भूमिका: राज्य स्तर पर फंडिंग, कार्यक्रमों की योजना और सामरिक निर्णय लेने में शामिल थे।
शफीक़ पायथ, पद: PFI सदस्य, कतर
भूमिका: कतर से संगठन के लिए धन इकट्ठा करने और उसे भारत भेजने का कार्य किया।
परवेज़ अहमद, पद: दिल्ली स्टेट PFI के अध्यक्ष
भूमिका: दिल्ली में PFI की गतिविधियों का नेतृत्व और साम्प्रदायिक दंगे भड़काने में शामिल रहे।
साहुल हमीद, पद: PFI सदस्य, सिंगापुर
भूमिका: सिंगापुर से हवाला के जरिए धन इकट्ठा कर भारत में भेजने का कार्य किया।
KS एम. इब्राहिम उर्फ असगर, पद: अरिवगम मदरसा का सचिव
भूमिका: मदरसों का इस्तेमाल धार्मिक रूपांतरण के लिए किया और जिहादी प्रशिक्षण में शामिल रहे।
ओ. एम. ए. सलाम, पद: PFI के अध्यक्ष, राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद (NEC) सदस्य
भूमिका: संगठन के मुख्य रणनीतिकार थे और राष्ट्रीय स्तर पर अभियानों का नेतृत्व किया।
अनिस अहमद, पद: NEC सदस्य
भूमिका: PFI के राष्ट्रीय अभियानों में प्रमुख भागीदारी।
ए. मोहम्मद युसुफ, पद: NEC सदस्य
भूमिका: संगठन के आतंकी एजेंडे को लागू करने में शामिल थे।
अब्दुल खाडर पुत्तूर, पद: शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक
भूमिका: सदस्यों को हथियारों का प्रशिक्षण देने का कार्य करते थे।
PFI का नेटवर्क और फंडिंग
PFI का वित्तीय नेटवर्क अत्यंत जटिल और वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। जाँच में पाया गया कि संगठन ने विभिन्न स्रोतों से कुल 94 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जमा की थी। यह राशि हवाला, डमी दानदाताओं, और विदेशों से बैंकिंग चैनलों के माध्यम से प्राप्त की गई थी।
PFI ने देशभर में 29 बैंक खातों का उपयोग किया, जो कि केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, जम्मू-कश्मीर और मणिपुर में स्थित थे। यह धनराशि विभिन्न परियोजनाओं और अभियानों के लिए उपयोग की जाती थी, जिनमें हिंसक गतिविधियाँ और साम्प्रदायिक तनाव भड़काने के प्रयास शामिल थे।
PFI का विदेशी नेटवर्क विशेष रूप से खाड़ी देशों में फैला हुआ था, जहाँ इसके 13,000 से अधिक सक्रिय सदस्य थे। संगठन ने सिंगापुर, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, ओमान और UAE में ज़िला कार्यकारी समितियाँ (District Executive Committees) बनाई थीं। हर समिति को करोड़ों रुपये जुटाने का लक्ष्य दिया गया था, और यह धन हवाला और अन्य गुप्त चैनलों के माध्यम से भारत में भेजा जाता था।
पीएफआई खड़ा कर रही थी जिहादी फौज
PFI के सदस्यों को हिंसक अभियानों के लिए तैयार करने के लिए विशेष हथियार प्रशिक्षण दिया जाता था। केरल के कन्नूर जिले में स्थित नारथ कैम्प में 2013 में ऐसा ही एक प्रशिक्षण कैंप चल रहा था, जहाँ सदस्यों को विस्फोटक और हथियारों का उपयोग सिखाया जा रहा था। इन प्रशिक्षण शिविरों को ‘शारीरिक शिक्षा’ के नाम पर आयोजित किया जाता था, जबकि असल में यहाँ आक्रामक युद्धाभ्यास की तैयारी की जाती थी।
PFI के सदस्यों ने फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों में भाग लिया था, जिसमें उन्होंने हिंसा भड़काने का काम किया था। इसके अलावा, हाथरस (उत्तर प्रदेश) में संगठन के सदस्यों ने साम्प्रदायिक तनाव भड़काने का प्रयास किया। PFI का लक्ष्य था कि वह समाज में अस्थिरता फैलाकर सरकार और कानून-व्यवस्था को चुनौती दे सके।
ED ने PFI और इसके सहयोगी संगठनों की 56.56 करोड़ रुपये की 35 संपत्तियाँ जब्त की हैं। इन संपत्तियों में कई ट्रस्टों और व्यक्तियों के नाम पर खरीदी गई जमीनें और इमारतें शामिल हैं। ये संपत्तियाँ धार्मिक संस्थानों और शैक्षिक ट्रस्टों के रूप में चलाई जा रही थीं, लेकिन इनका उपयोग संगठन की आतंकी गतिविधियों के लिए किया जा रहा था।
जाँच में पाया गया कि PFI ने नकली दानदाताओं के नाम पर फंडिंग इकट्ठा की थी और इसे विभिन्न संपत्तियों और खातों में छुपा रखा था। ED ने अब तक PFI से जुड़े 26 सदस्यों को गिरफ्तार किया है और 9 शिकायतें दर्ज की हैं।
PFI की गतिविधियों की जाँच से साफ़ है कि यह संगठन केवल एक सामाजिक आंदोलन नहीं, बल्कि एक संगठित आतंकवादी नेटवर्क था। इसके विदेशी फंडिंग, हवाला तंत्र, और देशभर में हिंसक गतिविधियों में संलिप्तता ने इसे भारत की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बना दिया है। ED और NIA की जाँच में संगठन की गहरी जड़ें उजागर हो चुकी हैं, और इसके प्रमुख सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है। हालाँकि PFI का नेटवर्क अभी भी सक्रिय है और इसे पूरी तरह से समाप्त करने के लिए सुरक्षा एजेंसियाँ और भी कठोर कदम उठा रही हैं।