हलाल प्रमाण पत्र पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: यूपी सरकार और जमीयत ट्रस्ट आमने-सामने
सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी 2025 को हलाल प्रमाण पत्र पर प्रतिबंध को लेकर सुनवाई की, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार और जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट के बीच जोरदार बहस हुई।
यूपी सरकार का पक्ष:
- सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि हलाल प्रमाणन केवल मांसाहारी उत्पादों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सीमेंट, लोहे की छड़, आटा, बेसन और पानी की बोतलों जैसे सामानों के लिए भी यह प्रमाण पत्र दिया जा रहा है।
- उन्होंने आरोप लगाया कि हलाल प्रमाणन एक व्यावसायिक गतिविधि बन गई है, जिससे सामानों की कीमतें बढ़ रही हैं और एजेंसियाँ लाखों-करोड़ों रुपये कमा रही हैं।
- SG ने कहा, “बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है?” और यह सवाल उठाया कि सरकार को यह देखना होगा कि ऐसे प्रमाण पत्र से बाज़ार में भेदभाव तो नहीं हो रहा।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने 2023 में हलाल प्रमाणित उत्पादों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और वितरण पर प्रतिबंध लगाया था।
जमीयत ट्रस्ट का पक्ष:
- ट्रस्ट ने SG तुषार मेहता की दलीलों को गलत और निंदनीय बताया।
- ट्रस्ट ने कहा कि हलाल प्रमाणन भारतीय उपभोक्ताओं के अधिकारों का हिस्सा है और इसे सिर्फ मांसाहारी उत्पादों तक सीमित नहीं किया जा सकता।
- ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि सरकार के बयानों से हलाल की अवधारणा के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
- हलफनामे में कहा गया कि कंपनियाँ माँग करती हैं, इसलिए हलाल प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
- ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट से सरकार से यह खुलासा करने का निर्देश देने की मांग की कि किस अधिकारी ने SG को ऐसा बयान देने के लिए अधिकृत किया था।
- जमीयत ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए कहा कि कोई सरकार किसी व्यक्ति की यह स्वतंत्रता नहीं छीन सकती कि वह क्या खा रहा है।
मामले की अहमियत और अगली सुनवाई:
यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, उपभोक्ता अधिकार और बाज़ार में समान अवसर जैसे कई पहलुओं से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट अब जमीयत ट्रस्ट के हलफनामे पर सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है।