मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित सतपुड़ा भवन में सोमवार दोपहर अचानक आग लग गई। सतपुड़ा भवन में प्रदेश के कई सरकारी दफ्तर हैं। बताया जा रहा है कि भीषण आग के कारण कई जरूरी फाइलें जलकर खाक हो गई हैं। सतपुड़ा भवन में लगी आग के बाद प्रदेश में सियासत भड़क गई है। सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इसे राज्य सरकार की साजिश करार दिया है।
सतपुड़ा भवन में रोजाना की तरह सोमवार को भी सामान्य तौर पर कामकाज हो रहा था। दोपहर के चार बज चुके थे और छुट्टी का वक्त होने वाला था। इसी दौरान सतपुड़ा भवन की तीसरी मंजिल पर अचानक आग लग गई। इस मंजिल पर अनुसूचित जनजाति क्षेत्रीय विकास योजना का कार्यालय है। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और ये छठी मंजिल तक पहुंच गई।
आग की खबर लगते ही कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। फायर ब्रिगेड की टीम वहां पहुंचती, इससे पहले ही आग तीसरी मंजिल से छठी मंजिल तक पहुंच गई। चौथी,पांचवीं और छठी मंजिल पर स्वास्थ्य निदेशालय के कार्यालय हैं। आशंका है कि आग के कारण हजारों फाइलें जलकर खाक हो गई।
सतपुड़ा भवन मंत्रालय भवन के दाहिनी ओर अरेरा पहाड़ियों पर स्थित है। साल 1982 में इसे करीब साढ़े चार करोड़ की लागत से बनाया गया था। इस इमारत में बेसमेंट, ग्राउंड फ्लोर समेत कुल छह फ्लोर हैं। इस भवन में 20 विभागों के कार्यालय हैं। इसके अलावा, कर्मचारियों के लिए, कैंटीन, बैंक, टेलीफोन एक्सचेंज, डाकघर की भी सुविधा है।
सतपुड़ा भवन में ये आग लगने की पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी सतपुड़ा भवन में दो बार आग लग चुकी है। हालांकि, इसे संयोग कहेंगे या कुछ और आग से जुड़ी पिछली दो घटनाएं चुनाव के आसपास की है। 12 जून को भी जो आग लगी वो विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले ली। गौरतलब है कि 2012 में यहां पहली बार आग लगी थी। अगले साल विधानसभा चुनाव होने थे। 2018 में ठीक विधानसभा चुनाव के बाद इस इमारत में आग लग गई।
आग लगने की ठोस वजह का तो पता नहीं चल सका है, लेकिन इसके पीछे सरकारी तंत्र की लापरवाही बताई जा रही है। जानकारी के मुताबिक, करीब 60 वर्ष पुरानी इस इमारत में फायर सेफ्टी के उपकरण नहीं लगे हैं। यदि यहां फायर अलार्म सिस्टम होता तो आग लगने की सूचना समय पर मिल जाती। इस इमारत का अभी तक फायर ऑडिट नहीं कराया गया। साथ ही एनओसी भी नहीं है। सात मंजिला इमारत में वाटर हाइड्रेंट तक नहीं लगा था। जिससे दमकलों को पानी की कमी का सामना भी करना पड़ा और आग बुझाने में देरी हुई।