चुरू: भारत की ‘एक्स्ट्रीम वेदर कैपिटल’ क्यों?
राजस्थान का चुरू शहर देश का वह इलाका है जहां मौसम अपने चरम रूप में दिखाई देता है। एक ओर यह शहर सर्दियों में -4.6°C तक जम जाता है, तो वहीं गर्मियों में यहां तापमान 50°C से भी ऊपर चला जाता है। हाल ही में रिकॉर्ड किए गए 45.8°C तापमान ने एक बार फिर से इसे भारत के सबसे गर्म स्थानों में शामिल कर दिया है। लेकिन आखिर ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे कई भौगोलिक, पर्यावरणीय और जलवायु संबंधी कारण हैं।
थार रेगिस्तान का असर
चुरू थार रेगिस्तान के किनारे बसा हुआ है। रेगिस्तानी रेत दिन में तेज़ी से गर्म होती है और रात को उतनी ही तेज़ी से ठंडी भी हो जाती है। इस वजह से दिन और रात के तापमान में भारी अंतर देखा जाता है। पहले यह फासला औसतन 15°C होता था, लेकिन अब यह 20°C से ज्यादा हो गया है, जो जलवायु परिवर्तन की एक सीधी निशानी है।
गर्म हवाओं का पश्चिमी प्रभाव
गर्मियों में चुरू की ओर हवा का बहाव मुख्यतः पश्चिम से होता है। ये हवाएं अरब, ईरान और पाकिस्तान जैसे क्षेत्रों से होकर आती हैं, जहां पहले से ही तापमान बहुत अधिक होता है। जब ये गर्म हवाएं राजस्थान की सूखी भूमि से टकराती हैं, तो तापमान और तेजी से बढ़ता है, जिससे चुरू में लू और रिकॉर्ड तोड़ गर्मी महसूस होती है।
बादलों की अनुपस्थिति और शुष्क वातावरण
चुरू में आर्द्रता बेहद कम रहती है और बादल शायद ही नजर आते हैं। नमी की कमी और साफ आसमान की वजह से सूर्य की किरणें सीधे ज़मीन पर पड़ती हैं, जिससे तापमान तेजी से बढ़ता है। यही कारण है कि यहां दिन के समय अत्यधिक गर्मी होती है।
हाड़ कंपा देने वाली सर्दी के कारण
गर्मी जितनी तीव्र होती है, सर्दी भी उतनी ही विकराल होती है। सर्दियों में बादलों की कमी, हवा में नमी की न्यूनता और रेत की ऊष्मा छोड़ने की प्रवृत्ति से रात को तापमान बहुत तेजी से गिर जाता है। 1973 में जब तापमान -4.6°C रिकॉर्ड किया गया था, तब भी यही परिस्थितियाँ थीं। बिना बादलों के आसमान से पृथ्वी की ऊष्मा तेजी से अंतरिक्ष में विकीर्ण हो जाती है, जिससे रात में ठंड चरम पर पहुंच जाती है।
जलवायु परिवर्तन की प्रयोगशाला बनता चुरू
जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि चुरू अब जलवायु परिवर्तन का जीवंत उदाहरण बन चुका है। पिछले एक दशक में यहां की औसत गर्मी का स्तर 1.5°C बढ़ चुका है। तापमान में उतार-चढ़ाव और हवा में धूलकणों (PM10 और PM2.5) की बढ़ती मात्रा ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है। UNDP की रिपोर्ट के मुताबिक, चुरू भारत के उन इलाकों में शामिल है जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबसे तेजी से दिख रहे हैं।
स्थानीय जनजीवन पर असर
चुरू का चरम मौसम सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, इसका सीधा असर यहां के लोगों की जिंदगी पर पड़ता है। अत्यधिक गर्मी मिट्टी की नमी सोख लेती है, जिससे खेती प्रभावित होती है। सर्दियों की बर्फीली हवाएं फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं। पशुपालन भी इससे अछूता नहीं रहता—गर्मी में जानवर चराई के लिए बाहर नहीं जा पाते, जिससे दूध उत्पादन में गिरावट आती है। साथ ही, पानी की उपलब्धता पर भी बुरा असर पड़ता है, जिससे आम नागरिकों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
निष्कर्ष
चुरू का मौसम हमें इस बात की चेतावनी देता है कि जलवायु परिवर्तन अब कोई भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। यह शहर भारत के उन कुछ दुर्लभ स्थानों में है जहां मौसम का हर रूप अपने चरम पर दिखाई देता है—चाहे वह सर्दी हो या गर्मी। चुरू अब एक चेतावनी बन गया है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में ऐसे ‘एक्सट्रीम वेदर जोन’ देशभर में आम हो सकते हैं।