5 मई को बहराइच में आयोजित लोकमाता अहिल्यादेवी होल्कर त्रिशताब्दी समारोह में उनके अद्वितीय राष्ट्र और समाज निर्माण योगदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी विभिन्न हस्तियों और धार्मिक-सामाजिक नेताओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख श्री स्वांत रंजन ने लोकमाता को भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रतीक बताया।
कार्यक्रम की प्रमुख बातें:
🔷 स्वांत रंजन (अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, RSS):
- लोकमाता अहिल्यादेवी ने मुगल आक्रमणों के बाद ज्योतिर्लिंगों का पुनर्निर्माण कराकर भारत की सनातन परंपरा की रक्षा की।
- उन्होंने पूरे भारत में एकात्मता और सामाजिक समरसता का भाव फैलाया।
- लोकमाता न केवल महान प्रशासक थीं, बल्कि समाज को साथ लेकर चलने वाली नेतृत्वकर्ता भी थीं।
- उन्होंने सदियों पुराने ज्ञान और अनुभव को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की परंपरा को आगे बढ़ाया, जैसे गंगा का अविरल पवित्र प्रवाह।
🔷 राज किशोर (सामाजिक समरसता प्रांत प्रमुख):
- लोकमाता के कर्तृत्व और व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए उनके समाज कल्याण के कार्यों को प्रेरणादायक बताया।
🔷 महंत वैदेही वल्लभ शरण महाराज (अध्यक्ष, त्रिशताब्दी समारोह समिति):
- लोकमाता अहिल्या देवी को राजरानी के साथ-साथ राज-योगिनी बताया।
- उन्होंने कहा कि लोकमाता का जीवन धर्म, नीति और सेवा का आदर्श संगम था।
🔸 लोकमाता अहिल्यादेवी होल्कर: एक द्रष्टा शासिका
- उन्होंने न सिर्फ महेश्वर को राजधानी बनाकर सुदृढ़ शासन चलाया, बल्कि काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ, केदारनाथ, त्र्यंबकेश्वर, और अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण भी कराया।
- वे सामाजिक न्याय की प्रतीक थीं — विधवाओं, गरीबों और वंचितों के लिए वृत्ति, अनुदान, और आवास योजनाएं शुरू कीं।